महान सम्राट अशोक
अशोक केवल भारत का नहीं बल्कि सम्पूर्ण संसार के इतिहास का महान शासक था. बौद्ध ग्रंथों और शिलालेखों द्वारा हमें उनके सम्बन्ध में प्रयाप्त ज्ञान प्राप्त होता है.बौद्ध ग्रंथों में लिखा है की बिन्दुसार की १६ पत्नियां और १०१ पुत्र थे. सुमन (सुसीम), अशोक दूसरा और तिष्य सबसे छोटा पुत्र था. उत्तर भारत में अशोक की माँ को सुभद्रांगी और दक्षिण में धर्मा कह कर पुकारा जाता था.
अशोक जब अठारह साल का ही था कि बिन्दुसार ने उसे “अवन्तिराष्ट्र” का प्रमुख बना कर उज्जयिनी भेजा। उज्जयिनी उस समय अवन्ति राष्ट्र की राजधानी थी. वहीं पर अशोक ने महादेवी नमक कन्या से विवाह किया. महेंद्र और संघमित्रा महादेवी की ही संतान थीं.
कहा जाता है कि तक्षशिला में उस समय विद्रोह हुआ था जिसे दबाने के लिए अशोक को भेजा गया। दूसरी बार जब यहाँ विद्रोह हुआ तो वहां का शासक सुसीम उससे शांत करने में असफल रहा. बिन्दुसार की मृत्यु के बाद अशोक ने अपने मंत्री खल्लाटक या राधगुप्त की सहायता से सिंहासन पर अधिकार कर लिया. इस प्रकार सुसीम और अशोक में राजगद्दी के लिए लड़ाई हुई. कहा जाता है कि अशोक अपने ९९ भाइयों को मार कर रक्तरंजित गद्दी पर बैठा और चणडाअशोक के नाम से पुकारा गया.
संभवतः उत्तराधिकार प्राप्त करने के लिए पर्याप्त रक्तपात हुआ हो किन्तु इस बात का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता. डॉ. स्मिथ इस तथ्य को असत्य मानते हैं और कहते हैं की अशोक के शिलालेखों से विदित होता कि अशोक के भाई और बहन अशोक के कार्यकाल के १७वे और १८वे वर्ष में जीवित थे. अशोक के प्रारंभिक कार्यकाल का कुछ अधिक ज्ञान नहीं है, उसके संस्मरणों से ज्ञात होता है कि वह अपने पूर्वजों जैसे ही जीवन यापन करता था. प्रारंभिक १३ वषों तक उसने अपने साम्राज्य का प्रसार किया तथा बाहर के देशों से मित्रता स्थापित करता रहा.
अशोक और कलिंग युद्ध
अशोक ने अपने राज्य के तेरहवें वर्ष में कलिंग पर विजय प्राप्त की. इस युद्ध का वर्णन और परिणाम शिलालेख १३ के अंतर्गत उसने स्वयं लिखवाये “राज्याभिषेक के आठ वर्ष बाद महामना राजाधिराज ने कलिंग पर विजय प्राप्त की.१,५०,००० व्यक्ति कैद केर लिए गए १,००,००० लोग लड़ते हुए मारे गए और इससे कई गुना अधिक अन्य कारणों से मर गए.युद्ध के तुरंत बाद महामना सम्राट ने दया धर्म की शरण ली इसी धर्म से अनुराग किया और इसका सारे राज्य में प्रसार किया. इस महायुद्ध के महाविनाश ने अशोक का ह्रदय परिवर्तन किया और पश्चाताप स्वरुप दया और अहिंसा का मार्ग पर चल पड़ा.
अशोक का धर्म
कलिंग की लड़ाई का अशोक के ह्रदय पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा की उसका धर्म ही बदल गया ,पहले वह भगवान शिव का अनुयायी था(कल्हण ने अपनी पुस्तक राजतरंगिणी में इस बात का समर्थन किया है). अशोक पहले पशुओं और पुरुषों के वध पर तनिक भी खेद नहीं करता था और स्वयं भी मांसाहारी था. यह सब उसने कलिंग के युद्ध के बाद त्याग दिया और बौद्ध धर्म को अपनाया.
भाबरु के शिलालेख यह सिद्ध करता है (अशोक का बौद्ध धर्मावलंबी होना तथा संघ और धर्म में विश्वास होना) अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया इसका यह अर्थ नहीं है की दूसरे धर्मों को उपेक्षा या शत्रुता की दृष्टि से देखता था. अशोक ने यह घोषणा करवाई की “जो मनुष्य दूसरे धर्मों की अवहेलना कर अपने धर्म की ख्याति चाहते हैं,वे वास्तव में अपने धर्म को बड़ी हानि पहुंचाते हैं”वह धार्मिक सहिष्णुता में विश्वास करता था. उसने देवों और ब्रह्मणो का तिरस्कार नहीं किया.
अशोक अपने देवनांप्रिय नाम से बहुत बहुत गौरव अनुभव करता था जिसका अर्थ है “देवताओं का प्रिय”.उसने अपनी धर्मनीति स्पष्ट शब्दों में प्रकट की : “सम्राट सभी धर्मों के अनुयायिओं को समान दृष्टि से देखते हैं”, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं की अशोक ने दूसरे धर्मों को पूर्ण स्वतंत्रता दे दी हो. अशोक बलि प्रथा का घोर विरोधी था और इस प्रथा को बंद करने में सफल भी हुआ. मदिरा का सेवन और पशुओं का युद्ध प्रतिबंधित कर दिया.
अशोक के दया धर्म के मूल सिद्धांत
(१) संयम अर्थात इन्द्रियों पर पूर्णाधिकार
(२) भावशुद्धि अर्थात विचारों की पवित्रता
(३) कृतज्ञता
(४) दृढ़ भक्ति
(५) दया
(६) दान
(७) शौच अर्थात स्वछता
(८) सत्य
(९) शुश्रूषा अर्थात सेवा
(१०) सम्प्रतिपत्ति अर्थात सहायता
(११) अपिचिति अर्थात श्रद्धा
अशोक के शिलालेखों से उसके द्वारा प्रचारित धर्म के कुछ संकेत मिलते हैं. दिवतीय स्तम्भ लेख में अशोक ने लिखा है –
“धर्म में अधर्मता नहीं होनी चाहिए. श्रेष्ठ कर्म संवेदना सहानुभूति उदारता सत्यता और पवित्रता ही धर्म की वास्तविक परिभाषा है”
साभार: प्राचीन भारत का इतिहास- वी.डी महाजन