कल सोशल मीडिया के एक मित्र ने #IndiaSpeaksDaily के एक वीडियो की टिप्पणी में लिखा कि सर मैं आपसे मिलना चाहता हूं। मेरी टीम ने इसे देखा और मुझे बताया। मेरा दरवाजा तो रात-दिन सबके लिए खुला है। मैंने कहा बुला लो। वह मित्र दोपहर को नोएडा स्थित हमारे कार्यालय आए। उनका नाम नीरज सिंघल है।
उनके बगल में एक पोटली दबी थी। आते ही कहा, सर आपका वीडियो रोज सुनता हूं। आपकी एकदम सीधी-सपाट सच बोलने की शैली बहुत पसंद है। कोई मिलावट नहीं। ये न्यूज चैनल वाले तो इतना गोल-गोल घुमाते हैं कि साफ पता चलता है कि सच को ढंकने, मुद्दों को भटकाने का प्रयास कर रहे हैं। सच तो सपाट ही होता है सर, आपकी तरह।
मैं धन्यवाद के अलावा और क्या कह सकता था? फिर नीरज ने वो पोटली निकाली और कहा, सर मैं एक नौकरीपेशा आदमी हूं। अपने पूजा घर में एक गुल्लक रखता हूं, जिसमें रोज जो भी सिक्का होता है डालता जाता हूं। मैं अपना वह गुल्लक इंडिया स्पीक्स डेली को चलाने में योगदान के रूप में देना चाहता हूं। फिर उन्होंने बगल में दबी वह पोटली निकाल कर मेरे टेबल पर रख दी।
मैं अवाक् था। मैंने अपनी आंखों में गीलापन महसूस किया। क्या बोलूं-क्या न बोलूं? एक डोनेशन होता है, जो संभवतः बड़ा हो सकता है। लेकिन यह भावना है, जो अनमोल है। ऐसे साथी ही मेरी जिम्मेदारियों को बढ़ाते हैं।
कई बार सोचता हूं, यह सब क्या रह रहा हूं। चुपचाप कोई फिक्शन लिखूं और खामोश रहूं, जैसे कि आजकल के अधिकांश लेखक रहते हैं। लेकिन फिर खुद की शक्ल क्या आईने में देख पाऊंगा? सच के प्रति यह जो मेरी जिद है, उसको हौसला आप सब से मिलता है।
पत्रकारिता के दिनों के अधिकांश साथी पोलिटिकल करेक्ट होने के कारण मुझसे काफी दूर जा चुके हैं। मेरे पोस्ट को लाइक करने तक से उन्हें डर लगता है। लेकिन नीरज सिंघल और आप सबके रूप में असंख्य साथी दीए की तरह मेरी जिंदगी में टिमटिम उठे हैं। एक दीया से हजारों दीया जल चुका है। मेरा नीरज और आप सबसे यह वादा है, विराम तो अब मैं आखिरी नींद के बाद ही लूंगा।
नीरज को उपहार में देने के लिए मेरे पास बस मेरी किताबें थी। आपसब का अपना #संदीपदेव
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