१) आपने कभी सोचा है कि दुनिया की सभी प्राचीन भाषा को अरबी, तुर्की और यूरोपियन्स ने नष्ट कर दिया, परंतु वह संस्कृत पर लाख हमला करके भी उसे नष्ट क्यों नहीं कर पाए?
२) आपने कभी सोचा है कि तुगलक, लोदी, मुगल ब्राह्मणों को मार कर जनेऊ क्यों तुलवाते थे?
३) आपने कभी सोचा कि पुर्तगाल, अंग्रेज और मार्क्सवादी वेद, रामायण, महाभारत, संस्कृत भाषा को नष्ट-भ्रष्ट क्यों करना चाहते थे? और इसमें विफल होने पर सनातन धर्म को ‘ब्राह्मण धर्म’ कह कर इसे अतिरंजित क्यों करते थे?
४) आपने कभी सोचा कि मसीहवादी से मार्क्सवादी तक सभी ‘पंचमक्कार’ ब्राह्मणवाद का हौव्वा खड़ा कर हिंदू समाज को ब्राह्मण के विरुद्ध करने की कोशिश में आजतक क्यों लगे हुए हैं?
५) इस सबका जवाब एक ही है कि सनातन संस्कृति के संवाहक पुरोहित वर्ग ने लाखों कष्ट सहे, लेकिन न अपनी संस्कृत भाषा को नष्ट होने दिया, न पूजा-पाठ, यज्ञ अदि की वैदिक रीति को भ्रष्ट होने दिया, न रामायण-महाभारत को मिथक साबित होने दिया और न ही मूर्तिविध्वंशक अब्राहमिक रिलीजन/मजहब के आघात से अपने कर्मकांड और मूर्ति पूजा को ही समाप्त होने दिया।
आज की हिंदू पीढ़ी इन सबसे अनजान अब्राहमिक रिलीजन के प्रभाव में सनातन के इन संरक्षकों को पोंगा पंडित, अंधविश्वासी, कर्मकांडी आदि कह कर गाली देती है, परंतु वह भूल जाती है कि इन्हीं के कारण आजतक वो खतना कराने और क्रॉस पहनने से बचे हुए हैं।
अयोध्या के इन पंडित जी ने बड़ी मासूमियत से कहा कि यदि आप सब अयोध्या जी घूमने नहीं आएंगे, कर्मकांड, पूजा-पाठ नहीं कराएंगे तो हमारा निर्वहन कैसे होगा? नौकरी के लिए क्लर्क बनने वाली पीढ़ी भारतीय जाति व्यवस्था के स्वरोजगार जनित अर्थव्यवस्था को शायद ही कभी समझ पाए।
मैं समाजशास्त्र का विद्यार्थी हूं, अतः जानता हूं कि जाति एक गिल्ड की तरह थी, जिसमें बचपन से ही प्रशिक्षण और स्वरोजगार की संभावना निहित थी। इसलिए अब्राहमिक रिलीजन/मजहब वाले जब ढंग का ट्वायलेट नहीं बना पाए थे, तब भारत दुनिया की अर्थव्यवस्था में 30% से अधिक का योगदान दे रहा था।
आप सोचकर देखिए!
१) ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ चलाने वालों ने हमारे कालीन, हथकरघा, लकड़ी, लोहे, पुरोहिताई आदि के उद्योग को नष्ट कर दिया।
२) फेमिनिस्टों ने हमारे परिवार व्यवस्था को नष्ट कर दिया।
३) ब्राह्मणवाद का नारा पीटने वालों ने हमारी पूजा पद्धति, संस्कृत भाषा और संस्कृति को नुकसान पहुंचाया।
४) दलित और अंबेडकरवादियों ने समाज में वैमनस्यता का बीज बोकर हिंदू समाज के सह-अस्तित्व के धागे को तोड़ दिया।
हिंदू समाज कोर्स करेक्शन करने वाला समाज रहा है। कुरीतियों पर उसने स्वयं ही प्रहार किया है। वेद के सबसे प्रसिद्ध गायत्री मंत्र किसी ब्राह्मण ने नहीं, अपितु क्षत्रिए विश्वामित्र जी ने दिया।
यही एक उदाहरण साक्ष्य है कि यहां प्रतिभा को सम्मान था, परंतु आक्रमणकारियों ने अपने रिलीजन/मजहब/विचार को बढ़ाने के लिए समाज के ताने-बाने को तोड़ा और मूढ़ हिंदू उसे ही सही मानकर ‘Oh My God’ की पीढ़ी बनकर रह गये।
आपकी ओरिजनल पहचान छीन ली गई, और आप मूढ़ता में वाह…वाह कहते रहे! संभलिए, क्योंकि जिस वृक्ष की जड़ नहीं होती, वहां केवल ठूंठ रह जाता है, जो कटने या जलावन के काम आता है!