देश में जब दुःख का वातावरण बन जाता है तो लोग आमतौर पर फिल्मों में डूब जाना चाहते हैं। फ़िल्में देखने से समस्या हल नहीं होती लेकिन तनाव से वह कुछ देर के लिए तो उबर ही जाता है। दिल्ली में घटी अमानवीय त्रासदी का दुःख अभी गया भी न था कि चीन से आयातित कोरोना वायरस ने देश को एक नए तनाव से भर दिया। कोरोना की दहशत से विश्व की अर्थव्यवस्था डगमगा गई है। इसका असर शेयर मार्केट पर भी देखने को मिल रहा है। ऐसे निराशाजनक वातावरण में शुक्रवार को इरफ़ान खान की ‘अंग्रेज़ी मीडियम‘ प्रदर्शित हुई है। फिल्म देख रहे चंद दर्शकों को मैंने मुस्कुराते, ठहाके लगाते और छुपकर आंसू बहाते देखा। ऐसा लगा इस घनघोर उदासी के दौर में चटख पलाश के फूल खिल आए हैं, ताकि आप उन्हें देखकर कुछ वक्त के लिए ये दर्द भूल पाए।
राजस्थान का चम्पक गोस्वामी हलवाई है और उसके दादा घसीटाराम एक मशहूर हलवाई थे। चम्पक की बेटी अनन्या इंग्लैंड जाकर पढ़ाई करना चाहती है। चम्पक न चाहते हुए भी इस निर्णय में उसका साथ देता है। हालांकि उसे अपनी बेटी से दूर होना पसंद नहीं है लेकिन उसी इच्छा के आगे समर्पण कर देता है। चम्पक और उसके भाई कमल के बीच दादा घसीटाराम के ब्रांड नेम को उपयोग करने की बात को लेकर कोर्ट में मुकदमा चल रहा है। अनन्या इंग्लैंड जाती है लेकिन वहां परिस्थितियां कमल और चम्पक को जेल पहुंचा देती हैं। ढेर सारी मजेदार सिचुएशन से होती हुई कहानी एक मार्मिक क्लाइमैक्स पर ख़त्म होती है।
निर्देशक होमी अदजानिया ने एक सामान्य कहानी को बहुत गहराई से फिल्म में उतारा है। बाप-बेटी के रिश्ते को रेखांकित करती इस कहानी में बॉक्स ऑफिस पर जीत हासिल करने की कूवत नहीं थी लेकिन जो मनोरंजन के पेंच उन्होंने फिल्म में पिरोए हैं, उससे ये बेहद मनोरंजक होकर प्रस्तुत हुई है। हास्य इस फिल्म के लूप होल्स को सीमेंट की भांति जोड़कर रखता है। फिल्म के हर विभाग पर होमी की ग्रिप मजबूत दिखाई देती है। बाप-बेटी के मार्मिक सीक्वेंस हो या कमल और चम्पक की मज़ेदार दारु पार्टी, फिल्म बहुत स्मूथ चलती है और दर्शक को कतई बोर नहीं होने देती। कैमरा संचालन, कोरियोग्राफी, संगीत और बैकग्राउंड म्यूजिक की कसौटी पर फिल्म खरी उतरती है।
इरफ़ान खान के अभिनय के बारे में क्या लिखा जा सकता है। उनके भीतर का अदाकार बहता पानी है। हर रंग को खुद में घोल लेता है। हर किरदार को खुद में समेट लेता है। रोने का अभिनय करते समय उसकी बड़ी-बड़ी कोटरों सी आँखों में कब दर्द की पनीली लहर दौड़ जाती है, पता ही नहीं चलता। चम्पक के किरदार को उसने अपनी सांसों में जिया है। इरफ़ान खान इस फिल्म की रीढ़ की हड्डी है। वह न होता तो इस फिल्म का इतना खूबसूरत अंजाम नहीं होता। एक पिता और एक व्यवसायी के किरदार को वे मास्टरपीस बना देते हैं। हमारे दौर का संजीव कुमार है ये इरफ़ान।
राधिका मदान ने फिल्म में अनन्या का किरदार निभाया है। अब तक उनको नज़रअंदाज़ किया गया था लेकिन इस फिल्म के बाद उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकेगा। इरफ़ान खान जैसे अभिनेता के सामने खड़ा होना ही बड़ी बात है जबकि अनन्या ने आत्मविश्वास के साथ इरफ़ान का सामना किया है। वे बेहद सुंदर हैं और प्रतिभाशाली भी। यदि उन्हें आगे अच्छे मौके और मार्गदर्शन मिले तो वे कमाल कर सकती हैं। इस फिल्म के बाद अनन्या टीनएजर्स की फेवरेट लिस्ट में शामिल हो जाएंगी। दीपक डोबरियाल और कीकू शारदा ने बहुत बेहतर हास्य दृश्य प्रस्तुत किये हैं लेकिन करीना कपूर और डिम्पल कपाड़िया का ट्रेक प्रभावहीन ही रहता है। तनिष्क बागची का संगीत फिल्म में गुंथा हुआ सा लगा है।
जब तीन राज्यों में कोरोना को महामारी घोषित कर थियेटर्स में लॉकडाउन कर दिया गया है तो ऐसे में ‘अंग्रेजी मीडियम’ जैसी सुंदर फिल्म को दर्शक मिलने में परेशानी होगी। यही स्थिति बाहरी देशों में भी बन रही है। इरफ़ान खान के प्रभावोत्पादक अभिनय से सजी इस फिल्म को कोरोना वायरस न मार दे। पहले दिन के रुझान से यही लग रहा है कि फिल्म शानदार होने के बावजूद दर्शकों की कमी से मारी जा सकती है।
इसमें कोई शक नहीं इरफान खान एक बेहतरीन कलाकार हैं फिल्म तो अच्छी ही होगी।