डेविड धवन की ‘कुली नंबर वन’ सन 1995 में प्रदर्शित हुई थी। सत्ताइस वर्ष पूर्व प्रदर्शित हुई इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी सफलता प्राप्त की थी। एक कमज़ोर स्क्रीनप्ले को गोविंदा के सुंदर अभिनय और फिल्म के गीतों ने संभाल लिया था। गोविंदा-कादर खान की जुगलबंदी और करिश्मा कपूर की तत्कालीन शानदार बॉक्स ऑफिस वेल्यू फिल्म को बचा ले गई थी।
उस दोषपूर्ण स्क्रीनप्ले को लेकर डेविड धवन ने मुख्य भूमिका में अपने बेटे वरुण धवन को प्रस्तुत किया। उस कैरेक्टर की जटिलताओं को पहचानकर निभाने की क्षमता अभी वरुण में नहीं आई है। उस दोषपूर्ण स्क्रीनप्ले में डेविड ने जो बदलाव किये, वह भी काम नहीं आए। गोविंदा वाली फिल्म में पृष्ठभूमि ठेठ भारतीय थी, जो दर्शक को लुभाने में सफल हुई थी लेकिन इस फिल्म में पृष्ठभूमि गोवा की बना दी गई।
गोवा इतना फिल्माया जा चुका है कि उसे देखने में दर्शक को कोई रस नहीं आता। ये फिल्म शुरु होने के आधे घंटे के भीतर असहनीय हो जाती है। डेविड धवन नब्बे के दशक के अपने स्वर्णिम काल से बाहर नहीं आ सके हैं, जब उन्हें एक स्टार निर्देशक का दर्जा मिला हुआ था। फिल्म की एक भी फ्रेम डेविड धवन का पता नहीं बताती। एक वक्त के बॉक्स ऑफिस शहंशाह की ऐसी गत हो गई कि वे अपनी ही सुपरहिट फिल्म की रीमेक ठीक से नहीं बना पाए।
अभिनय इस फिल्म का एक बुरा पक्ष है। वरुण धवन ने गोविंदा से प्रेरित होने के बजाय उनको पूरी तरह से कॉपी करने की कोशिश की। ये कोशिश फिल्म के लिए भयावह सिद्ध हुई है। वरुण इतने गोविंदामय हो गए कि अपने चेहरे के भाव भी गोविंदा की तरह बनाने लगे। उनकी नकल की कोशिश मिस-फॉयर हो गई। उन्होंने ‘बदलापुर’ से जो कमाया था, वह इस फिल्म से गंवा दिया है।
फिल्म का कोई विभाग प्रभावित नहीं करता। सारा अली खान कब अभिनय सीखेंगी, अब तक उनकी ओर से अभिनय के अलावा सबकुछ डिलीवर हुआ है। परेश रावल ने ये रोल क्यों स्वीकार किया। वे मूल फिल्म में कादर खान की तुलना में कहीं नहीं ठहरते। जावेद ज़ाफ़री और जॉनी लीवर भी व्यर्थ ही सिद्ध हुए हैं। इन सभी ने दर्शकों को ओवर एक्टिंग का डोज दिया है।
कुली नंबर वन का ऐसा हश्र देखकर शायद अब फिल्म निर्देशकों के सिर से पुरानी हिट फिल्मों का रीमेक बनाने का भूत उतर जाए। हर फिल्म की अपनी एक केमेस्ट्री होती है, उसकी बुनावट अबूझ होती है। रीमेक बनाने से पूर्व विचार करना आवश्यक होता है कि 25 वर्ष पूर्व बनी फिल्म को वर्तमान के वातावरण में ढालकर कैसे बनाया जाए।
सबसे बड़ी बात उस फिल्म का वह ‘स्पर्श’ भंग नहीं होना चाहिए, जिसके कारण उसने दर्शक के मन को छुआ था। हालाँकि कुली नंबर वन बनाते समय डेविड धवन ने इन बातों का ध्यान नहीं रखा। यहाँ तक कि एक हास्य फिल्म ‘हास्य’ ही नहीं पैदा कर पाती। इससे बुरी बात दर्शक के लिए और क्या हो सकती है।
इस फिल्म को देखने के बजाय गोविंदा की पुरानी फिल्म देखी जा सकती है। सन 1995 में प्रदर्शित हुई कमज़ोर स्क्रीनप्ले वाली इस फिल्म पर गोविंदा का गोल्डन टच था, जिसके कारण 36 करोड़ की लागत से बनी उस फिल्म ने 130 करोड़ की कमाई की थी। करिश्मा खुद को नहीं दोहराता।