रियो ओलंपिक में पिछले दो दिन भारत के लिए यादगार बनकर गुजरे. पहले साक्षी तंवर और उसके बाद पी वी सिंधु ने भारत के 125 करोड़ लोगों के लिए कुछ ख़ुशी के पल दिए.यह लागातार दूसरी बार है जब भारत ने बैडमिंटन में ओलंपिक्स में मैडल जीते हालांकि दोनों मैडल जीतने वाले खिलाडी अलग अलग थे किन्तु इन दोनों पदकों के पीछे जो नाम, जो मेहनत समान थी वह थी पुल्लेला गोपीचंद की!
गोपीचंद ने अपना बैडमिंटन सफर तेरह साल की उम्र में शरू किया जो अब तक जारी है. गोपीचंद की संघर्ष की कहानी उस चितेरे के जैसे है जिसने बड़ी कुशलता और लगन से अपने जीवन के कैनवास में रंग भरे , इसका यह बिलकुल मतलब नहीं है की पुल्लेला के जीवन में कोई परेशानी नहीं आयी किन्तु अपनी परेशानियों से परे जाकर भारत के लिए जो सम्मान जुटाया है उसका कोई सानी नहीं है, सिडनी ओलंपिक 2000 में क्वाटर फाइनल्स में हारकर बाहर हुए पुल्लेला गोपीचंद ने कुछ अलग ही ठान रखी थी अपनी इसी हठ पर चलते हुए उन्होंने 2001 आल इंग्लैंड बैडमिंटन चैम्पियनशिप में समकालीन दिग्गजों को हराकर स्वयं को प्रकाश पादुकोण के समकक्ष ला खड़ा किया.
2001 में ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप जीतने के बाद गोपीचंद को चोट लगी और वो उस चोट से ऊबर नहीं पाये ! किसी भी खिलाडी के लिए बहुत मुश्किल होता है चोट से उबर कर वापसी करने का किन्तु गोपी ने कुछ और ही ठान राखी थी. अर्जुन की तरह ओलंपिक के गोल्ड मैडल पर आँख जमाये हुए गोपीचंद ने जो सपना देखा वे उस की तरफ लगातार बढ़ रहे हैं हालांकि धनुष उनके हाथ में नहीं है किन्तु लक्ष्य उनके इरादों में है! वो साबित कर चुके है 2012 में ब्रोंज(कांसा) जीतने वाली सायना नेहवाल उन्हीं की ट्रेनी रही है! और अब पी वी सिंधु की मेहनत के पीछे भी गोपीचंद की मेहनत और प्रयास है. धीरे-धीरे सधे कदमों से अपने सपने और लक्ष्य की और बढते गोपीचंद के कमान से कब वह तीर निकलेगा जो उनके सपने को भेदेगा! वह तो समय के गर्त में है लेकिन जिस विश्वास और दृढ़ संकल्प से वे आगे बढ़ रहे हैं वह दिन ज्यादा दूर भी नहीं दिखाई देता.
गोपीचंद सरीखे खिलाड़ी भारत में बहुत कम हुए हैं जो कभी हार नहीं मानते, गोपी ने भी अपनी चोट को आड़े नहीं आने दिया और हैदराबाद में बैडमिंटन एकेडमी बनाई पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन एकैडमी.हालांकि उन्हें इसे बनाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा किन्तु कहते हैं जब लगन सच्ची हो तो मंजिलें सामने खड़ी हो जाती हैं.गोपी की इस अकेडमी से साइना नेहवाल, किदाम्बी श्रीकांत,पी.वी सिंधु सरीखे खिलाड़ी निकले हैं जिन्होंने देश को भविष्य की उम्मीद जगाई है.
दुनिया में बहुत कम है जो अपने नाम को अपने कर्मों से ऊंचाई पर ले जाते हैं. अर्जुन अवार्ड और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्राप्त गोपीचंद उन लोगों में से हैं जिनका काम बोलता है. देश के लिए उनके जज्बे को सलाम,आप जैसा कोई नहीं आपके समर्पण को सलाम…