पीएम मोदी को एक बार फिर फंसाने का चौसर तैयार किया गया है। 2002 गुजरात दंगे में मारे गए कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की विधवा जाकिया जाफरी ने एक बार फिर मोदी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की है। उन्होंने एसआईटी द्वारा मोदी को दी गई क्लिन चिट को चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अर्जी को मंजूर करते हुए इस मामले की सुनवाई 19 नवंबर को करने की तारीख भी तय कर दी है। इस मामले को देखते हुए वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता ने सही लिखा है कि 2014 के आम चुनाव की पूर्व संध्या से लेकर 2019 के चुनाव की पूर्व संध्या तक चुनावी खेल की किताब में कुछ भी नहीं बदला है।
The playbook has not changed even a bit. Between eve of 2014 elections and eve of 2019 elections. https://t.co/hZVL5W6AaG
— Kanchan Gupta (@KanchanGupta) November 13, 2018
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए संयोग कहें या दुर्योग यह बात बाद में लेकिन जिस प्रकार देश में कुछ लोग उनके पीछे पड़े हैं वह कम से कम देश के लिए कतई अच्छा नहीं कहा जा सकता है। नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से लेकर देश के प्रधानमंत्री बनने तक देश का एक खास तबका उन्हें किसी प्रकार फंसाने के पीछे पड़ा हुआ है। मैथिली में एक कहावत है कि लोक लागे भगवंता के और दैव लागे अभगला के। यह कहावत मोदी पर बिल्कुल सटीक बैठती है। इन लोगों ने जब से मोदी के पीछे पड़े है उनका यश और शौर्य देश से लेकर विदेश तक में फैलता चला गया। इसके बाद भी इन लोगों को अक्ल नहीं आ रहा है।
मुख्य बिंदु
* अभी तक नरेंद्र मोदी को फंसाने का खेल जारी, जाकिया जाफरी की अर्जी पर 19 नवंबर को होगी सुनवाई
* 2014 के आम चुनाव की पूर्व संध्या से से 2019 के चुनाव की पूर्व संध्या तक चुनावी खेल में कुछ नहीं बदला
मालूम हो कि जाकिया जाफरी 2002 गुजरात दंगा मामले में गठित विशेष जांच दल द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर वरिष्ठ राजनेताओं तथा नौकरशाहों को मिली क्लिन चिट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए अर्जी दायर की है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, 2014 में हुए आम चुनाव से पहले भी नरेंद्र मोदी को फंसाने का यह गंदा खेल चला था। उस समय मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। लेकिन उन्होंने इसका डटकर मुकाबला किया और बाइज्जत बरी होकर बाहर आए। इतना ही नहीं साजिशकर्ताओं के पीछे पड़ने के बाद भी वे देश के प्रधानमंत्री बने।
लेकिन अब जब 2019 का चुनाव होने ही वाला है तो एक बार फिर साजिशकर्ताओं ने मोदी को फंसाने का खेल शुरू कर दिया है। वही मामला वही केस मगर इस बार लड़ाई का मैदान अहमदाबाद से बदलकर दिल्ली कर दिया गया है। इस घिसे-पिटे मामले पर सुप्रीम कोर्ट भी सुनवाई करने को तैयार हो गया है। इससे सुप्रीम कोर्ट की मंशा पर संदेह होना लाजिमी है। सुप्रीम कोर्ट को समझना चाहिए या फिर पूछना चाहिए कि जो मामला 2014 में खत्म हो चुका है, साल 2017 में गुजरात हाईकोर्ट ने भी एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट को सही मान चुका है, तो फिर उस मामले को 2018 में उठाने का क्या औचित्य है?
जहां तक जाकिया जाफरी को न्याय दिलाने की बात है तो आज तक इच्छा के अनुरूप नहीं हुए फैसले से कोई संतुष्ट हो पाया है। दूसरी बात यह कि आखिर बीते साढ़े चार साल तक वह क्या कर रही थीं? इतने दिनों पहले उन्होंने एसआईटी के फैसले को चुनौती क्यों नहीं दी? ये वही सवाल हैं जिससे सुप्रीम कोर्ट की मंशा भी जाहिर हो जाती है और साजिशकर्ताओं की साजिश भी।
URL: Gujarat riot: Failing implicate to CM Modi, now conspiracy to trap PM Modi
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