लगता है कांग्रेस और उसके अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश हित में रक्षा सौदे के तहत हुए राफेल डील पर झूठ फैलाने को अपनी रणनीतिक हिस्सा बना लिया है। तभी तो वह यह भी नहीं देख पाते हैं कि कौन सी चीज सार्वजनिक है या कौन सी चीज गोपनीय। जो दस्तावेज सार्वजनिक हो चुका है उस पर भी राहुल गांधी झूठ बोलना शुरू कर दिया है। राहुल गांधी जिस रफ़्तार से एक के बाद झूठ बोलते जा रहे हैं कहीं उन्हें ‘झूठा ऑफ हिन्दोस्तान’ का ख़िताब न मिल जाए! सुप्रीम कोर्ट में राफेल डील को लेकर केंद्र सरकार ने जो हलफनाम दिया है उस पर भी राहुल गांधी ने झूठ बोला है। जबकि वह दस्तावेज अब जन सामान्य तक के लिए उपलब्ध है।
मुख्य बिंदु
* राफेल डील को लेकर मोदी सरकार के सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे पर राहुल गांधी ने फिर बोला झूठ
* राफेल डील पर लगातार झूठ फैलाना कांग्रेस और उसके अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी नीति ही बना ली है
राहुल गांधी ने केंद्र सरकार के हलफनामें पर एक नहीं बल्कि दो-दो झूठ बोले हैं। राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट में दिए अपने हलफनामे में स्वीकार कर लिया है कि राफेल डील में उन्होंने चोरी की थी। राहुल गांधी अपने एक ही झूठ पर नहीं रुके उन्होंने दूसरा झूठ बोला है कि केंद्र सरकार ने अपने हलफनामें में यह भी स्वीकार किया है कि उन्होंने राफेल डील का मसौदा भारतीय वायु सेना से बिना संपर्क किए ही बदल दिए और अनिल अंबानी की जेब में 30 हजार करोड़ रुपये दे दिए।
सुप्रीम कोर्ट में मोदीजी ने मानी अपनी चोरी।
हलफ़नामे में माना कि उन्होंने बिना वायुसेना से पूछे कांट्रैक्ट बदला और 30,000 करोड़ रूपया अंबानी की जेब में डाला।
पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त…https://t.co/flCgrrlUjw
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) November 13, 2018
राहुल गांधी के ट्वीट को देखते हुए यह यकीनी तौर पर कहा जा सकता है कि उन्होंने सरकार के हलफनामा देखा तक नहीं है। क्योंकि उन्होंने जो ट्वीट किया है उससे संबंधित एक भी तथ्य का जिक्र हलफनामा में किया तक नहीं गया है।
राहूल गांधी का पहला झूठ और उसका सच
राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में पहला झूठ लिखा है कि मोदी सरकार ने भारतीय वायुसेना से बगैर संपर्क किए ही राफेल डील का मसौदा बदल दिया। जबकि सच्चाई यह है कि वायु सेना से इस समझौते के लिए संपर्क नहीं करने का कोई सवाल ही नहीं उठता। वायु सेना से न केवल लगातार संपर्क किया गया बल्कि राफेल डील को फाइनल करने तक में वायुसेना की अहम भूमिका रही है। ऐसे में इस प्रकार का बेबुनियाद झूठ सिर्फ और सिर्फ राहुल गांधी ही बोल सकते हैं। क्योंकि ऐसा झूठ वही बोल सकता है जो जनता के प्रति जवाबदेह न हो।
दूसरी बात यह है कि राफेल डील के तहत 36 विमानों की खरीददारी का फैसला यूपीए सरकार के दौरान हुए डील का विस्तृत स्वरूप है। यह डील यूपीए सरकार द्वारा की गई शुरुआती डील से बिल्कुल अलग नहीं है। अगर अलग से डील हुई होती तो फिर शुरुआती प्रक्रिया अपनाई जाती। जबकि भारतीय वायु सेना राफेल डील की शुरुआती प्रक्रिया से जुड़ी हुई है। ध्यान रहे कि राफेल डील का समझौता यूपीए सरकार ने भी खुद से नहीं किया था, पहले भारतीय वायु सेना ने उस जहाज का मूल्यांकन किया था और राफेल को चुना था।
जहां तक एचएएल से विमान बनवाने की बात है वह पहले भी तय नहीं हुआ था। यूपीए सरकार ने भी जो 126 राफेल विमान का सौदा किया था उसमें 18 विमान सीधे डसॉल्ट कंपनी से खरीदने की बात तय हुई थी और शेष 108 विमान एचएएल से बनवाने की बात थी। लेकिन एचएएल से विमान बनवाने को लेकर कुछ भिन्नता होने के चलते डील फाइनल नहीं हो सका था। ऐसे में एचएएल को एनडीए सरकार द्वारा हटाने का भी आरोप निराधार है। यूपीए सरकार द्वारा की गई डील में भी एचएएल से विमान बनवाने का डील नही हो पाया था।
राहुल गांधी का दूसरा झूठ और उसका सच
वैसे तो अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाने वाले राहुल गांधी के झूठ को कई बार गलत साबित किया जा चुका है, लेकिन राहुल हैं कि मानते नहीं। राहुल गांधी ने केंद्र सरकार के हलफनामे का हवाला देते हुए एक बार फिर अपना झूठ दोहराते हुए लिका है कि मोदी सरकार ने इस राफेल सौदे के तहत अनिल अंबानी की जेब में 30 हजार करोड़ रुपये डाला है। जबकि सच्चाई यह है कि अगर डसॉल्ट कंपनी अपने हिस्से का पूरा ऑफसेट सौदा भी अनिल अंबानी की कंपनी को दे दे तो भी 30 हजार करोड़ रुपये नहीं होता है। क्योंकि ऑफसेट का जितना हिस्सा डसॉल्ट कंपनी के पास है उसका कुल मूल्य ही महज 6000 करोड़ है। अब राहुल गांधी को इतना बड़ा झूठ बोलने से पहले यह सोचना चाहिए कि क्या डसॉल्ट कंपनी ने दिवालिया होने के लिए यह सौदा किया है।
राहुल गांधी ने केंद्र सरकार के जिस हलफनामे के हवाले से यह झूठ लिखा है उसमें भी इस बात का कहीं जिक्र नहीं है। हलफनामा में जो बात कही गई है वह यह कि राफेल डील के ऑफसेट के लिए 35 कंपनियां लाइन में हैं जिसमें डसॉल्ट तथा हथियार आपूर्तिकर्ता एमबीडीए दो प्रमुख हैं। सरकार ने अपने हलफनामे में साफ कहा है कि कुल ऑफसेट में महज 19.9 प्रतिशत हिस्सेदारी डसॉल्ट कंपनी के पास है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर डसॉल्ट कंपनी अपनी सारी हिस्सेदारी अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को दे भी देती है तो उसका मूल्य 6000 करोड़ से कम ही होगा।
ऐसे में 30 हजार करोड़ रुपये देने का तो सवाल ही नहीं उठता है। ध्यान रहे कि डसॉल्ट कंपनी ने अपना पूरा व्यवसाय रिलायंस को दिया भी नहीं है। उसने रिलायंस के साथ 49:51 के तहत संयुक्त उद्यम स्थापित किया है। इस संयुक्त उद्यम में कुल 800 करोड़ रुपये का निवेश होना है। इसमें 49 प्रतिशत डसॉल्ट एविएशन लगाएगा तथा शेष 51 प्रतिशत रिलायंस का होगा। इससे साफ हो जाता है कि डसॉल्ट कंपनी से रिलायंस एक भी पैसा नहीं ले रहा है। कहा गया है कि संयुक्त उद्यम में डसॉल्ट कंपनी तथा रिलायंस डिफेंस को 400-400 करोड़ रुपये निवेश करना होगा। ऐसे में अनिल अंबानी की जेब में 30 हजार करोड़ रुपये देने का आरोप बिल्कुल ही निराधार है।
अब सवाल उठता है कि राहुल गांधी इस प्रकार राफेल डील पर लगातार झूठ बोल क्यों रहे हैं? इसका उत्तर साफ और बिल्कुल स्पष्ट है इस राफेल डील में उनके गुर्गे को हिस्सा मिलने का मौका नहीं मिला जिससे राहुल गांधी आहत है। इसलिए देश और सरकार को बदनाम करने की कीमत पर वे लगातार झूठ बोल रहे हैं। जबकि उनका झूठ एक घंटे से ज्यादा देर तक चलता भी नहीं।
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