विपुल रेगे। इस दीपावली दो फ़िल्में ऐसी रिलीज हुई, जिनके कारण बॉक्स ऑफिस भक्ति और शौर्य के दीपकों से जगमग हो गया। अक्षय कुमार की ‘राम सेतु’ ने दर्शकों की प्रशंसा पाई लेकिन मराठी फिल्म ‘हर हर महादेव’ का दीपक बॉक्स ऑफिस की मुंडेर पर अलौकिकता के साथ रोशन हो रहा है। इस फिल्म ने छत्रपति शिवाजी महाराज के युग के एक अप्रतिम योद्धा से युवा पीढ़ी का परिचय करवाया है। बाजी प्रभु देशपांडे ने शिवाजी के ‘स्वराज’ के लिए जो वीरता दिखाई, वह अब इतिहास में दर्ज है। ‘हर हर महादेव’ बाजी प्रभु देशपांडे को दी गई सिनेमाई आदरांजलि है।
फिल्म निर्देशक अभिजीत शिरीष देशपांडे की फिल्म मराठा युग का एक संपूर्ण अध्याय विस्तार के साथ प्रस्तुत करती है। निर्देशक ने कहानी के लिए अच्छी रिसर्च की है। वे महत्वपूर्ण दृश्यों को तारीख और सन के साथ दिखाते हैं। ओम राउत की ‘तानाजी’ में हमने शिवाजी युग के एक साहसी योद्धा के बारे में जाना था और ‘हर हर महादेव’ हमें उस योद्धा के बारे में बताती है, जिसने असंगठित, बिखरे हुए मावळों को एकता के सूत्र में बाँधने में एक अहम भूमिका निभाई थी।
फिल्म बाजी प्रभु देशपांडे को मुख्य रुप से सामने रखती है। छत्रपति शिवाजी के बारे में तो संसार जानता है लेकिन उनके बहादुर लड़ाकों के बारे में लिखी गई कथाएं कभी महाराष्ट्र की धरती से बाहर ही नहीं आ सकी। अब अभिजीत शिरीष देशपांडे जैसे निर्देशक हमारे गौरवशाली अतीत की खिड़कियाँ युवा दर्शकों के लिए खोल रहे हैं। शरद केलकर के अलावा बाजी प्रभु देशपांडे के किरदार को करता तो फ़ीका महसूस होता। शरद ने इस कैरेक्टर के लिए ट्रांसफार्मेशन किया है।
वे इस शो के मुख्य विजेता हैं। शिवाजी का चरित्र सुबोध भावे ने निभाया है। सुबोध ने कहीं से भी शिवाजी के चरित्र और उनकी गरिमा को हल्का नहीं होने दिया है। कुछ बहुत शानदार सीक्वेंस उनके नाम भी किये गए हैं। फिल्म के संवाद इसके मुख्य आकर्षण है। मुगलों का चरित्र कई संवादों से स्पष्टता के साथ बताया गया है। जैसे एक दृश्य में एक मुगल शासिका कहती है ‘इस मुल्क में औरतों को देवियों का दर्जा दिया गया है, मंदिरों की बर्बादी और औरतों की बेआबरु से ही तो हम आधी जंग जीतते आए हैं। इस मुल्क में बलात्कार हुकूमत करने का सबसे अज़ीम हथियार है।’
एक दृश्य में शिवाजी का संवाद है ‘मेरी प्रजा, मेरी माँ जैसी, मेरी माँ को हाथ लगाया, तो समझो मेरी भवानी को हाथ लगाया।’ संवाद ऐसे हैं, जिन पर थियेटर में तालियां गूंजती हैं। फिल्म की कहानी उस ऐतिहासिक घटना पर आधारित है, जिसे बाजी प्रभु देशपांडे ने अंजाम दिया था। बाजी प्रभु देशपांडे ने अफजल खान के वध में शिवाजी की सहायता की थी। उन्होंने पन्हाला दुर्ग पर आदिलशाह के आक्रमण के समय अभूतपूर्व निडरता और साहस का परिचय दिया था।
300 मावळों की सेना लेकर वे चार हज़ार मुगलों से टकरा गए। उनका लक्ष्य शिवाजी को सुरक्षित रखते हुए पन्हाला दुर्ग तक पहुंचाना था। इस साहसिक कारनामे के लिए बाजी प्रभु देशपांडे का नाम इतिहास में अमिट है। एक्शन दृश्य काफी अच्छे हैं और डिटेलिंग के साथ फिल्माए गए हैं। क्लाइमैक्स हमें एक पुरानी फिल्म ‘300’ की याद दिलाता है लेकिन कम बजट और सीमित संसाधनों में वह काफी स्तरीय बना है। फिल्म परिवार के साथ देखी जानी चाहिए।
ये बच्चों और युवाओं को विशेष रुप से देखनी चाहिए। उन्हें जानना चाहिए कि यदि वे आज अपने धर्म के साथ इस देश में रहने के लिए स्वतंत्र हैं तो सिर्फ और सिर्फ छत्रपति शिवाजी और बाजी प्रभु देशपांडे जैसे वीर योद्धाओं के कारण ऐसा कर पा रहे हैं। ये फिल्म हिन्दी बेल्ट में हिन्दी भाषा के साथ दिखाई जा रही है। हिन्दी भाषी दर्शक इसे देख सकते हैं।