Sonali Misra. वर्ष 1857 का समय साधारण नहीं था, वह एक ऐसा वर्ष था जिसने तत्कालीन ईसाई शक्ति को यह सोचने पर विवश कर दिया था कि अब उन्हें आगे क्या करना है? क्योंकि यह तो निश्चित था कि उन्हें जाना ही होगा।
उन्हें इस देश में बढ़ते हुए असंतोष से निबटना कठिन लगने लगा था। कहीं न कहीं उन्हें यह आभास था कि जो चिंगारी अभी लगी है, वह आगे जाकर विस्फोट करेगी। तो उन्होंने इस असंतोष को बहु आयामी रणनीति से तोड़ने का निश्चय किया। उन्होंने धार्मिक कार्ड खेला।
हर प्रकार से हिन्दू धर्म को अकेला किया। धीरे धीरे उन्होंने ऐसे ऐसे क़ानून बनाए जिन्होनें हिन्दुओं को अकेला और अकेला कर दिया। वास्तविकता यही है कि उन्हें सबसे बड़ा खतरा हिन्दू धर्म से ही था, क्योंकि 1857 के अधिकाँश नायक हिन्दू थे।
हिन्दुओं को हर ओर से अकेला करने का प्रयास किया गया और उन्हें कानूनों का सहारा लेकर तोड़ा गया, इतना तोड़ा गया कि वह आज तक खड़े नहीं हो पा रहे हैं। उनके हाथ काट डाले गए। उन्हें धर्म और पंथ की भूमि में अकेला कर दिया गया।

वर्ष 1857 की क्रान्ति के बाद असंतोष हालांकि दबा दिया गया था, परन्तु असंतोष की सुगबुगाहट थी। यह असंतोष हिंसक न हो जाए, और हिन्दुओं को अस्त्र विहीन कर दिया जाए, जो कि हिन्दू धर्म का मूल आधार हैं। हिन्दू धर्म में हर देव किसी न किसी शस्त्र के साथ है। इतना ही नहीं हमारी देवियों के पास भी शस्त्र हैं। शस्त्रों के अभाव में हिन्दू असहाय हैं। ईसाई शासकों ने एक प्रकार की असहायता और विवशता का विस्तार किया जब उन्होंने हमें हमारे शस्त्रों से अलग करने के लिए एक अधिनियम बनाया, जिसका नाम था THE INDIAN ARMS ACT! इसे एक अक्टूबर 1878 को लागू किया गया था।
हिन्दुओं को निर्बल करने के लिए बनाए गए अन्य क़ानून
भारत में 1857 से पहले शस्त्र नियंत्रण के कुछ क़ानून थे। परन्तु 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद, विद्रोह को कुचलने के लिए उन्होंने सबसे पहले हिन्दुओं के लिए हथियार रखना गैर कानूनी बनाया। यहाँ तक कि चाकू की भी परिभाषा तय की गयी।
“arms” includes-
(i) clasp-knives the blades of which are pointed and exceed three inches in length;
(ii) knives, with pointed blades rigidly affixed, or capable of being rigidly affixed, to the handle, and measuring in all over five inches in length which are not intended exclusively for domestic, agricultural or industrial purposes: provided that it shall be presumed until the contrary is proved that knives of this description are not intended exclusively for such purposes;
(iii) knives of such other kinds as the President of the Union may, by notification, prescribe; and
(iv) fire-arms, bayonets, swords, daggers, spears, spear-heads and bows and arrows, also cannon and parts of arms, and machinery for manufacturing arms;
“ammunition” includes also all articles specially designed for torpedo service and submarine mining, rockets, gun-cotton, dynamite, lithofracteur and other explosive or fulminating material, gun-flint, gun-wads, percussion-caps, fuses and friction-tubes, all parts of ammunition and all machinery for manufacturing ammunition, but does not include lead, sulphur or saltpetre;
हथियारों की परिभाषाओं में यह निर्धारित किया गया कि एक हिन्दू तेज और पैना चाकू भी नहीं रख सकता था, पैना या नुकीला चाकू केवल उन्हीं को रखने की अनुमति थी, जो उसका प्रयोग करते थे। हथियारों की परिभाषा में बंदूकें, तलवार, भाला , तीर कमान आदि भी सम्मिलित थे और हथियार बनाने की मशीनरी।
उसके बाद निर्माण, परिवर्तन और बिक्री में सम्मिलित था बिना लाइसेंस के कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार के अस्त्र, शस्त्र, गोला बारूद या सैन्य स्टोर का निर्माण, बिक्री या परिवर्तन तब तक नहीं करेगा जब तक उसके पास इसके लिए पर्याप्त लाइसेंस न हो

तथा यह भी था कि व्यक्ति अस्त्र या गोला बारूद को किसी भी ऐसे व्यक्ति को नहीं बेचेगा जिसके पास इसे रखने या खरीदने या बेचने का अधिकार नहीं है और यदि किसी के पास पाया जाता है तो उसे इसका पर्याप्त कारण बताना होगा और डीएम के पास कारण जमा करना होगा। आयात, निर्यात और परिवहन में कोई भी व्यक्ति समुद्र के माध्यम से या भू परिवहन के माध्यम से न ही आयात कर सकता था और न ही निर्यात कर सकता था।
यहाँ तक कि कोई भी व्यक्ति किसी भी अस्त्र शस्त्र के साथ नहीं चल सकता था, जब तक कि उसके पास लाइसेंस न हो और उसके पास जो हथियार हैं वह उसी के हिसाब से हो जिस के अनुसार लाइसेंस मिला हो। लाइसेंस से मुक्त कुछ हथियार थे जिनमें शामिल थे वह चाकू जिन्हें घरेलू या कृषि कार्यों के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
किसी भी व्यक्ति को किसी भी अन्य प्रकार के अस्त्र शस्त्र रखने की अनुमति नहीं थी इतना ही नहीं जिन व्यक्तियों को धार्मिक आधार पर या किसी अन्य आधार पर लाइसेंस प्राप्त था, उसे भी सरकार किसी भी समय रद्द कर सकती थी।
इन कानूनों को तोड़ने पर दंड का प्रावधान था और लाइसेंस की शर्त तोड़ने पर धारा 19 या धारा 20 के अंतर्गत दंडनीय था और जिसमें छह महीने की कैद या पांच सौ रूपए का अर्थ दंड या दोनों ही शामिल थे। इन्हें गैर कानूनी रूप से खरीदने और बेचने पर भी छह महीने की कैद या पांच सौ रूपए का अर्थ दंड या दोनों ही शामिल थे।
इसी क़ानून को आधार बनाकर वर्ष 1959 में कुछ धाराएं और कड़ी की गयी थी। और जिसने लाइसेंस देने वाले अधिकारियों को काफी शक्तियाँ प्रदान की थीं/ उसके बाद वर्ष 19 62 में नए शस्त्र क़ानून बने थे। इन कानूनों के अनुसार लाइसेंस के बिना बंदूकों या पिस्तौल के निर्माण, बिक्री, खरीद, आयात और निर्यात एवं उन्हें रखने पर प्रतिबन्ध था।
आयुध क़ानून 1959 के अनुसार दो श्रेणियां थीं प्रतिबंधित बोर और अप्रतिबंधित बोर। एक बोर का अर्थ बुलेट की मोटाई या डायामीटर होता है। अप्रतिबंधित बोर हथियार का अर्थ था .35, .32, ।22 और .380 बोर की पिस्तौले, सभी नागरिक आयुध क़ानून 1959 के अध्याय II और III के अंतर्गत एक प्रक्रिया के चलते इनके लिए आवेदन कर सकते हैं।
प्रतिबंधित बोर हथियारों में 9 मिमी की पिस्तौलें और .38, .455 और .303 की क्षमता वाली राइफल शामिल हैं और इनमें फुल और सेमी ऑटोमैटिक बंदूकें शामिल हैं। ऐसे सभी अस्त्र शस्त्रों का निर्माण , बिक्री, निर्यात और आयात पूरी तरह से सरकार के हाथों में है।
वर्ष 2019 में इन कानूनों में कुछ परिवर्तन किए गए, कुछ नियमों को और कड़ा किया गया। इसमें प्रावधान किया गया कि अभी व्यक्ति को तीन लाइसेंसी कृत हथियार रखने की अनुमति तो वहीं अब एक कर दिया गया है।
इसमें यह भी प्रावधान है कि व्यक्ति को अपने अतिरिक्त हथियार जमा करने की अवधि तीन वर्ष से घटाकर एक वर्ष कर दी गयी है। इसमें बिना लाइसेंस वाली बन्दूक और पिस्तौल खरीदने पर प्रतिबन्ध है और लाइसेंस के बिना एक तरह के हथियार को आप दूसरी श्रेणी में बदल नहीं सकते।
इसमें राइफल क्लब या एसोसिएशन के सदस्यों के लिए भी यह नियम है कि वह केवल 22 बोर राइफल या एयर राइफल के स्थान पर किसी भी हथियार से प्रैक्टिस कर सकते हैं। इसीके साथ इसमें दंड और कैद की अवधि बढ़ाई गयी है।
परन्तु आज जिस प्रकार की स्थिति बन रही है क्या यह आवश्यक नहीं था कि इन नियमों में ढील दी जाती और हिन्दुओं को कम से कम आत्मरक्षा के लिए अस्त्र रखने की अनुमति दी जाए।

इसी के साथ हिन्दू धर्म के साथ सबसे बड़ा आघात था वह था हिन्दुओं और सिखों को अलग करने वाला Gurudwara Act-1925 अर्थात गुरुद्वारा अधिनियम 1925।
इसका उद्देश्य यह बताया गया कि यह सिखों के धार्मिक स्थानों को सिखों के ही नियंत्रण में देने के लिए बनाया गया है। इस क़ानून में सिखों की परिभाषा भी दी गयी है, सिख की परिभाषा में है
सिख से अर्थ है वह व्यक्ति जो सिख धर्म का है, यदि मृतक का मामला है तो मृतक मरते समय तक सिख रहा हो। यह कैसे पहचाना जाए कि व्यक्ति सिख है या नहीं, तो उसके लिए राज्य (सरकार) के सामने यह घोषणा करनी होती थी
“मैं यह पुष्टि करता हूँ कि मैं एक सिख हूँ और मैं गुरु ग्रन्थ साहिब पर यकीन करता हूँ, कि मैं दस गुरुओ पर विश्वास करता हूँ और यह कि मेरा कोई और धर्म नहीं है।”

अमृतधारी सिख में हर वह व्यक्ति सम्मिलित था जिसने खेंदे-का अमृत या खानदा पाहुल लिया हो, जिसे सिख धर्म की परम्पराओं के अनुसार पञ्च प्यारों के हाथों से बनाया गया ही।
सहजधारी सिख का अर्थ उस व्यक्ति से था:
- वह जो सिख परम्पराओं के अनुसार पूजा करता हो
- जो किसी भी प्रकार से तम्बाकू या हलाल मांस न लेता हो
- जो पतित न हो और
- जो मूल मन्त्र गा सके
पतित से अर्थ ऐसे केशधारी सिखों से था जिसने अपनी दाढ़ी या केशों को काट लिया हो या फिर अमृत लेने वाले ने चार कुराहितों में एक या अधिक कुराहित किए हों
इस क़ानून के माध्यम से केवल सिखों को ही अलग धर्म घोषित नहीं किया गया बल्कि साथ ही उनके गुरुद्वारों को, जिसमें हिन्दू देवी देवताओं की भी मूर्तियाँ लगी रहती थीं, उन्हें केवल सिखों का ही धार्मिक स्थान घोषित कर दिया गया।
इसके साथ ही गुरुद्वारा बोर्ड में चुने हुए सदस्यों के मानकों में से हिन्दुओं को पूरी तरह से अलग कर दिया गया और कहा गया कि वह लोग सदस्य नहीं हो सकते हैं जो पच्चीस साल से कम के हों सिख नहीं हों अस्थिर दिमाग के हों पतित हों और साथ ही वह व्यक्ति सदस्य नहीं हो सकता है जो गुरमुखी पढ़ और लिख नहीं सकता।
परन्तु हिन्दुओं के साथ यह कैसी चाल चली गयी कि मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में लेकर बोर्ड में ऐसे सदस्य लाए गए जिन्हें संस्कृत तो दूर हिंदी का भी शब्द नहीं आता है। यहाँ तक कि इस क़ानून के अनुसार कोई भी ऐसा व्यक्ति चयनकर्ता भी नहीं हो सकता है जिसने अपनी दाढी या केशों को कटवाया हो या शेव किया हो।
इस कानून को पूरी तरह पढने पर ज्ञात होता है कि अंग्रेजों द्वारा बनाया गया यह क़ानून पूरी तरह से सिखों की पहचान के बहाने भले ही बना हो, पर यह पूरी तरह से भारत को तोड़ने का षड्यंत्र था जिसने सिखों को कानूनन हिन्दुओं से अलग कर यह कार्य बखूबी किया है। यह एक विषबेल थी और जिसके फल आज किसान आन्दोलन के बहाने हमें दिख रहे हैं।