संदीप देव। गुजरात दंगे में पुलिस फायरिंग में कितने हिंदू और कितने मुस्लिम मरे; इसके संपूर्ण आंकड़े तो सरकार ने कभी उपलब्ध नहीं कराए हैं, परंतु समय-समय पर जो आंकड़े जारी हुए हैं, वह कुछ इस प्रकार हैं:-
11 May 2005 में संसद के अंदर UPA सरकार ने जो लिखित जवाब दिया, उसके अनुसार 2002 के गुजरात दंगे में 1044 लोग मरे, जिसमें 790 मुस्लिम और 254 हिंदू थे।
रिपोर्ट का एक अंश जो मेरी पुस्तक ‘साजिश की कहानी-तथ्यों की जुबानी’ में तत्कालीन गुजरात सरकार द्वारा उपलब्ध ‘कुछ’ आंकड़ों को पेश करती है। यह सारे आंकड़े नहीं हैं। आंकड़े इस प्रकार है:-
१) 27 फरवरी 2002: को साबरमती एक्सप्रेस में 59 H को जलाकर मारा गया, जिसमें 25 महिलाएं, 19 पुरुष एवं 15 बच्चे शामिल थे।
- उसी दिन सुरक्षा के लिहाज से 217 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिसमें 137 H और 80 M थे।
२) 28 feb 2002: 6000 हाजियों को गुजरात सरकार ने 400 गांवों/कस्बों तक सुरक्षित घर पहुंचाया गया। एक को भी खरोंज तक नहीं लगने दिया गया।
३) 1 March: दंगाईयों को देखते ही गोली मारने का आदेश जारी किया गया। इस आदेश को अमल में लाने के लिए 32 मजिस्ट्रेट को लगाया गया।
४) 2 March: पुलिस की गोली से 12 H और 4 M मरे।
- 573 लोगों को हिरासत में लिया गया, जिसमें 477 H और 96 M थे।
- उसी दिन 482 H एवं 229 M को गिरफ्तार किया गया।
५) 3 March: इस दिन पुलिस फायरिंग में केवल H मारे गये। एक भी M नहीं मरा। 10 H को पुलिस ने मार डाला।
- उसी दिन 280 H एवं 83 M को हिरासत में लिया गया, जबकि 416 H एवं 173 M को गिरफ्तार किया गया।
६) 4 March: इस दिन भी पुलिस की कार्रवाई में केवल H ही मारे गये। चार H को पुलिस ने गोली का शिकार बनाया।
- 285 लोगों को हिरासत में लिया गया, जिसमें 241 H एवं 44 M थे।
- गिरफ्तार लोगों में 301 H एवं 75M थे।
७) गुजरात दंगों में 450 से अधिक लोगों को अदालतों ने दोषी ठहराया है, इनमें से 350 H और 100 M हैं।
अन्य आंकड़ों को छुपाया गया, परंतु नानावती कमीशन के समक्ष एक पुलिस अधिकारी का बयान कुछ सच दर्शाता है।
2004 में, IPS राहुल शर्मा ने नानावती आयोग के समक्ष गवाही में कहा था कि भावनगर में पुलिस गोलीबारी में मुसलमानों की तुलना में हिंदू अधिक मारे गए थे।
दंगों के दौरान शर्मा भावनगर जिले के पुलिस अधीक्षक थे।
पुलिस के उपरोक्त आंकड़ों, एक तत्कालीन IPS के बयान और अदालत में पुलिस द्वारा पेश केस, जिसके कारण अधिक संख्या में हिंदुओं को सजा मिली; इससे गुजरात दंगों के दौरान पुलिस प्रकृति का अनुमान कुछ-कुछ तो लगाया ही जा सकता है!