विपुल रेगे। मंगलवार की सुबह देश के प्रमुख मीडिया संस्थानों ने राम-लक्ष्मण-सीता की नई मूर्ति की फोटो छापकर ये दावा किया कि ये मूर्ति अयोध्या के नव निर्मित राम मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित होगी। बताया जा रहा है कि ये नई मूर्ति कर्नाटक के मूर्तिकार योगीराज अरुण ने बनाई है। जैसे ही इस मूर्ति का फोटो बाहर आया, एक नया विवाद पैदा हो गया। मूर्ति में कई त्रुटियां बताई जा रही है। सबसे बड़ी गलती तो लक्ष्मण जी की मूर्ति बनाने में हुई है। मूर्तिकार ने लक्ष्मण जी को हाथ बांधकर खड़ा कर दिया है। केंद्र सरकार या श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की ओर से अब तक इस बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
इन दिनों राम मंदिर निर्माण को लेकर ख़बरों का तूफ़ान सा आ गया है। आम नागरिकों को ये समझना मुश्किल हो जाता है कि कौनसी खबर सत्य है और कौनसी खबर प्रोपोगेंडा के तहत इंजेक्ट की जा रही है। मंगलवार को देशभर के नागरिक उस समय चौंक गए, जब राम मंदिर के गर्भ गृह में लगने वाली राम-सीता-लक्ष्मण की मूर्ति का फोटो सुबह के अख़बारों में छापा गया। जागरण के सहयोगी अखबार नईदुनिया ने भी ये खबर फोटो के साथ छापी। इस खबर को ज़ी न्यूज़ जैसे संस्थान ने भी आधिकारिक रुप से छापा है।
सोशल मीडिया और मैन स्ट्रीम मीडिया के बीच की दूरी इस मामले में स्पष्ट दिखाई देती है। सोशल मीडिया पर भक्त मंडली इस बात से साफ़ इंकार कर रही है कि ये वाली मूर्तियां गर्भ गृह में स्थापित की जाएगी और नईदुनिया जैसे अखबार प्रथम पेज पर दावे के साथ ये खबर लिख रहे हैं। इस मामले में सच कौन बोल रहा है, कहा नहीं जा सकता।
केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी ने तो अपने एक्स अकाउंट पर इस बात की पुष्टि करते हुए लिखा है कि ‘जहां राम हैं, वहां हनुमान हैं, अयोध्या में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा के लिए मूर्ति का चयन अंतिम रूप ले लिया गया है। हमारे देश के प्रसिद्ध मूर्तिकार, हमारे गौरव श्री @ योगीराज अरुण, उनके द्वारा बनाई गई भगवान राम की मूर्ति होगी अयोध्या में स्थापित की जाएगी।’ मंत्री महोदय स्पष्ट रुप से कह रहे हैं कि यही 51 इंच की मूर्ति अयोध्या राम मंदिर में स्थापित की जाएगी। हालाँकि कल को बात बिगड़ने पर वे कह सकते हैं कि उन्होंने गर्भगृह में इस मूर्ति की स्थापना की बात नहीं की थी।
मूर्ति को लेकर विवाद हो जाना स्वाभाविक है। यदि विवाद न होता तो हम कह सकते थे कि भारत का सनातनी पूर्ण रुपेण राजनीतिक रुप से अंधत्व को प्राप्त हो गया है। मूर्तियों को ध्यान से देखना आवश्यक है। इन मूर्तियों की त्रुटियों को मानने के लिए भाजपाई राजनीतिक हृदय नहीं चाहिए। इन भयानक गलतियों को आप एक सनातनी होकर देखें, ये आवश्यक है। देश का ऐसा कौनसा मंदिर है, जहाँ राम और सीता के साथ लक्ष्मण हाथ बांधे खड़े हैं। देश के प्राचीन मंदिरों में लक्ष्मण या तो हाथ जोड़े दिखाई देते हैं, या उनके हाथ में धनुष होता है। इस तरह से लक्ष्मण जी को हाथ बांधकर दिखाने के पीछे का मजबूत तर्क क्या है, वह इन महान मूर्तिकार से अवश्य पूछा जाना चाहिए।
गलतियां तो और भी दिखाई देती है। जैसे राम, लक्ष्मण और सीता की ऑंखें बंद हैं। ऐसा क्यों किया गया ? हनुमान जी राम जी के समक्ष नहीं बल्कि लक्ष्मण जी के समक्ष बैठे हैं। हनुमान जी की गदा भी पिचकी हुई दिखाई देती है। ये सारी त्रुटियां उन सनातनी लोगों ने पकड़ी है, जिन्हे आजकल भक्त मण्डली कांग्रेसी और देशद्रोही कहकर उपहास उड़ाती है। सोशल मीडिया पर भक्त मंडली बहुत सारे तर्क दे रही है। मंडली का कहना है कि ये मूर्तियां गर्भगृह में स्थापित नहीं होगी। जबकि नईदुनिया और ज़ी न्यूज़ जैसे संस्थान दावा कर रहे हैं कि इन्हीं मूर्तियों को स्थापित किया जाना है।
फिर हम केंद्रीय मंत्री के मोहर वाले बयान को क्यों भूल जाए भला। उन्होंने अपने ट्वीटर हैंडल से आधिकारिक रुप से इस खबर की पुष्टि की है। अयोध्या के राम मंदिर के लिए ऐसी त्रुटियों वाली मूर्तियों का चयन करना दुर्भाग्यपूर्ण है। इस मामले पर सरकार की चुप्पी अखरने वाली है। केंद्र सरकार की ये अड़ियल शैली कई बार उसे मुसीबत में लेकर आई है। इस प्रकरण ने देश के नागरिकों के सम्मुख कई बड़े प्रश्न खड़े कर दिए हैं।
पहला प्रश्न ये कि विवाद होने के बाद सरकार या श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की ओर से संतुष्टिजनक स्पष्टीकरण क्यों नहीं दिया गया ? दूसरा प्रश्न ये कि इन मूर्तियों को किसने और किस आधार पर चुना ? क्या उन्हे हाथ बांधे हुए लक्ष्मण नहीं दिखाई दिए ? क्या सरकार उन लोगों के प्रश्नों के उत्तर देना आवश्यक नहीं समझती, जो लगातार राम मंदिर निर्माण में हो रही मनमानी का विरोध कर रहे हैं, सवाल कर रहे हैं ? केंद्रीय मंत्री के बयान और देश के विश्वसनीय अख़बार में इस खबर के छपने के चौबीस घंटे बीत जाने के बाद भी सरकार आगे क्यों नहीं आ रही ?
योगीराज अरुण द्वारा बनाई गई इन मूर्तियों को देख कई नागरिक आहत हुए हैं। वैसे यहाँ कोई गतिरोध की स्थिति नहीं है। यहाँ जनता सड़क पर आकर नहीं बैठी है। ये विरोध कुछ चंद लोगों द्वारा किया जा रहा है इसलिए इसे नज़रअंदाज़ करना आसान है। जब केंद्र ने शंकाराचार्य जैसी हस्ती के विरोध को हवा में उड़ाकर रख दिया तो ये बेचारे तो सामान्य नागरिक हैं। राम मंदिर में लगने वाली हर ईंट पर विश्व के हर सनातनी का अधिकार है। ये मंदिर उसके पैसे और उसके हौंसले से बना है। इस मंदिर के निर्माण में हो रही त्रुटियों पर सवाल करना भी उसका अधिकार है।
हालांकि सत्ता के मद में डूबे श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कर्ताधर्ता जनता के विरोध पर नाक तक न खुजा रहे हैं। मंदिर निर्माण पूरा हो चुका है और अब राम जी अजोध्या जी में विराजने जा रहे हैं। विजय दुदुंभिया बज रही हैं। इतिहास बताता है कि अयोध्या चार बार उजड़ी। इसके बाद ये क्षेत्र उजाड़ हो चुका था। कथाओं के अनुसार महाराजा विक्रमादित्य अजोध्या जी पहुंचे थे। उनके ही प्रयासों से राम जन्म भूमि खोजी जा सकी थी। कहते हैं उन्होंने एक नव प्रसूता गौ माता को वहां घुमाया। घूमते हुए गौ माता ने एक स्थान पर अपना दुग्ध छोड़ दिया था। समझा गया कि उसी स्थान पर राम लला ने जन्म लिया था। बड़े ही भागीरथी प्रयासों से राम जन्म भूमि की पुनः खोज हुई थी। जो स्थान इतने प्रयासों से खोजा गया, जिसकी रक्षा करते करते हज़ारो शीश बलिदान हुए, उसे लेकर इतनी कमतरी देख मन गहन दुःख में डूब जाता है।