लाखों बार कुर्बान ऐसे ‘बुर्जुआ’ पर….
बाजार से गुजर रहा था,
तुम आगे थी,
और मैं पीछे।
देखा, एक गुलाब वाला बुजुर्ग गुमशुम-सा बैठा था,
उसका बेटा गुलाब समेटने की तैयारी में था,
सोचा तुम्हारे लिए एक गुलाब ले लूं।
जानता हूं गुलाब तुम्हें सर्वाधिक प्रिय है,
गुलाब में तुम्हारे होठों की लाली है,
लेकिन तुम्हारे साथ ख्याल उसका भी था,
जाते-जाते एक गुलाब बिकने से जिसे खुशी मिलती।
बढ़ चला उसकी ओर और एक गुलाब उठा लिया,
बुजुर्ग और उसके बेटे की आंखें चमकी,
तुम्हारी ओर मुड़ा,
देखा, तुम मुस्कुरा रही थी!
आहा!
तुम्हारी वह मुस्कुराहट,
और आंखों में तैरती वह हंसी…!
निराला ने ‘कुकुरमुत्ता’ में गुलाब को बुर्जुआ कहा था!
उस ‘बुर्जुआ’ के कारण एक मजदूर के आंखों में आज चमक देखी,
उस ‘बुर्जुआ’ के कारण ही आज तुम्हारी खिलखिलाती हंसी देखी,
लाखों बार कुर्बान ऐसे ‘बुर्जुआ’ पर,
जिसकी कली में आज दो-दो जिंदगियों की लाली देखी!
URL: India Speaks Daily hindi poem by Sandeep Deo
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