विपुल रेगे। 27 अप्रैल की सुबह पत्रकार बरखा दत्त के पिता का निधन होता है। दो दिन बाद वे सीएनएन को इंटरव्यू देकर आरोप लगाती हैं कि जिस एम्बुलेंस में पिता को ले जाया गया था, उसका ऑक्सीजन सिलेंडर काम नहीं कर रहा था। बरखा दत्त ने ये आरोप विदेशी मीडिया के सामने लगाया है। जबकि ये पता चला है कि बरखा के पिता को ले जाने वाली एम्बुलेंस में सारी व्यवस्थाएं ठीक थी। भारत के विरुद्ध संपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मीडिया उठ खड़ा हुआ है। ऐसे में एक भारतीय पत्रकार अपने पिता को लेकर झूठी कहानी रचती है और विदेशी मीडिया के सम्मुख भारत को अपमानित करती है तो प्रश्न उठता है कि केंद्र सरकार क्या कर रही है ?
बरखा दत्त ने जब सीएनएन पर ये आरोप लगाया कि उनके पिता को लगाया गया ऑक्सीजन सिलेंडर काम नहीं कर रहा था, तो उस एम्बुलेंस का ड्राइवर मीडिया के सामने आया। सोनू ने बताया कि मैडम उसके पास आई थी और एम्बुलेंस की व्यवस्थाओं के बारे में पूछा था। बरखा ने सोनू से ये भी पूछा था कि ऑक्सीजन सिलेंडर है या नहीं। सोनू ने उनको बताया कि उसके पास बड़ा सिलेंडर है।
जब एम्बुलेंस में बरखा के पिता को ले जाया जा रहा था तो बरखा ने कई बार एम्बुलेंस रुकवाई थी, ऐसा सोनू ने मीडिया को बताया है। सोनू के अनुसार जब वह बरखा के पिता को लेकर अस्पताल गया, तो उनकी हालत ठीक दिखाई दे रही थी। सोनू के मुताबिक बरखा ने स्वयं उससे कहा था कि पिता को ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं है। इसके बाद जब लुटियंस की ये पत्रकार सीएनएन से बात करती हैं तो दूसरी ही बात कहती है।
बरखा कहती है ‘मेरे पिता ने कहा कि उनकी सांसें घुट रही है, मुझे ट्रीटमेंट चाहिए।’ जबकि ड्राइवर सोनू के अनुसार बरखा के पिता की हालत एम्बुलेंस में ले जाते समय ठीक थी। बरखा उस इंटरव्यू में कहती है कि भारत के फ्रंटलाइन वर्कर्स तो अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन इस आपदा में बड़ी गलती सरकार की है। एक आम भारतीय के घर में मुख्य सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो उसकी मनोस्थिति ऐसी नहीं होती कि मीडिया से बात करे।
यहाँ तो बरखा सीएनएन से ऐसे बात करती दिखाई देती हैं, जैसे उनको पिता के जाने का कोई दुःख ही नहीं है। बरखा दत्त की नीयत इस बात से स्पष्ट होती है कि वे अपनी शिकायत विदेशी मीडिया के पास लेकर जाती हैं, वे भारतीय मीडिया से बात नहीं करतीं। भारत का एक पत्रकार विदेश को बताए कि उसके पिता को ऑक्सीजन नहीं मिली, तो ये देश के लिए कितनी अपमानजनक बात है।
मुझे आश्चर्य है कि कोविड काल में भारत की सरकार इस तरह के फेक न्यूज़ एजेंडे को रोक पाने में अक्षम ही सिद्ध हुई है। किसान आंदोलन के समय झूठी रिपोर्टिंग कर लोगों को भड़काने वाले पत्रकार राजदीप सरदेसाई पर ये सरकार प्रकरण दर्ज कराने के अलावा कोई कार्रवाई नहीं कर सकी। पत्रकारीय संस्थाओं का दुःसाहस देखिये कि इस वर्ष सरदेसाई को अच्छी रिपोर्टिंग के लिए सम्मानित किया गया है।
भारतीय मीडिया संकट के इस समय में भारत को संसार में अपमानित करने का कार्य कर रहा है। फेक न्यूज़ का कारोबार चरम पर है। झूठ फैलाने के लिए बरखा दत्त जैसे पत्रकार अपने मृत पिता का सहारा ले लेते हैं। कुछ वर्ष पूर्व जब भारत में प्रेस को स्वतंत्रता मिली तो सोचा न था कि आज उस स्वतंत्रता का ऐसा दुरुपयोग देखने को मिलेगा।
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 19 (1) (क), के अंतर्गत वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या प्रेस की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। गंभीर रूप से आपत्तिजनक सूचनाएं जो कम्प्यूटर या मेल, ईमेल या सोशल नेटवर्किंग द्वारा देश की एकता एवं सम्प्रुभता को ठेस पहुँचाने पर सरकार रोक लगा सकती है। संभवतः केंद्र सरकार के एक मंत्री को इस अनुच्छेद की जानकारी नहीं है।
आज 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस है। इस बार इस दिवस की थीम रखी गई है ‘जनता की भलाई के लिए जानकारी।’ भारत के मीडिया समूह को इस थीम पर आचरण करने की आवश्यकता है। ये थीम राजदीप सरदेसाई और बरखा दत्त को पढ़नी चाहिए कि यूनेस्को क्या कह रहा है। वह बता रहा है कि आपदा के इस विकट समय में पत्रकारों का आचरण ऐसा होना चाहिए कि नागरिक को अच्छी जानकारी उपलब्ध करवाए, ऐसी जानकारी दे, जो उनकी भलाई में सहायक हो। कोविड काल में हर पत्रकार का यही धर्म होना चाहिए।
कुछ तो शर्म करो। अपने पिता की मृत्यु को
भी ऐसे भुनाओगे क्या?