शेखर गुप्ता, बरखा दत्त और श्वाति चतुर्वेदी जैसे पत्रकारों ने संगठित रूप से अभियान चलाकर कठुआ रेप मामले को तूल दिया है। यही कारण है कि इस घटना के तीन महीने बाद सोशल मीडिया पर अचानक उबाल आया है। जाहिर है कि इस तरह की स्थानीय घटनाओं को देश भर में प्रचारित करने के लिए कैंब्रिज एनालिटिका ने एक रणनीति बनाई है। इस तरह के मनगढ़ंत अभियान चलाने के लिए उसने देश के 69 पत्रकारों को पे-रोल पर रखने की सूची बनाई है। अब सवाल उठता है कि ये लोग भी cambridge analytica की उस सूची में शामिल हैं?
इसमें कोई दो राय नहीं कि कठुआ रेप जैसे जघन्य अपराध को अंजाम देने वाले अपराधियों के प्रति सहानुभूति रखना भी एक अपराध ही होता है। लेकिन जो पत्रकार निहित स्वार्थ के चलते भेड़िया आया, भेड़िया आया जैसे झूठ फैलाते है वह भी किसी जघन्य अपराध से कम नहीं। कठुआ मामले में संगठित रूप से शेखर गुप्ता, बरखा दत्त और श्वाति चतुर्वेदी जैसे ‘पीडी पत्रकारों’ भेड़िया आने का झूठ फैलाकर एक अपराध किया है। दूसरे शब्दों में कहें तो इन लोगों ने डाटा चोर कैंब्रिज एनालिटिका की थ्योरी को प्रायोगिक तौर पर सही साबित कर दिखाया है। कहने का मतलब साफ है कि ये अब पत्रकार नहीं बल्कि कैंब्रिज एनालिटिका के टूल्स बन कर रह गए हैं।
जब से कठुआ रेप कांड हुआ है, तब से लेकर तीन महीने तक का सोशल मीडिया पर ट्रेंड के अध्ययन से पता चला है कि इस मामले को जानबूझ कर एक साजिश के तहत तूल दिया गया है। अगर ऐसा नहीं तो क्यों नहीं जब यह घटना घटी तब सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी? क्या हुआ कि तीन महीने बाद अचानक सोशल मीडिया खासकर ट्वीटर पर इस घटना को लेकर बाढ़ सी आ गई?
आप जरा घटनाक्रम पर ध्यान दीजिए। कठुआ रेप की घटना 10 जनवरी को हुई थी। इस मामले में तीन महीने बाद 19 अप्रैल को आरोपी की गिरफ्तारी हुई। इस बीच एक घटना और घटी वह थी राहुल गांधी के उपवास की घटना। जैसे ही राहुल गांधी के उपवास का एजेंडा फ्लॉप हुआ सोशल मीडिया पर कठुआ रेप मामले को तूल देना शुरू हो गया । तभी अचानक द प्रिंट के संचालक शेखर गुप्ता का इस मामले को लेकर ट्वीट आता है, और फिर बरखा दत्त और श्वाति चतुर्वेदी इस मामले में ट्वीट करती है। हालांकि 12 अप्रैल की शाम तक यह मामला मरा हुआ मान लिया जाता है, लेकिन 13 अप्रैल से अचानक इस मामले को लेकर सोशल मीडिया और ट्वीटर पर बाढ़ सी आ जाती है और पूरे देश में इस मामले को लेकर चर्चा गर्म हो जाती है।
सोशल मीडिया और ट्वीटर ट्रेंट के घटनाक्रम को जोर के देखे तो स्पष्ट दिखेगा कि यह संगठित रूप से हिंदू समुदाय को बदनाम करने का अभियान था। इससे यह भी साबित होता है कि cambridge analytica ने इसी प्रकार के अभियान को अंजाम देने के लिए फेसबुक के मालिक जुकरबर्ग से फेसबुक का डाटा खरीदा था। सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं के साथ देशवासियों को भी कैंब्रिज एनालिटिका के उन 69 पत्रकारों के गिरोहों के चंगुल से बचने के लिए सावधान रहना होगा। जिन्हें इस प्रकार के अभियान में उपयोग करने के लिए cambridge analytica ने पे रोल पर रखा है।
सन्दर्भ : साभार keyhole.co
URL: Barkha Dutt and Shekhar Gupta’s joint venture spread out’Kathua Rape Case
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