विपुल रेगे। श्रीकृष्ण और द्वारिका के रहस्य पर बनी ‘कार्तिकेय :2’ ने दर्शकों का मन जीत लिया है। जितनी इस फिल्म से उम्मीद नहीं लगाई गई थी, उससे अधिक ये दे देती है। कथा को धर्म के प्रतीकों से जोड़कर रहस्यों का सुंदर जाल बुना गया है। इस तरह की फिल्मो का भारत में पहले कोई भविष्य नहीं था लेकिन कार्तिकेय के दूसरे भाग ने सुनिश्चित किया है कि रहस्य कथाओं को प्रस्तुत करने की लायकी हो तो भारत में भी ऐसी फ़िल्में सराही जा सकती है।
कार्तिकेय के प्रथम भाग ने अधिक कलेक्शन नहीं किया था लेकिन दूसरा भाग तथ्यात्मक स्क्रीनप्ले के साथ अत्यंत आकर्षक बन पड़ा है। फिल्म तेज़ी से सफल होने की ओर बढ़ रही है। फिल्म के सफल होने के बाद भारत में इस जॉनर की फिल्मों का एक समृद्ध दर्शक वर्ग खड़ा हो जाएगा। ये दर्शक वर्ग अब तक पश्चिम की रहस्यवादी फ़िल्में देख अपनी क्षुधा शांत करता आया था। फिल्म का कथानक वही से आगे बढ़ता है, जहाँ से पिछले भाग में इसे छोड़ा गया था।
कार्तिकेय पिछले भाग में मेडिकल का विद्यार्थी था और अब डॉक्टर बन चुका है। एक दिन कार्तिकेय से एक व्यक्ति टकराता है। वह बुरी तरह घायल है। वह कार्तिकेय को श्रीकृष्ण के बारे में कुछ बता रहा है। इसके बाद कार्तिकेय इस रहस्य की खोज में लग जाता है। ग्रीस की लाइब्रेरी से गुप्त सोसाइटी के व्यक्ति को द्वारिका और श्रीकृष्ण से जुड़ा एक रहस्य पता चलता है। कृष्ण अपने महाप्रयाण से पहले अपने पैर का एक कुंडल अपने विश्वस्त को दे गए थे।
इस कुंडल पर जो जानकारियां है, उनमे पृथ्वी पर आने वाले जानलेवा वायरसों का इलाज छुपा हुआ है। वह कुंडल बहुत ही सुरक्षित स्थान पर छुपाकर रखा गया है। उसे खोजने के लिए एक विशेष चाबी बनाई गई है, जो दो भागों में विभक्त कर अलग-अलग स्थानों पर छुपा दी गई है। रहस्य के ताने बाने को निर्देशक ने सुंदर ढंग से धर्म के साथ जोड़ा है। ये फिल्म युवाओं को बहुत पसंद आने वाली है। फिल्म में कृष्ण की निरी भक्ति नहीं दिखाई गई है बल्कि उन्हें एक बायोलॉजिकल गॉड की भांति दिखाया गया है।
फिल्म में अनुपम खेर एक प्रभावशाली भूमिका में हैं। उनका एक दृश्य दर्शकों को बहुत भा रहा है। इस दृश्य में वे बताते हैं कि कृष्ण भगवान् नहीं अपितु भगवान् से भी बढ़कर है। ये दृश्य वैसा ही है, जैसा श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश देने वाला प्रसंग है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, दर्शक की रुचि भी बढ़ती चली जाती है। कंटेंट के स्तर पर फिल्म ज़रा भी कम नहीं पड़ती। श्रीकृष्ण के समय की एक जाति समूह का उल्लेख किया गया है, जो नव कृष्ण भक्तों की हत्या करता है।
वह इतना बड़ा कृष्ण भक्त है कि यदि कृष्ण पक्ष शुरु हो जाए तो हत्या का विचार छोड़ देता है। ढाई घंटे की फिल्म एक अत्यंत रोमांचक अंत पर समाप्त होती है। निर्देशक चंदू मोंडेती ने एक प्रभावी सराहनीय फिल्म बनाई है। पश्चिम में अमेरिकन ट्रेजर, ममी और टुम्ब रैडर जैसी फिल्मों को देखकर मन में विचार आता था कि भारत के समृद्ध पौराणिक कथानक पर ऐसी फ़िल्में कब बनाई जाएगी। कार्तिकेय का दूसरा भाग देखते हुए इस प्रश्न का उत्तर भी मिल गया।
इस फिल्म को निश्चित ही दर्शकों का भरपूर प्रेम मिलेगा। पहले से बॉक्स ऑफिस पर संघर्ष कर रही लाल सिंह चड्ढा और रक्षाबंधन कार्तिकेयन के सामने टिक नहीं सकेगी। बॉलीवुड को एक और नया प्रतियोगी मिल गया है। अब भी नहीं संभले तो बॉलीवुड इतिहास में दफ़न होकर न रह जाए।