हमेशा कहा जाता है कि पृथ्वी पर मानव का संपूर्ण इतिहास रहस्यों के कुहासे में घिरा हुआ है। विगत हज़ारों वर्षों की यात्रा में पृथ्वी ने ऐसे कई प्रमाण मिटा दिए या छुपा दिए, जिनकी सहायता से मानव इतिहास को पुनः लिखा जा सकता था। सन 2018 में कुछ ऐसा हुआ कि पुरातात्विक अभियानों को एक सारथी मिल गया। लिडार मेपिंग की सहायता से ग्वाटेमाला के सघन वनक्षेत्र में छुपे एक संपूर्ण नगर का पता लगाया गया है।
कहा जा रहा है इस खोज के बाद विश्व इतिहास को फिर से लिखना पड़ेगा। इतिहास को फिर से लिखने की आवश्यकता तो भारत के इतिहासकारों को भी पड़ गई है, जबसे उत्तरप्रदेश में सिनौली की खोज की गई है। सिनौली में लिडार तकनीक की आवश्यकता क्यों है, इसके लिए पहले इस तकनीक के बारे में जान लेना आवश्यक है।
लिडार तकनीक में विशेष लेजर की सहायता से सरफेस पर लाइट फेंकता है। इसके बाद इस विशेष क्षेत्र में छुपे पुरातात्विक अवशेष स्क्रीन पर दिखाई देने लगते हैं। सन 2018 में इस तकनीक की सहायता से पता चला कि सेंट्रल अमेरिका के ग्वाटेमाला के घने जंगलों में एक पूरा शहर छुपा हुआ है। कार्बन डेटिंग हज़ार वर्ष से भी आगे जा रही है। इस सभ्यता का संबंध माया सभ्यता और होंडुरस की सभ्यता से है। विदित हो कि होंडुरस में हिन्दुओ के भगवान हनुमान की कई मूर्तियां प्राप्त हुई थी।
इन मूर्तियों को हनुमान से इसलिए जोड़ा गया क्योंकि मूर्तियों के हाथ में गदा भी दर्शाई गई थी। लिडार तकनीक से पता चला कि ग्वाटेमाला के जंगलों से विलुप्त हुई ये सभ्यता नगर संयोजन और पानी की आवक और निकासी के लिए वैज्ञानिक तरीके अपना रही थी, जैसे हम सिंधु घाटी सभ्यता के नगर संयोजन देखते हैं। उत्तरप्रदेश के सिनौली में जो खोज हुई है, उससे बड़ा खज़ाना वहां के खेतों में दबा हुआ है।
वहां भी ऐसी ही एक नगरी दबी पड़ी है। यदि लिडार तकनीक भारत सरकार उपलब्ध करवा सके तो न केवल सिनौली, बल्कि देश के अन्य छुपे हुए ख़ज़ाने सामने आ सकते हैं। भारत विश्व संस्कृति का प्रतिनिधि है, इसे सिद्ध करने का रास्ता हमारे देश के भीतर से ही जाता है। यदि हम सिर्फ अपने पुरातात्विक अभियानों को आधुनिक तकनीक प्रदान कर सके तो ये बहुत जल्दी संभव हो सकता है।
इतिहास को अतीत में बहुत तोड़ा-मरोड़ा गया है। विश्व के अनेक भागों में हुए अभियानों में बहुत गोलमाल किया जाता है। जैसे मिस्र के पिरामिड और उसके सामने खड़े स्फिंक्स में शुरुआती जाँच में जो प्रमाण मिले थे, उनको छुपा दिया गया। ऐसा हमेशा से होता आया है। बस एक रूस है जो स्वीकार करता है कि पुरातन भारतीय जातियां वहां हज़ारों वर्षों से निवास करती रही है और वे मुख्य रुप से काली उपासक थे।
ग्वाटेमाला की खोज पर एक दर्शनीय डाक्यूमेंट्री बनाई गई है। इस डाक्यूमेंट्री का नाम ‘लास्ट ट्रेजर ऑफ़ माया स्नेक किंग’ है। इस रोचक डाक्यूमेंट्री में विस्तार से इस तकनीक के बारे में बताया गया है। सिनौली की खोज अभी चल रही है और इस पर विश्व के खोजियों की आँखें टिकी हुई है।
यहाँ विश्व का सबसे पुरातन रथ मिलने के बाद वे चिंता में हैं क्योंकि ऐसा रथ अब तक विश्व के किसी कोने में नहीं पाया गया है। भारत सरकार को सिनौली की खोज के लिए आधुनिक तकनीक की सहायता लेनी चाहिए। वहां जो कुछ दबा है, वह हमारी इतिहास की किताबों के पन्नें हमेशा के लिए बदल सकता है।