22 मार्च 2020, देशव्यापी एक दिन का ट्रायल लॉकडाउन और उसके बाद लगातार सिलसिलेवार लॉकडाउन पर लॉकडाउन। 138 करोड़ जनसंख्या के साथ समूचे देश में लॉकडाउन लगाना एक अत्यंत साहसिक काम था। इसके लिए सरकार की जितनी भी सराहना की जाये कम होगी। इस बात पर कोई शंका नहीं है कि, देशवासियों को कोरोना महामारी से बचाने के लिये सरकार ने बहुत ही साहसिक अद्वितीय कार्य किया है। परन्तु कुछ ऐसे भी कार्य किये गये, जो अत्यंत निंदनीय हैं।
आज भी हमारे देश की 60% से अधिक जनसंख्या मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम की सुविधा से वंचित है। ये लोग अभी भी स्वस्थ रहने और बीमारियों से निजात पाने के स्थानीय बहुप्रचिलित स्वास्थ्य पद्धतियों का प्रयोग करते हैं और मजबूरी में ही मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम का प्रयोग करते हैं। इसके बिपरीत विकसित देशों की अधिकांश जनता मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम का प्रयोग करती है। ऑंकडों से यह स्पष्ट है कि जिन देशों में जितना अधिक वैक्सीनेशन हुआ वहॉं उतनी अधिक मौतें हुईं। हमारे देश में कम मौतों का कारण सरकारी आफीसरों द्वारा टारगेट एचीव करने के लिये फेक वैक्सीन सर्टीफिकेट जारी करना और देश के अन्य प्रचलित लोकल स्वास्थ्य प्रणाली का प्रयोग। कई राज्य सरकारों ने सरकारी कर्मचारियों के वैक्सीन सर्टीफिकेट ना जमा कर पाने पर उनकी तनख्वाह बंद कर भूखों मरने पर मजबूर कर दिया था।
कोरोना के पहले सार्स, मार्स, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू इत्यादि कई प्रकार के इन्फेक्शन आये परन्तु बिना किसी दवा विशेष के थोडे ही समय में सभी स्वतः ही समाप्त हो गये। परन्तु कोरोना के साथ विश्व स्तर पर वैक्सीन की साजिश शामिल थी। जैसा कि विश्व विदित है कि कोरोना की रिसर्च अमेरिका की
दवा बनाने वाली कम्पनियॉं इस उद्देश्य से करवा रहीं थी कि भविष्य में उत्पन्न होने वाले खतरनाक वाइरस के लिये एडवांस में वैक्सीन की खोज की जा सके, जिससे आवश्यकता पड़ने पर अविलम्ब वाइरस को निरस्त किया जा सके। यह सोच वैचारिक रूप में उचित लग सकती है पर व्यवहारिक रूप में प्रकृति के साथ ऐसा खिलवाड़ बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है। जिसका डर था वही हुआ और कोरोना वाइरस को खतरनाक बनाने के बाद उसे विश्व विद्धंश हेतु रिलीज कर दिया गया। रिलीज होते ही वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियों ने जोर-शोर से प्रचार शुरू कर दिया और पूरी दुनिया को वैक्सीन बेंच डाला।
यह अब तक के मानव इतिहास का सबसे नृशंस एवं खतरनाक षडयंत्र था। इसमें वैक्सीन बनाने वालों के साथ विभिन्न देशों के शासक, शासन, प्रशासन, मीडिया, सम्पूर्ण मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम, विश्व स्वास्थ्य संगठन इत्यादि सभी सम्मिलित थे।
कोरोना काल में सरकार ने आपदा प्रबंधन के अंतर्गत तथाकथित इमर्जेंसी की परिस्थित पैदा कर दी। मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम के अलावा अन्य सभी स्वास्थ्य प्रणालियों के सुझावों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। सभी वैक्सीन का ही राग अलाप रहे थे और ऐन केन प्रकारेण वैक्सीन लगवाने के लिये लोगों को बाध्य किया जा रहा था। सरकारी अधिकारियों को अनाधिकृत तरीके से वैक्सीनेशन के कोटे निर्धारित किये गये थे। हवाई यात्रा, ट्रेन यात्रा, बस यात्रा, अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय आवागमन, ऑफिस, रेस्टोरेंट व सभी सार्वजनिक एवं सरकारी संस्थानों पर बिना वैक्सीन लगवाये आने जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। सरकार अधिकाधिक वैक्सीन कम से कम समय में लगाने की डींगे पूरे दुनिया में हांक रही थी। इन सब के बावजूद सरकार ने देश के सर्वोच्च न्यायालय में एक एफिडेविट के माध्यम से यह बताया है कि वैक्सीन लेना स्वैच्छिक था और जिनकी भी मृत्यु वैक्सीन लगवाने के बाद हुई है वह स्वयं ही जिम्मेदार है।
सरकार ने 276 पेज के एफिडेविट में वैक्सीन से जुड़े भिन्न-भिन्न इंस्टीट्यूशन द्वारा अपना-अपना उत्तरदायित्व सही ढंग से निभाने का उल्लेख किया है और सराहना की। सरकार का यह कृत्य, गैरजिम्मेदारी का प्रतीक है और समस्त देशवासियों को गलत एफिडेविट पेश करने का साहस देता है। इस प्रकार की गतिविधियॉं समूचे देश की छवि को नुकसान पहुंचाती है और इससे देश का चरित्रहनन होता है।
कमाण्डर नरेश कुमार मिश्रा,फाउन्डर ऑफ ज़ायरोपैथी