संदीप देव। नरेंद्र मोदी या अरविंद केजरीवाल जैसे व्यक्तित्व को ‘नारसिसिस पर्सनालिटी’ क्यों कहा जाता है? चलिए इसके पीछे की कहानी सुनाता हूँ।
नारसिसिस और उसकी प्रेमिका एक झील किनारे रहते थे। एक दिन नारसिसिस झील में पानी लेने गया। पानी भरने के लिए ज्यों ही वह झील में झुका उसने अपना प्रतिबिंब पानी में देखा और खुद की खूबसूरती पर ही वह मोहित हो गया! उसने हिलना-डुलना भी छोड़ दिया कि कहीं प्रतिबिंब मिट न जाए! उसकी प्रेमिका उसकी राह देखती-देखती, एक दिन उसे छोड़कर चली गई!
स्वयं पर मोहित नारसिसिस उसी अवस्था में जड़ हो गया! आज भी झील व नदी के किनारे नारसिसिस का पेड़ पाया जाता है। उसकी टहनियां पानी की ओर ही झुकी होती है, जैसे आज भी वह अपने प्रतिबिंंब को निहार रही हों!
नारसिसिस आत्मरति या आत्ममुग्धता से उत्पन्न जड़ता का प्रतीक है।
प्रचार के भूखे नेता भी ‘नारसिसिस पर्सनालिटि’ से ग्रस्त हैं! भारत की जनता उनकी प्रेमिका की तरह है, जिसके समक्ष इन नेताओं की आत्ममुग्धता से उत्पन्न जड़ता धीरे धीरे प्रकट होने लगी है! यही हाल रहा तो अगले चुनाव तक वह उनका साथ भी छोड़ सकती है!
वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ‘नारसिसिस पर्सनालिटि’ का अभूतपूर्व राजनैतिक उदाहरण हैं! दुनिया भर के मनोचिकित्सक ऐसे लोगों को ‘नारसिसिस पर्सनालिटि डिसऑर्डर’ का शिकार मानते हैं, जो आत। ममुग्धता में कैद होकर रह गये हों!
इससे पहले कि देर हो जाए प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ‘नारसिज्म’ से खुद ही उबर जाना चाहिए! #SandeepDeo