संदीप देव। जिन भगवान राम ने पितृ धर्म निभाने के लिए राष्ट्र छोड़ा, जिन भगवान कृष्ण ने धर्म की स्थापना के लिए अपनों के विरुद्ध भी शस्त्र उठाने का ज्ञान दिया, जिस भगवान परशुराम ने अधर्म होता देख राष्ट्र को सत्ताहीन बना दिया, उस धर्म को छोड़ यह बाबा संघी नारा- ‘राष्ट्र देवो भव:’ का राग अलाप रहे हैं।
‘भारत राष्ट्र’ में तो कभी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंग्लादेश वाला हिस्सा भी शामिल था, परंतु जहां-जहां से सनातन धर्म का विलोप हुआ वह आज भारत राष्ट्र का हिस्सा नहीं हैं! यह कड़वा सत्य है, जिससे आंख फेरना भारत के और विभाजन को न्यौता देने के समान है। धर्म विहीन राष्ट्र आत्मा-विहीन शरीर की तरह है, जो केवल दुर्गंध करता है।

औरतों की मंडियां सजी हुई है धर्मविहीन राष्ट्र में और यह ‘भारत माता’ की जय बोल रहे हैं, बिना यह जाने की भारत का नाम महाराज भरत के नाम पर पड़ा था। कम से कम भागवत पुराण ही पढ़ लें ये बाबा। सच तो यह है कि संघियों के ‘भारत माता’ का नारा पहली बार 1873 में बंगाली लेखक किरणचंद्र बंदोपाध्याय के नाटक ‘भारत माता’ से आया है। भगवत पुराण को भूलकर यह बाबा चाहते हैं कि 1873 में बने नारे को यह देश रटता रहे और स्त्रैण स्वभाव को ओढ़ ले ताकि इस देश को बार-बार लूटा जा सके, इसका और विभाजन किया जा सके! याद रखिए, म्लेच्छों ने हर काल, हर जगह अपने आक्रमण में सबसे पहले उस देश की स्त्रियों पर आघात किया है। भारत राष्ट्र से महाराज भरत के पुरुषत्व को छीन कर इस आघात की तीव्रता को बढ़ाने का षड्यंत्र है यह शस्त्रविहीन भारत माता का नारा!
शस्त्रविहीन झंडा पकड़े भारत माता की छवि सिर्फ इसलिए प्रचारित की जाती है ताकि वह हमेशा आक्रमण झेलती रहे। यही कारण है कि संघी बार-बार कहते हैं कि हमने किसी पर आक्रमण नहीं किया! वो भूल जाते हैं कि श्रीराम ने श्रीलंका पर और बप्पा रावल-नागभट्ट की सेना ने अरब पर आक्रमण किया था!
‘संघवाद’ हमें अब्राहमिकों का आसान गुलाम बनाने के षड्यंत्रों की आखिरी योजना हैं, यह अब और अधिक स्पष्ट होता जा रहा है!
कभी संत कुंभनदास जी ने कहा था, ‘संतन को कहाँ सीकरी सों काम’! आज भारत के संतों में सत्ता और संघ की चाकरी करने और गले में उनका सिक्कर (जंजीर) पहनने की जैसे होड़ लगी हुई है!
रामभद्राचार्य जैसे संत को सत्ता और संघ की चाकरी करते हुए धर्म के ऊपर राष्ट्र को रखने का कुतर्क देखकर दुख होता है। संघी सोच को जस्टिफाई करने के चक्कर में यह किसी वीडियो में वाल्मीकि रामायण को गलत उद्धृत कर अगत्स्य ऋषि को राजा बता रहे थे, तो कभी नारद और चाणक्य को राजा बता रहे थे, तो किसी वीडियो में मप्र में अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा के लिए वोट मांग रहे थे!
हिंदू समाज को इन बाबाओं, कथावाचकों, संघियों और सत्ताधारियों ने मिलकर ऐसा भ्रमित किया है कि उसे न अब शत्रु बोध रहा है और न मित्र बोध! सच तो यह है कि संघ और सत्ता के साथ मिलकर हिंदुओं की विनाशलीला का आखिरी पन्ना लिख रहे हैं ऐसे बाबा और कथित संत! #sandeepdeo