डॉ रजनी रमण झा । नासदीय सूक्त (ऋग्वेद, मण्डल-१०, सूक्त -१२९)
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(३)
तम आसीत् तमसा गूळहमग्रे’प्रकेतं सलिलं सर्वमा इदम् ।
तुच्छ्येनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिना जायतैकम् ।।
अर्थ – सृष्टि के पूर्व यह जगत् अन्धकार से आच्छादित अज्ञान था। नामरूपादि लक्षण से रहित सम्पूर्ण जगत् जलमय था। वह जगत् व्यापक एवं तुच्छ यानी जिसके स्वरूप का उद्भव नहीं हुआ है ऐसे अज्ञान से आच्छादित था। वही एक सम्पूर्ण जगत् ब्रह्म की संकल्पशक्ति से उत्पन्न हुआ ।