डॉ रजनी रमण झा । नासदीयसूक्त (ऋग्वेद, मण्डल – १०, सूक्त -१२९)
ऋषि – परमेष्ठि प्रजापति
देवता – परमात्मा
(४)
कामस्तदग्रे समवर्तताधि मनसो रेत: प्रथमं यदासीत् ।
सतो बन्धुमसति निरविन्दन् हृदि प्रतीष्या कवयो मनीषा ।।
अर्थ – (जगत् की उत्पत्ति के प्रसंग में) सर्वप्रथम काम उत्पन्न हुआ, जो परमात्मा के मन में स्थित (सिसृक्षा यानी संसार के सर्जन की इच्छा का) बीज तत्त्व था। इस प्रकार अस्तित्व वाले इस जगत् के बन्धु यानी सम्बद्ध कारण को कवियों यानी ऋषियों ने अपनी मनीषा यानी विश्लेषण बुद्धि के द्वारा हृदय में सम्यक् विचार करके नामरूपरहित तत्त्व में प्राप्त किया।