एक मराठी अख़बार ने एक ऐसा समाचार छाप दिया, जिसने देश के पांच राज्यों के रेडियों प्रेमियों की जान सांसत में ला दी। इस अख़बार ने छाप दिया कि महाराष्ट्र, गुजरात, उड़ीसा, बंगाल, और दक्षिण भारत के चारों राज्यों में पहली अप्रैल से विविध भारती बंद होने जा रहा है। मुझे ये समाचार पढ़कर बहुत दुःख हुआ, साथ ही आश्चर्य हुआ कि सरकार इस तरह का बेतुका निर्णय कैसे ले सकती है। इसकी तह में जाने पर पता चला कि अख़बार ने फेक न्यूज़ छाप दी थी।
फेक न्यूज़ फैलाने वाले कृपया ‘वृत्त सेवा विभाग-आकाशवाणी’ की जाहिर सूचना पढ़ सकते हैं। ये सूचना उन्होंने 9 जनवरी को 4 :42 मिनट पर प्रकाशित की थी। प्रसार भारती के मुख्य कार्यकारी अधिकारी शशि शेखर वेम्पति ने इस समाचार को असत्य बताया है।
आकाशवाणी और विविध भारती भारत की आत्मा के अखंड भाग हैं। इनको किसी राज्य में बंद करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हाँ इस बात से इंकार नहीं है कि पिछले वर्ष प्रसार भारती ने पांच शहरों में आकाशवाणी का प्रसारण बंद कर दिया था। हालांकि वहां इसे बंद करने का कारण खर्चों की कटौती करना था।
आकाशवाणी के पास देशभर में 420 स्टेशन मौजूद हैं। इनमे ऑल इंडिया रेडियो 23 भाषाओं और बोलियों में कार्यक्रम तैयार करता है। आज रेडियो की बात चली है तो कुछ तथ्य स्मरण में आए हैं। आज रेडियो का बाजार समृद्ध हो चुका है। आकाशवाणी से वेव लैंथ उधार लेकर सैकड़ों एफएम स्टेशन स्थापित कर दिए गए हैं। आकाशवाणी और विविध भारती सुनने वाले जानते हैं कि ये एफएम हमारी इस धरोहर के आगे चवन्नी भी नहीं ठहरते।
ये सम्पत्ति वर्षों से अर्जित की गई है। लाखों गीत, हज़ारों दुर्लभ इंटरव्यू, स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रम, निष्पक्ष आडंबर रहित समाचार, कृषि, शिक्षा, मनोरंजन, शास्त्रीय संगीत को लेकर इतने विविध कार्यक्रम किसी एफएम के लिए कर पाना एक सदी जितना लंबा कार्य हो सकता है। इन दिनों युवा रेडियो से जुड़ा रहता है लेकिन वह आकाशवाणी और विविध भारती पर नहीं जाता, जहाँ उसके लिए बहुत कुछ मौजूद है।
रेडियो के एफएम स्टेशन भाषाई स्तर पर बहुत खराब हैं, साथ ही वर्तमान के मच रहे शोर से ‘सुरीला संगीत’ निकालने की कला उन्हें नहीं आती। मुझे आश्चर्य होता है कि ख़ज़ाना छोड़कर युवा एफएम पर मौजूद है क्योंकि वहां का वातावरण उनके सर्कल से मेल खाता है।
नब्बे के दशक में जब निजी कंपनियों को किराए पर टाइम स्लॉट देने की शुरुआत हुई, तब ये एफएम कुकुरमुत्तों की तरह उग आए। संभवतः आपको ये मालूम न हो कि पिछली सदी के अंत में जब संसद में एफएम का प्रस्ताव लाया गया था, तब इसका स्वरुप कुछ और था।
ये एफएम स्टेशन उन ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित होने थे, जहाँ प्रसार भारती के पास जाने के लिए बजट नहीं था । हालाँकि जब ये प्रस्ताव मूर्त रुप में आया तो पूर्णतः व्यावसायिक था। प्रसार भारती को ध्यान रखना चाहिए कि एक दिन आकाशवाणी और विविध भारती की दशा दूरदर्शन जैसी न हो जाए। जैसे एक समय षड्यंत्रपूर्वक दूरदर्शन को ढहाया गया था।
रेडियो की बात चली तो याद आया रेडियो दिवस आने वाला है। सन 2011 में नेस्को की जनरल कॉन्फ्रेंस में 13 फरवरी को ‘विश्व रेडियो दिवस’ के रुप में मनाए जाने की घोषणा की गई। इसी दिन 1946 में ‘यूनाइटेड नेशंस रेडियो’ की स्थापना की गई थी। एक फेक खबर ने जो बवाल मचाया था, प्रसार भारती ने तुरंत खंडन कर उसे शांत कर दिया है। अब बवाल मचाने वाले हिमेश रेशमिया का वह गीत सुन सकते हैं ‘मन का रेडियो बजने दे ज़रा, स्टेशन कोई नया ट्यून कर ले ज़रा।