विश्व के हर कोने में जब भी धरती खोदी जाएगी, नीचे से शिवाले ही प्राप्त होंगे।
इस शिवलिंग की अनुमानित निर्माण तिथि आज से लगभग ढाई हज़ार वर्ष पूर्व की बताई जाती है। ये शिवलिंग ‘चाम’ लोगों द्वारा बनाया गया था। चाम सभ्यता ‘चम्पा’ प्रदेश में निवास करती थी। चाम राजवंश शैव था इस कारण यहां की अधिकांश प्रजा भी शिव उपासना करती थी।
माना जाता है दूसरी शताब्दी में चम्पा साम्राज्य हिन्दू संस्कृति का बड़ा केंद्र था। ये वही समय था जब सनातन की शाखाएं अपने मूल से निकलकर सम्पूर्ण विश्व मे फैल रही थी। श्री भद्रवर्मन चम्पा साम्राज्य के सबसे ख्याति प्राप्त शासक थे। इनके पुत्र गंगाराज ने तो राज्य त्याग कर गंगा की शरण ली थी। उन्होंने भारत आकर संन्यास ले लिया था।
सन १८२५ में इस महान हिन्दू साम्राज्य का पराभव हो गया। जहां सुबह-शाम शिवालों में घण्ट नाद गूंजा करते थे, वहां अब श्मशान की नीरवता व्याप्त थी। चम्पा पर ग्रहण का कारण इस्लाम का प्रसार होना था।
अधिकतर ‘चाम’ हिन्दू धर्म छोड़कर मुस्लिम हो गए। ये धर्म परिवर्तन बहुत ही द्रुत गति से हुआ था। शिव की आराधना करने वाले हाथ अब नमाज़ के लिए उठने लगे।
मित्रों अब वह देश वियतनाम के नाम से जाना जाता है। वियतनाम की ये कथा भारत को याद रखना बहुत आवश्यक है।
क्या पता कल को…..