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India Speak Daily > Blog > Blog > SDeo blog > सनातन और सोशल मीडिया का अल्गोरिदम एक है, बस आपको समझने की आवश्यकता है!
SDeo blog

सनातन और सोशल मीडिया का अल्गोरिदम एक है, बस आपको समझने की आवश्यकता है!

Sandeep Deo
Last updated: 2019/11/09 at 12:48 PM
By Sandeep Deo 97 Views 6 Min Read
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6 Min Read
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फेसबुक ने ब्लॉक कर दिया, ढेर सारे आईडी बनाकर कूद पड़ा हूं, जैसे वक्तव्यों वाले सोशल मीडिया वीरों को प्रोफाइल का मतलब भी नहीं पता है, और न प्रोफाइल और पेज का अंतर पता है, इसलिए अकसर ऐसे लोगों को दिक्कत होती रहती है, और वो शिकायत करते रहते हैं।

फेसबुक प्रोफाइल आपका निजी संस्मरण जैसा है, जिसमें आप अपनी खुशी-दुख, परिवार, यात्रा, परिजन की तस्वीरों के साथ-साथ विचार, न्यूज, लेख आदि शेयर करते रहिए तो यह दिक्कत नहीं आएगी। केवल एक तरह के कंटेंट लिखेंगे तो फेसबुक आपको टारगेट कर लेगा, एक खास श्रेणी में डाल देगा, आपके पोस्ट की पहुंच को सीमित कर देगा। अपने प्रोफाइल को बगीचा बनाइए, गमला नहीं।

विचारों/खबरों के लिए पेज का निर्माण कीजिए, और उसमें भी टारगेट शब्दों के उपयोग से परहेज़ कीजिए।

यह मैं क्यों कह रहा हूं? क्योंकि मैंने अलग-अलग सोशल प्लेटफार्म के अल्गोरिदम को पढ़ाया है। इसीलिए आप मेरे प्रोफाइल/इंस्टाग्राम/मेरे नाम से बने फेसबुक पेज पर मेरे न्यूज/वीडियो के अलावा मेरे परिवार की तस्वीरें, हल्की-फुल्की कविता, शायरी, संस्मरण, यात्रा वृतांत आदि पाएंगे। विशुद्ध खबर/वीडियो के लिए इंडिया स्पीक्स डेली के पेज, यूट्यूब चैनल, ट्वीटर का उपयोग करता हूं। वहां परिवार का कोई मैटर पोस्ट नहीं करता। यदि करता भी हूं, तो वह जिसमें सनातन की कोई न कोई शिक्षा छिपी है।

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असल में यह मैं उन लोगों के लिए लिख रहा हूं, जिनको यह आपत्ति है कि मैं अपने प्रोफाइल पर परिवार का फोटो क्यों शेयर करता हूं? मेरा ऐसों से अनुरोध है कि आप भी शेयर करें ताकि फेसबुक के अल्गोरिदम का चक्रव्यूह आप तोड़ते हुए अपने विचारों को फैलाते रह सकें। हां, यदि आपको मेरे प्रोफाइल पर मेरे पारिवारिक फोटो, संस्मरण आदि से आपत्ति है तो आप तत्काल अमित्र/अनफॉलो हो जाएं और न्यूज/विचार के लिए इंडिया स्पीक्स डेली के पेज को चाहें तो लाइक कर लें। यह मेरा अनुरोध है।

सनातन की यात्रा में प्रथम इकाई परिवार को माना गया है। जो अपने परिवार को साथ लेकर नहीं चल सकते, उनके साथ की यात्रा को बता नहीं सकते, वह देश के लिए रेत के टीले से अधिक नहीं हैं।

आज के तथाकथित राष्ट्रवादी जो पूरे दिन हिंदू-हिंदू, मोदी-मोदी करते मिल जाएंगे, असल में उन्हें हिंदुत्व की समझ ही नहीं है। और जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी का अपनी मां के साथ स्नेह को वामपंथी फोटो-ऑप कह मजाक उड़ाते हैं, यह तथाकथित राष्ट्रवादी भी अपने सोशल मीडिया के साथियों का इसी तरह मजाक बनाकर यह दर्शा देते हैं कि वामपंथी सोच की गुलामी उनके अंदर गहरे धंसा है, और सनातन के मूलभूत विचार से वो कोसों दूर हैं।

कुछ साथी मेरी सुरक्षा की चिंता के नाम पर कहते हैं कि आप अपने परिवार का फोटो न डाला करें। उनकी चिंता का मैं सम्मान करता हूं, लेकिन उनसे यह पूछता हूं कि राम के वन गमन में सीता माता और भाई लक्ष्मण साथ थे या नहीं? हिमालय पर बैठे शिव अपने परिवार के साथ उपस्थित हैं या नहीं? पांडवों के संघर्ष में द्रौपदी साथ थी या नहीं? श्रीकृष्ण की द्वारिका नगरी के निर्माण में दाऊ बलराम का सहयोग था कि नहीं?

असल में आप अपने परिवार को अपनी ताकत बनाएं, यही सनातन सिखाता है। परिवार एक ‘कमजोरी’ यूनान और अरब की रिलीजियस/ मजहबी सोच से आया है। यूनान के शासक जब युद्ध पर जाते थे तो अपनी पत्नी को चेस्टिटी बेल्ट पहना कर जाते थे।अरबी/तुर्क लुटेरे जब लड़ाई पर निकलते थे तो दूसरों के परिवार का सर्वनाश करते थे। युद्ध में बलात्कार, कंट्रेक्ट मैरिज, दूसरों की स्त्रियों को उठाने जैसा कुचरित्र इतिहास में उन्हीं की देन है, और यह सब उनके भग्न परिवार व्यवस्था और स्त्रियों को खेती समझने की सोच का परिणाम है। आज भी सीरीया में S..slave का कांसेप्ट आपने देखा ही है।

भारत में गार्गी को भरी सभा में याज्ञवल्क्य को चुनौती देने और परिवार को लेकर प्रश्न पूछने का अधिकार प्राप्त था। सनातनी भारत की ताकत उसकी परिवार व्यवस्था, कुटुंब, उसके समाज और उसकी मातृभाषा में है। याद रखिए, एक मात्र हिन्दू धर्म ही है जिसमें विवाह एक संस्कार है, और संयुक्त परिवार उसका आधार। पश्चिम के ‘पंचमक्कारों’ में विवाह सिर्फ एक समझौता है और एकल परिवार भोग एवं लिप्सा का अवसर।

‘पंचमक्कार’ यह समझ गये थे, इसलिए उन्होंने सबसे पहले हमारे परिवार, गांव व्यवस्था और भाषा पर प्रहार किया। परिवार, गांव और मातृभाषा के बिखरते ही, हमारी अक्षुण्ण संस्कृति का विलोपन शुरू हो गया।

अतः आप सनातन के मूल पर चलते हुए अपने परिवार को अपनी ताकत बनाइए, उनके साथ सहज और गर्व की अनुभूति कीजिए। ‘पंचमक्कारों’ की अनचाही सोच के प्रभाव में परिवार को अपनी दुर्बलता, असहजता और झिझक का कारण मत बनने दीजिए।

सनातन कोई मजहब या रिलीजन नहीं, संपूर्ण जीवनशैली और संस्कार है, जिसकी यात्रा के केंद्र में आप हैं, और परिधि पर परिवार, कुटुंब, गांव, समाज, देश और विश्व! स्वयं को सिकोड़िए मत, स्वयं का विस्तार कीजिए, यही सनातन की मूल शिक्षा है। धन्यवाद।

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TAGGED: algorithm, Sanatan dharma, social media
Sandeep Deo November 6, 2019
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Sandeep Deo
Posted by Sandeep Deo
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Bestseller Author by Nielsen Jagran | Awarded by Sahitya Akademi | Journalist over two decades | Founder editor of https://indiaspeakdaily.in
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