संदीप देव। कालनेमि और पौंड्रिक हर काल में रहे हैं, ताकतवर रहे हैं, शासक रहे हैं, फिर भी उनका अंत हुआ है! चूंकि वो अधर्म को धर्म बनाकर पेश करने में माहिर थे, इसलिए उन्हें तत्कालीन समाज के अधार्मिकों का समर्थन भी बड़े स्तर पर था।
पौंड्रिक ने तो चतुर्भुज रूप भी धारण कर लिया था जिससे तत्कालीन समाज चमत्कृत भी था और काशी नरेश जैसा ‘रागदरबारी’ उसकी चापलूसी में गीत भी गाया करते थे! सिर्फ एक नारदजी थे, जिन्होंने चापलूसों से घिरे पौंड्रिक को उसका अधार्मिक स्वरूप उसे दिखाने का प्रयास किया था, ठीक उसी तरह जैसे कभी कौरवों की सभा में अधार्मिक द्युत का एक अकेले विदुर जी ने विरोध किया था।
असल में धर्म मूल तत्व है। अतः जो उसको पकड़ कर रखता है, वही समूची लंका में अकेला बचता है!
धर्म विवेकी और धार्मिक व्यक्ति की परीक्षा बार-बार लेता है, क्योंकि वह जानता है कि एक धार्मिक व्यक्ति की वाणी और कर्म ही सत्य की बागडोर को थामे रखने में सक्षम है!
अतः धैर्य रखें और धर्म को धारण किए रहें, चाहे आप धारा के विपरीत इस दुनिया में अकेले ही क्यों न बच जाएं, धर्म को कभी न छोड़ें।
धारा के साथ तो कोई भी तैराक तैर लेता है, बलिहारी तो उसकी है जो धारा की विपरीत तैर जाए! सत्य ही सनातन है। जयश्री राम 🙏