डॉ विनीता अवस्थी। ” मां काली का अद्भुत स्वरूप” लखनऊ की चौक की सड़कें भी आपको कभी कभी गलियों का आभास कराती हैं, पुराने लखनऊ की गहमागहमी वाली सड़कों पर गाड़ी को पार कराना भी दुष्कर कार्य है भीड़ भाड़ को चीरते अपने गंतव्य पर पहुंचने पर जो विजय अनुभूति होती है वह किसी पहाड़ चढ विजय पताका फहराने से कम नहीं होती है।
आज हम पर ईश्वर की विशेष कृपा हुई थी यहां के पुराने हनुमान मंदिर से सड़कों पर भीड़ भाड़ को पार करते हम जिस मोड़ पर आकर रुके वहां फिर भी शांति थी। मोड़ से ही पूजा सामग्री की दुकानें शुरू थी आसपास घर बने थे इतना प्राचीन मंदिर घरों के बीच है चकित होते हुए सोचा दूर से पता ही नहीं चलता इस स्थान पर कोई मंदिर भी हो सकता है।
संभवत यही तरीका था समाज का अपने विशेष मंदिरों को बचाने का काशी भी इसका उदाहरण है। फूलों की दुकानें देखते हुए हम भी सीढ़ियां चढ़ने लगे। ऊपर पहुंचते ही हम एक खुले परिसर में थे चारों तरफ छोटे-छोटे मंदिर समाधियाँ थी दाएं और महाकाली जी का मंदिर था वह विग्रह कुछ अद्वितीय था।
वहां दो भव्य व दिव्य मूर्तियां प्रतिष्ठित थी ठीक इसी मंदिर के दाएं ओर संकटा माता का मंदिर और बायी ओर महादेव का शिवालय था। उत्तर भारत में श्री संकटा माता मंदिर आपको अवश्य मिलेंगे यहां महिलाएं घर घर में विवाहित स्त्रियों को भोजन व पूजन आदि का आयोजन कराती हैं। दाएं ओर श्री दुर्गा माता मंदिर भी है व वही मुंडन स्थल भी है स्थानीय लोगों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण मंदिर है।
एक दीवाल पर भक्तों की चुनरी आदि बंधी थी श्रद्धालु जन अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए बांधते हैं, मुख्य माता के मंदिर के बाई ओर शिवालय के अगल-बगल समाधियाँभी बनी थी इसी के बायी ओर एक ओर समाधि व आदि गुरु शंकराचार्य जी का मंदिर था। शिवालय में पुजारी जी से पूछने पर पता चला यह मंदिर लगभग 3000 से 2500साल पुराना है इसे आदि गुरु शंकराचार्य जी ने स्थापित किया था और मठ तथा अखाड़ों की स्थापना की थी तभी से इसकी महत्वता है।
औरंगजेब के समय इस मंदिर को तोड़ा गया था उस समय लक्ष्मी नारायण मंदिर व शिव मंदिर मंदिर माने जाते थे। मुगलों का आक्रमण इन्हीं मंदिरों पर होता था क्योंकि यही अधिकतर धन भंडार होता था। एक मुख्य शिवलिंग स्थापित है जो चांदी से म़ड़वाया गया है वहां प्रतिदिन प्रातः 6:00 से 8:00 बजे तक रुद्राभिषेक होता है व प्रतिदिन वार के अनुसार अलग-अलग प्रकार से अभिषेक होता है। जहां महाकाली हैं वहां महाकाल का भी पूजन स्वत: ही होता है मेरा तो यही अनुभव है।
ईश्वर अपने विभिन्न रूप में विद्यमान हमें सेवा का अवसर प्रदान करते हैं यहां कभी अभिषेक दूध से, कभी जल से व कभी गंगाजल से होता है। एक कूप भी मंदिर में विद्यमान है यहां की कथा के अनुसार जब आततायियों ने आक्रमण किया तो पुजारियों ने विग्रह को बचाने के लिए उसे इसी कुएं में डाल दिया था बहुत वर्षों के पश्चात यहां पर स्थित महंत जी ने मंदिर का जीर्णोद्धार किया।
पुनः कुएं में से विग्रह को निकाला गया तो उसके स्थान पर श्री लक्ष्मी नारायण जी की मूर्ति मिली उसी विग्रह को स्थापित किया गया तभी से मां महाकाली का पूजन श्री लक्ष्मी नारायण के स्वरूप में होता है। ऐसे अनोखे चमत्कार को सुनकर मन रोमांचित हो उठा इस मंदिर की महत्ता सिद्ध पीठ मंदिर के रूप में प्रतिष्ठित है। सिद्ध पीठ मंदिरों का वास्तु अत्यंत भिन्न होता है जिससे कि वहां की ऊर्जा का स्तर भी भिन्न होता है। जहां सिद्धों की समाधिया होती हैं वहां सिद्ध पीठ स्वयं ही हो जाता है।
श्री भैरव तथा हनुमान जी सदा ही मां के मंदिर में उपस्थित होते हैं मुख्य द्वार से बाई ओर उनके भी मंदिर उपस्थित हैं। कुछ लोगों ने अपने पूर्वजों के स्मरण में भी शनि देव की मूर्ति स्थापित करी थी मंदिर प्रांगण में व्यास सत्संग स्थल भी है। मंदिर में पांच मुख्य शिवालय हैं जहां अभिषेक आदि पूजन होता है बाकी शिवालय समाधियों के ऊपर स्थित है।
पुजारी जी के एक प्रसंग के अनुसार एक बार आक्रमणकारियों ने हिमाचल में देवी मंदिर पर आक्रमण किया तो वह बर्फ के समान जम गए यह देवी मां का कोप माना गया। तभी से उन्होंने देवी मां के मंदिरों पर आक्रमण करना बंद कर दिया। मां महाकाली का वर्णन करना तो हमारे सीमा से परे है हर कण में शक्ति का प्रादुर्भाव है उनके विभिन्न रूप अनेकों ब्रह्मांड में बिखरे हैं।
शक्ति का आभास मां के सिद्ध पीठ में समर्पण भाव से आकर ही किया जा सकता है। यह सिर्फ प्राचीन मठ की बड़ी काली की ही महिमा है जो वह श्री लक्ष्मी नारायण के रूप में विद्यमान है। भक्तगण यहां से पवित्र जल अपने अपने पात्रों में भरकर ले जाते हैं जो उनके अनुसार व्याधियों में औषधि स्वरूप माना जाता है। मां के स्थान का पवित्र जल शांति व समृद्धि के लिए भी शुभ माना जाता है। मां की ही प्रदान की शक्ति, बुद्धि, शब्द लेखनी से मुझसे इतना ही वर्णन हो सका वरन उनके बनाए हम मनुष्यों के लिए उस” परा” को समझना हमारी शक्ति से परे है।
जय मां काली
।। ईति।।