डॉक्टर विनीत अवस्थी । अद्भुत, आशातीत व अकल्पनीय होता है वह अनुभव जब वह अगम अनादि मंद हास्य करते हुए एक अदृश्य डोर से आपको वहां खींच कर खड़ा कर दे जिसकी आपने कभी कल्पना भी ना की हो, आप आवाक हो और ईश्वर आपको अपनी स्नेहिल दृष्टि से ओतप्रोत कर दें । एयरपोर्ट में उतरते हुए साफ सफाई से कुछ खिन् से होते हुए अपने गंतव्य पर जाने के लिए मैं गाड़ी में बैठी तो तनिक भी अनुमान ना था कि एक महा भव्य आध्यात्मिक अनुभव का सौभाग्य प्राप्त होने जा रहा है हालांकि रास्ते में मां और महादेव के पवित्र मंदिरों के दर्शन गाड़ी से होते जा रहे थे जो स्वयं में एक शुभ संकेत दे रहे थे ।
रास्ता उबड़ खाबड़ था सड़कें बन रही थी यह देखकर हैरानी हुई । आर्टिकल 370 हटने के बाद बड़ी उम्मीद थी इस प्रदेश का नक्शा ही बदल जाएगा शायद अभी और धैर्य रखना है सुव्यवस्थित सड़कों की अभ्यस्त होने के कारण ही सही मुझे शायद यह रास्ता बेहद थका देने वाला लगा। मुश्किल से केवल 5 से 6किलोमीटर ही सड़क ठीक थी ।30 -35 साल पहले बचपन की कस्बे से गांव की सड़क की याद आ गई हैरान परेशान होते हुए हम अपने छोटे से कैंट में दाखिल हुए।
रास्ते भर जो एक बात शांति दे रही थी वैसी छोटे-बड़े मंदिरों की भव्यता उसी से इस स्थान “अखनूर ” जो कि जम्मू से लगभग 1 घंटे की दूरी पर है उसका परिचय दे रही थी अपने गेस्ट रूम में आकर मानो सांस ली थकान के बावजूद भी मन में इच्छा थी कि पास किसी मंदिर के दर्शन कर आंऊ। पर हल्के हल्के रात की चादर पूरी तरह फैल गई थी। गेस्ट रूम से बाहर आकर गहन अंधकार में ऊपर देखा तो गहरा मानो आकाश अपने तारों को समेट कर मुस्कुरा रहा था बरबस ही मन प्रसन्न हो उठा साफ सुथरा आकाश शहरी प्रदूषण से दूर अब दुर्लभ सा लगता है। खाने के टेबल पर इस जगह के बारे में बातचीत हुई वैसे भी फौजी ठिकानों पर ज्यादा सुख- सुविधाएं नहीं होती हैं।
अगले दिन रविवार था करीब 11:00 बजे हम इस शहर को पुराना करने निकले वैसे भी जब तक रास्ते नए लगे तभी तक शहर भी नया लगता है ,रोड के दोनों तरफ हरियाली, तेज हवाओं से झूमते पेड़ मानो स्वागत सा कर रहे थे उससे भी मनोरम साथ साथ चलती चंद्रभागा नदी जो अब चिनाब के नाम से जानी जाती है कहीं कहीं शातं और कहीं थोड़ा शोर करते तेज धूप में भी शीतलता दे रही थी बाई ओर लोहे का पुल था जो हर रोज 12:00 से 1:00 बंद रहता था।
मैंने उत्साह से भर कर बोला कि हम ऐसी जगह तो बार-बार ड्राइव के लिए आ सकते हैं तो पता चला कि यह संवेदनशील इलाकों में गिना जाता है और पिछले हफ्ते ही दो आतंकवादी मारे जा चुके हैं रास्ते में आते जाते लोगों को देखकर लगा जीवन प्रवाह चलता ही रहता है ऊपर से सब सामान्य लग रहा था कस्बे नुमा रोड पर गाड़ी दौड़ते हुए पुराने बाजार पहुंची यह बाजार 80 या 90 के दशकों का कस्बों के बाजार याद दिला रहा था। शायद यहां वक्त ठहर गया था मेट्रो सिटी के मॉल कल्चर बाद ऐसी छोटी-छोटी दुकाने कहीं हलवाईयों के खाने की महक, कहीं तंग गलियां मुझे सच में बचपन के रास्ते में ले जा रही थी अचानक कार के रुकने से विचार तंद्रा भंग हो गई सामने नजर गई तो बोर्ड था “द्वापर युगीन श्री कामेश्वर मंदिर”।
शहर के बाहर खाली स्थान पर भीड़भाड़ से दूर अपनी पुरातनता का प्रमाण दे रहा था सुबह के 11:45 हो रहे थे प्रांगण में कदम रखते ही देखा पीपल का पेड़ के चबूतरे पर शनिदेव विराजमान थे बाएं तरफ मंदिर के के परिसर में 4-5 फीट ऊंचा शिवलिंग व सामने नंदी महाराज विराजमान थे। वैसे तो मंदिर की ऊर्जा सदा ही अलौकिक होती है पीपल के पत्तों की पेट सरसराहट 1 मई की तेज धूप को भी सुहावनी बना रही थी मन की मन ईश्वर को कोटि-कोटि धन्यवाद करते हम अंदर पहुंचे बरामदे को पारकर के नीचे 8-10 सीढ़ियां उतरकर पवित्र द्वापर युग शिवलिंग प्रतिष्ठित थे।
पछतावा हुआ कि षोडशोपचार पूजन नहीं कर पाएंगे उत्साह में सामान लाना ही भूल गए थे मैं तुरंत ही बाहर के प्रांगण तक गई वहां मंदिर की बाल्टियाँ और जलाभिषेक के लिए लोटे आदि रखे थे जहां जल भरने का स्थान था वहां परम पूज्य वैरागी संत महाराज की समाधि बनी थी। हमने सिर्फ पवित्र जल से ही महादेव का जलाभिषेक किया भोले बाबा सरल भाव की पूजा से ही प्रसन्न हो जाते हैं ।वहां सिर्फ वैरागी परंपरा के ब्रह्मचारी बाबा ही पूजन करते हैं वहां के सन्यासी महाराज जी ने बताया कि महाभारत के समय जब श्री राजा बर्बरीक जी जो अर्जुन के समान ही पराक्रमी योद्धा थे ।
उनकी परीक्षा लेकर श्री कृष्ण भगवान ने उनसे शीश मांग लिया तो देव कृपा से सिर्फ अपने धड़ से ही घोड़े पर सवार होकर वह कश्मीर की तरफ चल दिए थे और इस स्थान पर उनका ध़ड गिरा स्थानीय मान्यता के अनुसार वहां 3 शिवलिंग स्थापित हुए। प्रथम खंडित शिवलिंग श्री कामेश्वर भगवान का स्वरूप है मध्य में स्वयं महादेव विराजित हैं तीसरा शिवलिंग कामेश्वर भगवान का घोड़ा माना जाता है। प्रभु की इच्छा के बिना उनके दर्शन भी असंभव है उन्हें कोटि-कोटि नमन कर हम दूसरी ओर सीढ़ियों से ऊपर गए तो महाकाली के दर्शन हुए मुख्य शिवलिंग के आसपास श्री बृहस्पति देव, श्री राधा कृष्ण विराजित है बाहर श्री साईं बाबा और एक और शिवलिंग है जो बाद में बनाया गया है ।
ठीक सामने श्री पंचमुखी हनुमान जी विराजित है मंदिर की दिव्यता ही उसकी भव्यता है ऐसे अनछुए स्थान अपनी पूर्ण पवित्रता के साथ आज भी उपस्थित है यह देखकर बहुत शांति मिली। मंदिर में साथ ही स्थानीय लोगों के अर्थात महाजन बिरादरी के कुलदेवता भी स्थापित हैं वहां के वर्तमान सन्यासी जी ने बताया जम्मू के स्थानीय लोग अपने कुलदेवता को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं बिरादरी में उनकी शाखाएं उप शाखाएं हैं वहां उनके कुलदेवता विशेष महत्व रखते हैं। यहां की संस्कृति में कुछ दूरी पर कुल देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित है।
मंदिर प्रांगण में भी उसी संस्कृति की छटा देखने को मिली जानने पर पता लगा कि यह परंपरा लोगों को एक दूसरे से जोड़कर रखने का मुख्य कारण है कोई भी शुभ कार्य मुंडन या विवाह आदि बिना कुलदेवता के आशीर्वाद के पूर्ण नहीं माना जाता है। पहले परिवार, उसके बाद कुल फिर बिरादरी फिर जाति एक से दूसरी डोर बंधती चली जाती है। इतिहास मे इतने भयानक आक्रमणों को झेलने के बाद भी अपनी संस्कृति व धर्म बिना देवकृपा के बचा पाना असंभव सा है। सनातन के वटवृक्ष की नन्ही नन्ही शाखाएं यह जातियां व उपजातियां है जिनमें धर्म पालन मुख्य है लगता है मानो इसी से एक व्यवस्थित सामाजिक व्यवस्था भी बनती है हमारी पूजा पद्धति और परंपरा ही परिवार और कुल को जोड़ती है।
मंदिर प्रांगण में ही एक विशेष पवित्र वृक्ष लगा था महाराज जी ने बताया कि मान्यता है परिवार की सबसे बड़ी महिला अगर अपने बेटे की वंश वृद्धि के लिए यहां 41 दिनों तक जल चढ़ाएं तो अवश्य पुत्र प्राप्ति होती है अपने बेटे बहू के लिए व्रत पूजन करना ऐसा मुझे सनातन के अलावा कहीं देखने को नहीं मिला यही परंपराएं हमारे धर्म को जीवंत रखती हैं। सांसारिक लोगों के लिए वैरागी मंदिर की देखभाल करें वह बदले में समाज उनका ध्यान रखें कितना सुंदर उदाहरण है। वहां के सन्यासी महाराज जी ने अपने पूज्य गुरु जी की गद्दी भी दिखाई कई 100 सालों से यह श्री वैष्णव विरक्त संत परंपरा चल रही है स्वयं मंदिर के वर्तमान सन्यासी मध्य प्रदेश के हैं महादेव की कृपा से तो संपूर्ण विश्व एक सूत्र में बधं सकता है तो देश और क्षेत्रवाद है ही क्या।
मंदिर में सोमवार, शिवरात्रि पूर्णिमा को विशेष भीड़ होती है। सरल हृदय श्रद्धालु मात्र जलाभिषेक और आरती से ही पूजन करते हैं कर्मकांड रहित सीधी सरल रीति से पूजा मन को छू जाने वाली लगी। श्री कामेश्वर जी का शीश जहां प्रकट हुआ है वह स्थान राजस्थान में श्री श्याम खाटू महाराज जी के नाम से प्रसिद्ध है।
यह प्रभु की इच्छा नहीं तो और क्या है जहां शीश वहां इतना वैभव और जहां धड़ है वहां शायद प्रभु विश्राम कर रहे हैं उन्हें कोई कोलाहल नहीं चाहिए।
ऐसी ही परम शांति का अनुभव करते हम मंदिर के बहार दुर्गा मां के दर्शन करते हुए महाराज जी से विदा लेकर वापस जाने को मुड लिए। पर लगा प्रभु शायद हृदय में ही स्थापित हो गए हैं उन्होंने ही हमे इस स्थान पर बुलाया वरना स्थानांतरण तो मेरा कहीं और हो रहा था। प्रथम दर्शन का ऐसा असर था कि एक अलग ही आनंद की अनुभूति हो रही थी कुछ तो अलग था इस अनुभव में जोकि कुछ बताने को प्रेरित कर रहा था । शायद यह ईश्वर इच्छा ही थी फिर 1 से 16 तारीख और मुझे मेरे परम आदरणीय पत्रकार व हम सभी के प्रिय श्री संदीप जी से मंदिर के बारे में लिखने की आज्ञा मिली।
ठीक 16 दिनों बाद, महादेव की पूजा में सोलह सोमवार का भी अपना विशेष महत्व है। उस दिन तो चंद्रदेव भी नीलकंठ के शीश पर गौरवान्वित हो मानो हर तरफ अमृत वर्षा रहे थे पूर्णिमा के दिन ही सोमवार भी था हर तरफ एक पवित्र सा उल्लास था चंद्रभागा नदी में चंद्रमा का सुंदर प्रतिबिंब छठा बिखेर रहा था धीरे धीरे बहते पवन देव मानो शिव स्तुति ही कर रहे थे हर तरफ शुभ संकेत हो रहे थे फिर सुना काशी में ज्ञानवापी परिसर में महादेव 350 सालों के बाद प्रकट हो गए हैं।
।।इति।। ओम हर हर महादेव