
आज से पुराणों को लेकर छोटे-छोटे पोस्ट की एक श्रृंखला आरंभ कर रहा हूं। पुराण श्रृंखला-1
पुराणों में देव कथाओं के साथ हमारा इतिहास भी वर्णित है, जिसके कारण इसे नष्ट कर दिया गया ताकि हिंदुओं और हिंदुस्तान पर शासन करना आसान हो जाए। बिना इतिहास के समाज की क्या दुर्गति होती है, यह आज भी हम देख रहे हैं।
भारतीय इतिहास लेखन की शैली पश्चिमी अखबारी इतिहास से भिन्न है। पुराण, रामायण और महाभारत हमारे इतिहास हैं।
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पुराणों की रचना पराशर मुनी, उनके पुत्र वेद व्यास और उनके शिष्यों पैल, जैमिन, वैशम्पायन, सुमन्तमुनि और रोम हर्षण ने मिलकर की थी। उसके बाद शिष्यों की परंपरा ने शुद्ध वेद और पुराण को बौद्धकाल तक जिंदा रखा।
पुराणों को पहला सबसे बड़ा आक्रमण बौद्ध काल में झेलना पड़ा और उसमें अतिशयोक्ति और क्षेपक की भरमार कर उसे अश्लील रूप दे दिया गया। बौद्ध काल में तो ‘दशरथ जातक’ लिख कर रामायण को भी दूषित कर उस पर अश्लीलता आरोपित कर दिया गया।
‘दशरथ जातक’ में राम और सीता को दशरथ की संतान अर्थात भाई-बहन बताते हुए, उनका विवाह करा हिंदुओं के पूरे गौरव, संस्कार और संस्कृति को ही नष्ट करने का प्रयास किया गया।
पुराण श्रृंखला-2 पुराणों का स्पष्ट उल्लेख अथर्ववेद के मंत्रों में है।
बौद्ध के बाद शुंग और गुप्त काल में सनातन धर्म ग्रंथों का पुनः लेखन करा कर इसका उद्धार किया गया। मनु स्मृति इसी काल में संक्षिप्त रूप से पुनः लिखा गया। इसीलिए इस काल में वर्णाश्रम की कठोरता भी हमारे शास्त्रों का हिस्सा बन गयी।
बौद्धों द्वारा समाज को नष्ट करने के कारण इस काल में वर्णाश्रम व्यवस्था को कठोर किया गया, परंतु बौद्धों पर कोई भौतिक आघात नहीं किया गया। उल्टा गुप्त काल ने बौद्धों को नालंदा जैसा विश्वविद्यालय बनाकर दिया। हर्षवर्द्धन के राज्यकाल तक पुनः पुराणों का पाठ आरंभ हो चुका था।
मध्यकाल में तुर्क, अफगान, मंगोल, मुगलों आदि ने हिन्दुओं के ग्रंथों सहित मंदिरों और स्मारकों को नष्ट करने का एक खतरनाक दौर आरंभ किया।
बौद्ध जो भगवान बुद्ध के ज्ञान और ध्यान से निकल कर पुस्तक आधारित धर्म बन गये थे, नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों और ग्रंथों के नष्ट होने पर भारत से निकल कर दूसरे देशों में फैल गये, परंतु हिंदुओं के ब्राह्मण वर्ग ने श्रुति-स्मृति परंपरा के जरिए अपने धर्म ग्रंथों को बचाने का भरसक प्रयास किया, जिस कारण उन्हें तुर्कों से लेकर अंग्रेजी राज तक भयंकर विनाशलीला का सामना करना पड़ा। उनको मारकर जनेऊ तौलवाने का उदाहरण तो अकबर और औरंगजेब काल तक मिल जाता है।
मुगल के बाद अंग्रेजी राज आया, और उसने आर्य-द्रविड़ संघर्ष, ब्राह्मणवाद, जातीय विभाजन, मूल नागरिक जैसी अवधारणाओं की रचना कर न केवल हमारे पुराण, इतिहास, धर्म ग्रंथों को नष्ट किया, बल्कि भारत का ही एक ऐसा वर्ग तैयार कर दिया जो भारतीय इतिहास को नष्ट-भ्रष्ट कर भारत के इतिहास को मौर्य काल से आरंभ कर सिंधु घाटी के मुहाने पर खड़ा करने में जुट गया।
कुरीतियों के नाम पर जातिवाद के जरिए हिंदू समाज को बांटने का नंगा नाच जो अंग्रेजों ने आरंभ किया, अपनों ने भी सहित्य रच-रच कर इसे पत्थर की लकीर बना दिया। विश्वामित्र, वेदव्यास, विदुर, सत्यकाम जाबाल आदि के कर्मगत ब्राह्मण का उदाहरण स्वयं भारतीय भी भूल गये।
जिस आदि मनु ने विश्व की सबसे प्राचीन राजधानी अयोध्या की रचना की, वह गाली बना दिया गया, सरयू-गंगा-यमुना-सरस्वती नदियों के संगम पर जिस सनातन समाज साहित्य और इतिहास की रचना हुई, उसे सिंधु तट पर स्थापित कर दिया गया ताकि पश्चिम से आज आक्रमणकारियों के आक्रमण को न्यायसंगत ठहराया जा सके।
गंगी-जमुनी तहजीब जैसे जुमलों की रचना कर यमुना भी हमसे छीनकर मात्र 1400 साल पुराने मजहब को हस्तांतरित कर दिया गया। इसका तात्पर्य इतना ही था कि यमुना किनारे जिस संस्कृति और साहित्य की रचना की गई, स्वयं हिंदू ही उसे अविश्वास की नजरों से देखे, और आज इसका परिणाम दिख रहा है।
आर्य से अंग्रेज तक बाहर से आए की अवधारणा के जरिए यह साबित करने का प्रयास किया गया कि भारतीयों की अपनी न कभी कोई संस्कृति रही, न कभी कोई अपनी सभ्यता रही, और न अपना कभी कोई इतिहास ही रहा। यह मिली-जुली संस्कृति वाला लावारिस देश है, इसलिए इस पर सभी को शासन करने और सभी को इसको नोंचने-खसोटने का अधिकार है।
यह अवधारणा इतनी जोरदार थी कि मूर्धन्य भारतीय विद्वान भी इसके झांसे में आते चले गये। अपने पुराणों में वर्णित राजवंशों की जगह अंग्रेजों द्वारा थोपे सिकंदर के समकक्ष वाले मौर्य साम्राज्य से ही भारत का उद्भव उनके द्वारा रचित साहित्य में भी स्थापित किया जाने लगा।
रामायण, महाभारत और पुराणों को मिथक (माईथोलॉजी) कहने और स्थापित करने का जो चलन आरंभ हुआ, वह आज तक अमीष, देवदत्त जैसे भारतीय साहित्य रच-रच कर स्थापित करने में जुटे हुए हैं।
कल बताऊंगा कि अथर्ववेद में कहां और किस श्लोक में पुराणों की चर्चा है। अर्थात अथर्वेद के समय पुराणों का लेखन आरंभ हो चुका था…
नोट:- यदि लिखना भूल जाऊं तो आप लोग याद दिलाते रहना। जय भारत! #SandeepDeo
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बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।रोज प्रतीक्षा करूंगी इस श्रृंखला में अपना इतिहास को जानने के लिए।
बहुत धन्यवाद आपके प्रयास का।
ईश्वर अपके लेखन में दिव्यशक्ति प्रदान करें।
sandeep jee…aapka paryas sahrahneye hai…issey sabi pathko ko labh hoga…ek aagrah hai ek shrakhnla vidur neti,chanakya neti or shukra neti par bhe baneye…aschyara hota hai itney achey granth hote hue bhe kis karan vash yeah nai padhaeye jate hai…
Excellent information Sir, many young generation get carried away with Amish Tripathi, & Devdutta
Pattanaik, whose writings is with their own convictions which doesn’t go with our historical events. Egarly await for your shrinkhalas.
wit high regards for you.