विपुल रेगे। भारतीय मूल के अमेरिकी निर्देशक मनोज नाइट श्यामलन की नई फिल्म ‘ओल्ड’ प्रदर्शित हो गई है। सदा ही रहस्यों से भरे कथानक प्रस्तुत करने वाले श्यामलन की ये फिल्म भी दर्शकों को रहस्यों के गलियारों में ले जाती है। कुछ पर्यटक ऐसे समुद्र तट पर पहुँच गए हैं, जहाँ उनकी आयु प्रति घंटे कम होती जा रही है। तट से बाहर आने का मार्ग बंद हो चुका है। श्यामलन की ये फिल्म दर्शकों को पसंद आ रही है लेकिन समीक्षकों ने इसे नकार दिया है ।
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पिरी ऑस्कर लेवी ने सन 2013 में एक ग्राफिक नॉवेल लिखा। इसका नाम उन्होंने ‘सैंड कैसल’ रखा। अनूठे कथानक के कारण ये नॉवेल बहुत चर्चित रहा। अब मनोज श्यामलन ने इस पर एक फिल्म ‘ओल्ड’ का निर्माण किया है। श्यामलन की फिल्मों में रहस्य और हॉरर का संगम होता है। उन्होंने अपने कॅरियर में चौदह फ़िल्में निर्देशित की है। इनमे अधिकांश रहस्य और रोमांच जॉनर पर बनाई गई है।
चूँकि ‘ओल्ड’ एक सफल नावेल पर लिखी गई थी, इसलिए इससे दर्शकों की अपेक्षाएं अधिक थी। फिल्म की कहानी गर्मी की छुट्टियों से शुरु होती है। एक परिवार छुट्टियां मनाने के लिए होटल पहुंचा है। वहां पति-पत्नी और उनके दो बच्चों को एक द्वीप पर जाने का प्रस्ताव दिया जाता है। उनसे कहा जाता है कि द्वीप से लगी चट्टानों में ऐसा मिनरल है, जो उनके स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होगा।
एक टूरिस्ट बस इस परिवार समेत कुछ लोगों को द्वीप पर छोड़कर चली जाती है। कुछ देर बाद यहाँ अजीब घटनाएं घटने लगती है। उन लोगों को पता चलता है कि द्वीप की चट्टानों के संपर्क में आकर उनकी आयु तेज़ी से बढ़ने लगी है। बच्चे कुछ ही घंटों में युवा दिखने लगते हैं और बड़े लोगों में वृद्धावस्था के लक्षण उभरने लगते हैं। अंत में बचे कुछ सर्वाइवर्स को मालूम है कि अगले कुछ घंटों में वे भी मरने जा रहे हैं।
एम नाइट श्यामलन ने इस कथा पर स्तरीय फिल्म बनाने का प्रयास किया है। जब पिरी ने ये कथा लिखी थी तो पाठकों को सबसे अच्छा उसका अंत लगा। पिरी की रोचक कथा को पढ़ते हुए पाठक हमेशा यही सोचता है कि इस कथा का दुखांत देखने को मिलेगा। अपितु पिरी अपनी कथा के अंत से सबको चौंका देते हैं। श्यामलन अपनी फिल्मों में भय पैदा करने के लिए विख्यात है।
हम चाहे उनकी ‘विलेज’ देखे या साइंस फिक्शन ‘साइंस’ देखे तो पता चलेगा कि डर उन सबमे स्थायी भाव बनकर उभरता है। अपितु ‘ओल्ड’ में वे ऐसा भय पैदा नहीं कर सके। वास्तव में इस कहानी में कोई प्रेत नहीं है। इस कहानी का सबसे बड़ा प्रेत है, वह वीरान द्वीप, जहाँ मनुष्य एक बार आ जाए तो वापस नहीं जा सकता। श्यामलन ने अपने पात्रों को सिलसिलेवार बूढ़ा दिखाने के लिए बहुत परिश्रम किया है।
हर मिनट के शॉट के बाद कैरेक्टर की आयु बढ़ी हुई दिखाई देती है। हर एक घंटे में वे एक दशक जितनी आयु जी रहे हैं तो उनकी भावनाएं भी तेज़ी से परिवर्तित हो रही है। हर पल बदलता भावनाओं का ज़्वर उनकी मानसिक स्थिति में भी बदलाव ला रहा है। भिन्न परिवारों से आए दो बच्चे तेज़ी से युवा होते हैं और अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते।
एक दृश्य में दिखाया गया है कि संसर्ग के कुछ देर पश्चात ही वह किशोरी गर्भवती हो जाती है। ये फिल्म सामान्य दर्शकों के लिए नहीं है। ये फिल्म ठेठ बॉलीवुड फ़िल्में पसंद करने वालों के लिए भी नहीं है। श्यामलन के प्रशंसक तो इसे हाथोहाथ लेंगे। यदि आप रहस्यों पर आधारित फिल्मे देखना पसंद करते हैं और नए विषयों को खोजते रहते हैं तो ये फिल्म आपके लिए ही बनाई गई है।
इसे वयस्क दर्शक ही देखे तो अच्छा है। ये फिल्म न बच्चों के लिए हैं और न मसाला फ़िल्में पसंद करने वालों के लिए। मनोज श्यामलन की ये फिल्म बताती है कि 51 वर्ष की आयु में भी एक निर्देशक के रुप में वे जीवंत हैं और अनवरत प्रयोग कर रहे हैं। इसी उत्कंठा ने उनके अंदर के उत्सुक निर्देशक को जीवित रखा हुआ है।