आम जनता की आंखों में कैसे धूल झोंका जाता है, यह विदेश मंत्रालय के एक बयान से स्पष्ट हो गया है? लखनऊ के सादिया अनस पासपोर्ट मामले में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और विदेश मंत्रालय पर उठते सवाल का जवाब देने के लिए 5 जुलाई 2018 को उसके प्रवक्ता सामने आए। 20 जून के बाद से हुए इस विवाद पर सुषमा स्वराजजी के प्रति लोगों में काफी गुस्सा था, फेसबुक से लेकर ट्वीटर पर लोग उनसे जवाब मांग रहे थे, लेकिन वो और उनका मंत्रालय जवाब देने के लिए सामने नहीं आ रहा था। उल्टा उचित सवालों को ट्रोलिंग से जोड़ कर मुद्दे को भटकाने का प्रयास खुद विदेश मंत्री ने किया। इसके बाद इंडिया स्पीक्स ने 3 जुलाई को “सुषमा स्वराज ने ‘एप’ लांच कर बचाया सादिया-अनस को! गूगल प्ले स्टोर से हो रहा है विदेश मंत्रालय के खेल का पर्दाफाश! डाटा ज्ञान से अनभिज्ञ देश की जनता, फिर एक बार नहीं समझ पायी बड़े लोगों का खेल!” शीर्षक से एक खबर प्रकाशित की थी, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है। इस वायरल खबर के दो दिन बाद ही पहली बार विदेश मंत्रालय बयान देने पर बाध्य हुआ। हालांकि विदेश मंत्रालय के इस बयान में काफी सारे लोच और विरोधाभास हैं। आइए पड़ताल करते हैं….
मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि दिसंबर 2017 में सरलीकृत किए गये नियमों के अनुरूप सादिया अनस को पासपोर्ट जारी किया गया था और उसमें सभी मौजूदा मानकों का पालन किया गया है। हद देखिए कि विदेश मंत्रालय कह रहा है कि वह नियम दिसंबर 2017 में जारी किया गया और पहली जून 2018 से लागू है! लेकिन ताज्जुब है कि उस नियम के बारे में किसी पासपोर्ट कार्यालय को न तो सूचना है न पासपोर्ट अधिकारी को इसकी जानकारी है? आखिर यह कैसे संभव है कि नियम बदल गया और बदला हुआ क्लाउस छह महीने बाद 20 जून 2018 तक पासपोर्ट कार्यालय पहुंचा ही नहीं? क्योंकि यदि बदला हुआ नियम पासपोर्ट कार्यालय पहुंचा होता तो फिर विकास मिश्रा यह क्यों कहता कि उसने क्लॉज में वर्णित नियम के हिसाब से ही काम किया है? और हद यह भी देखिए कि सादिया अनस के अलावा पासपोर्ट के लिए आवेदन करने वाले काफी सारे लोगों को इस तथाकथित सरलीकृत नियम का लाभ नहीं दिया गया है, जो अब सामने आ रहा है!
तो क्या यह सब केवल सुषमा स्वराजजी की जिद व सम्मान को बनाए रखने और केवल सादिया अनस के पासपोर्ट के लिए किया जा रहा है? इसी आशंका के साथ इंडिया स्पीक्स डेली ने पाठकों को यह रिपोर्ट दी थी कि आनन-फानन में एक अधूरे पासपोर्ट सेवा एप को 26-27 जून 2018 को जारी कर इसका ढिंढोरा पीटा गया कि अब पासपोर्ट बनाने के लिए पता और मैरिज सर्टिफिकेट की बाध्यता नहीं रही! यदि विदेश मंत्रालय के बयान को ही सच मानें तो यह एप दिसंबर को नियम बदले जाने या फिर 1 जून को नये नियम के लागू होने के समय ही जारी हो जाना चाहिए था, जो नहीं किया गया।
आशंका तो यही है कि कहीं बैकडेट में नियम बनाकर सुषमाजी की गलती को ढंकने का प्रयास तो नहीं किया जा रहा है? 26-27 जून को एक आधे-अधूरे एप को जारी कर दुनिया भर में विदेश मंत्रालय की हुई फजीहत को कम करने का प्रयास किया गया कि हमने गलत तरीके से नहीं, बल्कि नये नियम के तरह पासपोर्ट जारी किया है। और यह भी कि पासपोर्ट सेवा एप 10 लाख लोगों ने डाउनलोड किया है, जो नये नियम के प्रति जनता के सपोर्ट को दर्शाता है। जबकि गूगल प्ले स्टोर का डेटा साफ दिखाता है कि 26-27 से 29 जून के बीच और खास एक क्षेत्र से ही एप को डाउनलोड किया गया है। यह साफ-साफ संगठित डाउनलोड का मामला है। क्या यह गुस्से में उफनती देश की जनता से लेकर पूरी दुनिया की आंखों में धूल झोंकने का प्रयास नहीं है?
आइए बिंदुवार विदेश मंत्रालय के पक्ष को जानते और फिर उसका जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं-
विदेश मंत्रालय का पक्ष:
अंतरधार्मिक विवाह करने वाले तन्वी सेठ पासपोर्ट विवाद में विदेश मंत्रालय ने आज स्पष्ट किया कि दिसंबर 2017 में सरलीकृत किये गए नियमों के अनुरूप इन्हें पासपोर्ट जारी करने में सभी मौजूदा मानकों का पालन किया गया।
हमारे सवाल?
1. दिसंबर 2017 में यदि मंत्रालय ने नियमों को सरल बनाया था तो क्या आम जनता को जानकारी देने के लिए उस समय मीडिया में इसकी सूचना जारी की गई थी, जैसा कि जून में बदले हुए नियम वाले पासपोर्ट सेवा एप जारी करने के समय किया गया? जिस तरह से 26-27 जून 2018 को जारी एप को धूम-धड़ाके से जारी कर यह बताया गया कि अब पासपोर्ट के लिए पते की बाध्यता नहीं रही, आखिर मंत्रालय द्वारा कथित मूल तारीख दिसंबर 2017 को ऐसी जानकारी जनता को क्यों नहीं दी गई?
2. दिसंबर 2017 में यदि नियम सरलीकृत किया गया तो फिर इसे लागू करने और प्रचारित करने में छह महीने क्यों लग गये?
3. दिसंबर 2017 में जब नियम जारी हुआ और 1 जून 2018 को लागू हुआ तो फिर पूरे देश के पासपोर्ट कार्यालय और अधिकारियों को इस नये नियम की जानकारी क्यों नहीं दी गई? क्या आज के डिजिटल युग में जानकारी एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय पहुंचाने में छह महीने लगते हैं? लखनऊ पासपोर्ट अधिकारी विकास मिश्रा ने तो मीडिया में साफ कहा कि उसने क्लॉज के अनुसार काम किया है। तो क्या दिसंबर में लागू तथाकथित सरलीकृत नियम को जून तक भी क्लॉज में शामिल नहीं किया गया था? क्या मंत्रालय इस पर अपना पक्ष स्पष्ट करेगा?
4. सवाल उठता है कि क्या विदेश मंत्रालय ने 20 जून के विवाद के बाद बैकडेट में नियम को बदला है? यदि नहीं तो क्या वजह है कि दिसंबर से लेकर जून तक पासपोर्ट कार्यालय को बदले हुए नियम नहीं भेजे गये थे?
5. नियम यदि दिसंबर में बदला गया तो क्या वजह है कि पासपोर्ट सेवा एप 26-27 जून को जारी किया गया? और यदि जारी भी किया गया तो इसे आधा-अधूरा क्यों जारी किया गया? गूगल प्ले स्टोर इस एप को आखिरी बार 5 जून को अपडेट दिखा रहा है। इतने दिन में भी पेमेंट ऑप्शन में दिक्कत, लगातार क्रैश होने की शिकायत, स्लो होने की शिकायत आदि गूगल प्ले स्टोर में इस एप को लेकर है और जनता इसकी शिकायत कर रही है? तो जब पुराने समय से इस पर काम चल रहा था तो इसे 26-27 जून को जारी करने से पहले टेस्ट क्यों नहीं किया गया? अभी भी इसके फंक्शन को देखते हुए इस पर कुछ महीने काम करने की जरूरत दिख रही है। तो क्या आनन-फानन में बैक डेट में बदले नियम को प्रचारित करने के लिए एप जारी करने का खेल किया गया?
6. और यदि यह एप पुराना है तो सारी मीडिया में 29 जून को यह खबर कैसे छपी कि केवल दो दिन में 10 लाख डाउललोड हुआ है? मंत्रालय ने इसका खंडन क्यों नहीं किया कि यह पुराना एप है न कि दो दिन पहले का? असल में एक ही जगह से 27-29 के बीच एप के डाउललोड होने का डेटा सारी कहानी खुद बयां कर देता है कि यह सब सोचे-समझे तरीके से और शायद बैकडेटेड नियम को प्रचारित करने के लिए किया गया ताकि सादिया अनस मामले में विदेश मंत्री जी का सम्मान बचा रह सके, क्योंकि उन्होंने आनन-फानन में सादिया का पासपोर्ट जारी कर गलती तो कर दी थी? और हां, गूगल प्ले स्टोर में जनता के वास्तविक रिव्यू को ढंकने के लिए पांच सितारा वाले फर्जी टाइप रिव्यू भी हैं, जो इसके के लिए संगठित और योजनाबद्ध प्रयास की पोल खोलते प्रतीत होते हैं?
7. जब तथाकथित सरलीकृत नियम दिसंबर को ही लागू कर दिए गये थे तो फिर लखनऊ के पुलिस की एडवर्स रिपोर्ट में सादिया के पते और नाम में गड़बड़ी की सूचना आने के तत्काल बाद और एप जारी करने से पहले विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने आकर मीडिया के सामने यह स्पष्ट क्यों नहीं किया कि अब इस एडवर्स रिपोर्ट की जरूरत नहीं है, क्योंकि हमने नियम पूर्व में ही बदल दिया है? यानी क्या सचमुच नियम पूर्व में बदले गये थे या फिर अभी अपने बचाव में इसे बदला गया है?
8. पासपोर्ट अधिकारी विकास मिश्रा को तत्काल स्थानांतरित करने की जगह मंत्रालय या पासपोर्ट कार्यालय से यह क्यों नहीं कहा गया कि नियम बदल गये थे, जिसकी जानकारी शायद विकास मिश्रा को नहीं थी? लेकिन ऐसा बयान तो किसी ने दिया ही नहीं, उल्टा सादिया अनस को हाथ में पासपोर्ट थमा दिया गया?
विदेश मंत्रालय का पक्ष:
क्षेत्रीय कार्यालय को भेजी जाने वाली पुलिस रिपोर्ट दिसंबर 2017 में लिए गये निर्णय के आधार पर ली गई। इसमें पुलिस सत्यापन के दो आधार थे। पहला कि क्या आवेदक भारतीय नागरिक है? दूसरा कि क्या आवेदन के खिलाफ कोई आपराधिक मामला है? इन दोनों पहलुओं को छह बिंदुओं में बदला गया। इन निर्णय के बाद सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अवगत कराया गया कि एक जून से इसे लागू किया जाए।
हमारे सवाल?
1. विदेश मंत्रालय का कहना है कि पुलिस सत्यापन में केवल यह देखना था कि सादिया अनस भारतीय नागरिक है और उसके खिलाफ कोई आपराधिक मामला तो नहीं है? भारतीय नागरिक हैं या नहीं यह तो तत्काल पासपोर्ट कार्यालय दस्तावेजों को देखकर बता सकता है, लेकिन उस पर कोई आपराधिक मामला है कि नहीं यह तुरंत कैसे कोई सुनिश्चित कर सकता है? सादिया ने पासपोर्ट मामले में 20 जून को आवेदन किया था तो क्या इतनी जल्दी लखनउ पुलिस सुपरमैन की स्पीड में यह पता लगा आई कि उस पर कोई आपराधिक मामला नहीं था? और जब मंत्रालय की ओर से कथित रूप से सारे पासपोर्ट कार्यालय को इसकी सूचना थी कि केवल दो चीज की जांच ही हो तो फिर विवाद के बाद लखनऊ पुलिस ने पता और नाम सत्यापन रिपोर्ट क्यों दी? क्यों नहीं उसी दिन विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया कि पता व नाम सत्यापन की कोई जरूरत नहीं है। इससे कम से कम स्थानीय पुलिस का इस फालतू की कवायद से समय तो बचता?
2. मंत्रालय कह रहा है कि दिसंबर 2017 में नियम बदला गया और सभी राज्यों और कंेद्रशासित प्रदेशों से कहा गया कि इसे 1 जून 2018 से लागू कर दिया जाए? अर्थात सादिया के मामले से 19 दिन पहले? तो क्या मंत्रालय यह कहना चाहती है कि उप्र सरकार या लखनऊ पासपोर्ट कार्यालय ने इस नियम को लागू नहीं किया? यदि किया होता तो फिर यह विवाद ही नहीं होता? यानी न तो इस नियम की जानकारी उप्र की सरकार को थी, न उप्र की पुलिस को और न ही लखनउ के पासपोर्ट कार्यालय या उसके अधिकारियों को? फिर तो यह विदेश मंत्रालय की ही विफलता हुई न कि वह दिसंबर में लागू कथित नियम की जानकारी संबंधित विभागों को छह महीने बाद यानी 20 जून 2018 तक भी सही तरीके से प्रेषित नहीं कर पायी? फिर दोषी केवल विकास मिश्रा कैसे हुआ? दोषी पूरा मंत्रालय क्यों नहीं?
विदेश मंत्रालय का तीसरा पक्ष:
तन्वी सेठ उर्फ सादिया अनस के मामले में उपरोक्त बिंदुओं पर कोई प्रतिकूल रिपोर्ट नहीं थी। हालांकि जिस पुलिस अधिकारी ने सत्यापन किया उसने अपनी तरफ से दो टिप्पणियां जोड़ दी थी, जिसके आधार पर पुलिस सत्यापन रिपोर्ट को प्रतिकूल श्रेणी में रखा गया। पुलिस अधिकारी ने पहली टिप्पणी में कहा कि पासपोर्ट फार्म में नाम तन्वी सेठ दिया गया है जबकि शादी के प्रमाणपत्र में नाम सादिया अनस दिया गया है। इसके साथ ही दूसरी टिप्पणी में कहा गया कि पते में त्रुटि है। वह जिस नोएडा स्थित घर में रहती थी, उसका उल्लेख नहीं किया गया है। प्रवक्ता ने कहा कि पासपोर्ट के संदर्भ में संशोधित नियम में शादी के प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है।
हमारे सवाल?
1. विदेश मंत्रालय अपने इस बयान से खुद स्पष्ट कर रहा है कि उसने दिसंबर 2017 में जो नियम बदले थे, उसकी जानकारी राज्य सरकारों और पुलिस तक वह नहीं पहुंचा पायी। क्योंकि यदि सही नाम और पते की बाध्यता उसने हटा दी थी, इसके बावजूद यदि पुलिस अधिकारी इसका उल्लेख कर रहा है तो यह तय है कि उसे इसकी सूचना नहीं थी। और इसके बावजूद विकास मिश्रा जैसा पासपोर्ट अधिकारी इसकी जानकारी सादिया से मांग रहा है और बाद में मीडिया में यह कह भी रहा है कि उसने नियमानुसार ही दस्तावेज मांगे थे तो तय है कि उस कार्यालय तक छह महीने बाद भी अपने बदले हुए नियम की सूचना पहुंचा पाने में विदेश मंत्रालय असमर्थ साबित हुआ। फिर सवाल उठता है नियम वाकई दिसंबर में ही बदले गये थे?
2. संशोधित नियम में शादी के प्रमाण पत्र की बाध्यता समाप्त कर दी गई थी। यह तो बड़ा कदम है। तो क्या दिसंबर में जब इसे लागू किया गया था तो किसी अखबार, न्यूज चैनल, रेडियो, विदेश मंत्रालय के ऑफिशियल ट्वीटर हैंडल, फेसबुक पेज या संचार के अन्य माध्यमों से इसे जनता के लिए प्रचारित किया गया था? यदि नहीं तो किसका दोष है? और यदि हां तो फिर पासपोर्ट कार्यालय तक इस सूचना के न पहुंच पाने के लिए फिर कौन दोषी है?
केस स्टडी
विदेश मंत्रालय के पक्ष के साथ ही आज के दैनिक जागरण अखबार में एक खबर छपी है। रिपोर्ट कहती है में उसी लखनऊ की एक केस स्टडी को प्रकाशित किया गया है। केस स्टडी के अनुसार ज्योति तिवारी ने नौ नवंबर 2017 को आवेदन किया था। गलत जानकारी पर उनकी दो बार प्रतिकूल प्रविष्टि पुलिस वेरिफिकेशन में आई। पासपोर्ट विभाग ने दो बार कारण बताओ नोटस जारी किया। इसके लिए ज्योति पुलिस स्टेशन और गोमतीनगर स्थित क्षेत्रीय पासर्पोअ कायार्लय भी गयी, लेकिन आज तक पासपोर्ट नहीं बना।
उसी रिपोर्ट में जागरण की टिप्पणी
तन्वी सेठ उर्फ सादिया की पुलिस वेरीफिकेशनल में प्रतिकूल प्रविष्टि के बावजूद उनके पासपोर्ट को हरी झंडी तो मिल गई, जबकि ऐसे ही मामले में सैंकड़ों पासपोर्ट को विभाग ने नियमों का हवाला देकर रोक रखा है। पासपोर्ट विभाग के इतिहास में पहली बार हुआ है कि जबकि एक आवेदक (यहां सादिया अनस) के लिए नए नियम बना दिए गये। नियम भी ऐसा जो बांकी हजारों आवेदनों पर लागू ही नहीं हो रहा है। अब ये आवेदक पासपोर्ट विभाग से गुहार लगा रहे हैं।
कुछ सवाल:
ऐसा लगता है कि पूरा विदेश मंत्रालय और खुद विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने केवल तन्वी सेठ उर्फ सादिया अनस के पासपोर्ट के लिए नियम बदला है? बांकी आवेदक भले ही धक्के खाएं, लेकिन चूंकि उनमें से किसी ने इसे हिंदू-मुसलमान का मुद्दा बना कर पेश नहीं किया है, किसी ने सुषमा स्वराज को सीधे ट्वीट नहीं किया है और और किसी अन्य के मुद्दे को एजेंडा मीडिया ने नहीं उठाया, इसलिए वह सब भेड़ श्रेणी में हैं..! और तन्वी सेठ उर्फ सादिया अनस वीआईपी श्रेणी में…!
विदेश मंत्री सुषमा स्वराजजी का मंत्रालय कैसे एक मुसलिम परिवार के तुष्टिकरण के लिए सिर के बल खड़ा हो गया, और कैसे-कैसे तर्क लेकर सामने आ रहा है, यह इतिहास में दर्ज हो चुका है। जनता समझदार है। सब समझती है। सही मुद्दों को भटकाने से लेकर नियम बदलने तक का झोल जब देश के किसी मंत्री या मंत्रालय की ओर से आए तो समझिए, सच तो उद्घाटित हो चुका है, बस ये लोग उसे झुठलाने के लिए तरह-तरह के कुतर्क गढ़ रहे हैं? सच तो सच होता है और उसके प्रभाव से कौन बच सका है? है न सुषमाजी?
वीडियो द्वारा समझें इस प्रकरण को बिंदुवार!
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