विपुल रेगे। सोनी लिव पर रिलीज हुई वेब सीरीज ‘तनाव’ ने काफी प्रशंसाएं बटोरी है। ‘तनाव’ कश्मीर समस्या पर बनने वाली तमाम फिल्मों से अलग खड़ी दिखाई देती है। मूल रुप से ‘तनाव’ तीन आधार स्तंभों पर टिकी हुई है। अच्छा स्क्रीनप्ले, बेहतरीन एडिटिंग और कलाकारों के अच्छे अभिनय पर ‘तनाव’ मजबूती से टिकी रहती है। इज़राइली वेब सीरीज ‘फौदा’ की भारतीय रीमेक दर्शक को एंगेज तो करती है लेकिन बहुत ठंडे क्लाइमैक्स पर समाप्त होती है।
Applause Entertainment company की ‘तनाव’ सोनी लिव पर रिलीज हुई है। इसे सुधीर मिश्रा और सचिन कृष्ण ने मिलकर निर्देशित किया है। इज़राइली वेब सीरीज ‘फौदा’ को कश्मीर के बैकग्राउंड में बहुत शानदार ढंग से रीमेक किया गया है। यहाँ डाइरेक्टर का एंगल देश के लिए लड़ रहे योद्धाओं के निजी जीवन में भी झांकता है। सबसे अच्छी बात ये है कि फिल्म कोई एजेंडा पेश नहीं करती।
अपनी ओर से कहानी में कोई नरेटिव नहीं जोड़ती। ये घटनाओं को जस का तस पेश करती है। यही बात इस वेब सीरीज की सबसे बड़ी ताकत है। यही कारण है कि इसे लेकर देश में अब तक कोई विरोध प्रकट नहीं किया गया है। ‘तनाव’ एक सोशल पॉलिटिकल ड्रामा है। कश्मीर में कार्यरत स्पेशल टास्क फोर्स को अंदेशा है कि वहां बड़ी घटना होने वाली है। घाटी में अशांति की स्थिति बनी हुई है।
गोलिया चल रही हैं और पत्थरबाज़ी भी चालू है। टास्क फ़ोर्स को पता चलता है कि खूंखार आतंकी उमर रियाज़ ज़िंदा है। फ़ोर्स उमर को पकड़ने के लिए जाल बिछाती है लेकिन बार-बार वह बच निकलता है। उमर का एक साथी है जुनैद। जुनैद उमर का विश्वसनीय साथी है। एक समय ऐसा आता है जब उमर के अन्य आतंकी गुटों से मतभेद हो जाते हैं। टास्क फ़ोर्स को अंत तक कामयाबी नहीं मिलती।
उमर बहुत चालाक है और लगातार ठिकाना बदलता रहता है। इस कहानी को सुधीर मिश्रा और सचिन कृष्ण ने दिलचस्प ढंग से बनाया है। जिस ढंग से कलाकारों से काम लिया गया है, वह प्रशसंनीय है। निर्देशक सुधीर मिश्रा बहुत अनुभवी हैं और सामान्य कलाकारों से भी अच्छा काम लेने का हुनर उनके पास है। मानव विज, Waluscha De Sousa, सुमित कौल, शशांक अरोरा, अरबाज़ खान, रजत कपूर और एम के रैना अदाकारी में छा गए हैं।
हालाँकि इन सबमे सुमित कौल सब पर भारी रहे हैं। उनका कैरेक्टर बहुत स्ट्रांग गढ़ा गया है। ये इतना मजबूत कैरेक्टर है कि आखिरी एपिसोड तक अविजित बना रहता है। सुमित कौल ने अब तक पांच फिल्मों में अभिनय किया है लेकिन पहचान नहीं मिली थी। ‘तनाव’ ने उन्हें पहचान दी है और इंडस्ट्री को एक अच्छा अभिनेता भी मिला है। दूसरे अभिनेता हैं शशांक अरोरा। शशांक जबरदस्त संभावनाओं वाले अभिनेता हैं।
वैसे तो उन्होंने बहुत सी फिल्मों में काम किया लेकिन पहचान एक वेब सीरीज ‘द ग्रेट इंडियन मर्डर’ से मिली। ओटीटी प्लेटफॉर्म से कई अच्छे अभिनेताओं को नाम मिला है। अरबाज़ खान और रजत कपूर बेहतर रहे हैं। एम के रैना ने मीर साहब के किरदार में बहुत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत हुए हैं। सिनेमेटोग्राफी सचिन कृष्ण की है। एडिटिंग अर्चित रस्तोगी की है। एडिटिंग के लिए अर्चित बधाई के पात्र हैं।
उनकी अच्छी एडिटिंग की बदौलत ये सीरीज बिना पटरी से उतरे दौड़ती जाती है। अब ‘तनाव’ की कमियों पर बात कर लेते हैं। निश्चित ही एक शानदार क्लाइमैक्स के लिए निर्देशक जोड़ी ने बारह एपिसोड की वेब सीरीज बनाई लेकिन इसका क्लाइमैक्स एकदम फुस्सी है। ये क्लाइमैक्स कम से कम बीस मिनट लंबा और हंगामेदार होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अंत बड़ा ही खामोश और निष्प्रभावी रहा है।
दूसरी कमी अखरती है और सवाल उठाती है कि बॉलीवुड बिना सेक्स के कोई फिल्म या वेब सीरीज क्यों नही बना सकता। इस कहानी में सेक्स दिखाने की आवश्यकता ही नहीं थी। आप पात्रों के निजी जीवन में झाँक रहे हैं तो बिना देह दिखाए भी काम हो सकता था। वेब सीरीज का नेचर ऐसा नहीं था, जिसमे आप कलाकारों की अंतरंगता भी दिखाने लग जाए।
यदि आप सोशल पॉलिटिकल ड्रामा पसंद करते हैं और धीरज से फिल्म देखने वाले दर्शक हैं तो इसे देख सकते हैं, निराश नहीं होंगे। ‘तनाव’ भरपूर मनोरंजन देती है और यही इसकी जीत का कारण है।