विपुल रेगे। 2014 के बाद से सत्ता में बैठी सरकार दस वर्ष पूर्ण करने जा रही है। इन दस वर्षों में देश में बहुत कुछ घटित हुआ है। इस एक दशक में ये साफ़ हुआ कि सनातन धर्म की ध्वजा के सहारे सत्ता में बैठी भाजपा को अब सनातन की कोई फ़िक्र नहीं है। इस एक दशक में भाजपा हिंदूवादी पार्टी से एक सेकुलर दल में बहुत तेज़ी से बदलती नज़र आती है। इस नई नवेली भाजपा का वैचारिक डीएनए बदल गया है। गौर से देखा जाए तो भाजपा में ये बड़ा बदलाव नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद हुआ है। हिंदुत्व के पोस्टर बॉय से एक सेकुलर छवि वाले प्रधानमंत्री तक का उनका सफर तो यही कहता है कि भाजपा एक कथित उदारवादी बदलाव से गुज़र रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अतीत की यात्रा देखे तो बड़े विरोधाभास नज़र आते हैं। गुजरात में उनकी एंट्री बड़े ही भव्य ढंग से हिंदुत्व के सैनिक के रुप में हुई थी। ‘गुजरात 2002’ मोदी के माथे पर बरसों तक चिपका रहा है। जिस गोधरा में हुए ट्रेन अग्निकांड में 90 कारसेवक मारे गए थे, उस गोधरा से नरेंद्र मोदी का एक दशक का नाता रहा है। ये बात तो पब्लिक डोमेन में भी है कि नरेंद्र मोदी ने गोधरा की रानी मस्जिद में पूरा एक दशक बिताया था। वे इस जगह पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक समिति के युवा प्रचारक के रुप में रहते और कार्य करते थे। इस क्षेत्र के घांची समुदाय के लोगों के जेहन में अब भी वे यादें बसी हैं, जब मोदी यहाँ रहा करते थे।
मोदी इसी घांची समुदाय से ही आते हैं और इस समुदाय के लोग हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्म के हैं। हालाँकि गोधरा काण्ड तो उनके यहाँ से जाने के बहुत वर्ष बाद हुआ था। कभी 2002 के नायक रहे मोदी का सत्ता में आने के बाद तेज़ी से ट्रांसफार्मेशन हुआ। प्रधानमंत्री की पीठ पर लगे हिंदुत्व के श्वेत पंख प्रकाश की गति के वेग से गायब होने लगे। हिंदुत्व के मुद्दे पर सत्ता में आए मोदी अब सेकुलरिज़्म के रास्ते पर चलने लगे। सत्ता में आते ही मोदी ने मुस्लिमों के लिए बहुत सी योजनाएं चलाई और स्वतंत्रता के बाद सबसे बड़ा आर्थिक पैकेज घोषित किया। मोदी के इस बदलाव के कारण कहा जाने लगा कि भाजपा तृप्तिकरण के मार्ग पर चल पड़ी है। बड़ी चतुराई से तुष्टिकरण को तृप्तिकरण का नाम दे दिया गया था।
क्या मुस्लिम समुदाय के लिए इस अगाध प्रेम का कारण गोधरा में बिताए गए वे दस वर्ष हैं ? केंद्र की सत्ता में आने के बाद हमने देखा है कि प्रधानमंत्री ने लगातार मुस्लिम समुदाय को रिझाने के अनथक प्रयास किये हैं। मुस्लिम वोटों को पाने के लिए संघ और भाजपा ने कभी इस स्तर पर आकर प्रयास नहीं किये, जैसे नरेंद्र मोदी ने किये। इसके लिए उन्होंने भाजपा की नियत परम्पराएं तोड़ डाली। मुस्लिम समुदाय से नज़दीकी दिखाने के लिए वे लगातार प्रयास करते रहे हैं। गाहे-बगाहे वे मुस्लिमों से अपने मधुर संबंधों को जाहिर करते रहते हैं। कुछ समय पहले उन्होंने अपने बचपन के दोस्त अब्बासी के बारे में बताया था कि कैसे बचपन में वह उनके ही घर में रहा करता था। ऐसा लगता है कि ‘गुजरात 2002’ का ताज वे अपने सिर से उतार फेंकना चाहते हैं। केंद्र में आते ही ये ताज उनके लिए काँटों का हो गया।
इस ईमानदार कोशिश में मोदी बहुत आगे निकल गए हैं। एक बार तो वे बोहरा समुदाय से अपने परिवार की चार पीढ़ियों का संबंध बता चुके हैं। क्या हम ये न मान लें कि गोधरा में बिताए दस वर्षों में मोदी मुस्लिम समुदाय के निकट आए थे। मोदी ने उनकी सामाजिकता को समझा और अब उनके लिए बेहतर कार्य कर रहे हैं। हाँ ये बात और है कि मोदी को दो बार भारी बहुमत से जिताकर लाए हिन्दुओं के लिए कुछ ख़ास नहीं किया गया है। ‘हमारे लिए क्या किया वाला’ प्रश्न पूछने पर याद दिलाया जाता है कि राम मंदिर तुम्हे दे दिया गया है।
हालाँकि उस राम मंदिर निर्माण में भी प्रधानमंत्री ने मुस्लिम समुदाय के लोगों को काम देकर अपने स्नेह का परिचय दिया है। पांच राज्यों के चुनाव में भारी बहुमत मिलने के बाद प्रधानमंत्री का ये विचार और सशक्त हो जाता है कि वे देश के लिए जो कर रहे हैं, अच्छा ही कर रहे हैं। इस विचार के और सशक्त हो जाने के बाद ज्ञानवापी और भोजशाला जैसे मुद्दों को हैंगर पर टांग देने की शक्ति स्वयं ही आ जाती है। गोधरा में बिताया एक दशक मोदी को एक सेकुलर शासक होने का पाठ पढ़ाता है, साथ ही हिन्दुओं के अधिकारों और उनके अनसुलझे मुद्दों को टांग देने की शक्ति भी देता है।