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सनातन हिंदू धर्म

मनुष्य की चेतना के स्वामी है परम्ब्रह्म श्रीहर श्रीशिव। और धर्म,मर्यादा और शिव के स्वामी है श्रीहरि श्रीराम।

ISD News Network
Last updated: 2024/01/04 at 12:10 PM
By ISD News Network 100 Views 5 Min Read
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अजय शर्मा काशी। धर्म एवं ज्ञान की नगरी काशी बड़े बड़े विद्वान् रहे, जिनके विद्वता का डंका देश विदेश में सदियों से मचता आ रहा है परन्तु काशी का दुर्भाग्य ही है कि काशी के इन्हीं विद्वानों को काशी के मूल देवतीर्थो और देवी देवताओं के स्थान का ज्ञान नहीं है। इनकी अज्ञानता के चलते धर्मनिष्ठ सनातनी अपने मूल देव के दर्शन पूजन और उसके फल से वंचित हैं। इसका एक उदाहरण यह है कि काशी में अवस्थित चारधाम एवं द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक रामेश्वर लिङ्ग का दर्शन पूजन उनके मूल स्थान से इतर वर्षों से हो रहा है।

काशी के उक्त विद्वानों में से एक रामभक्त विद्वान् का प्रचार प्रसार समाचार पत्रों और सोशल मीडिया में हम-आप आजकल खूब कर रहें। इन विद्वान् सज्जन का आवास और विद्यालय जिस मोहल्ले क्षेत्र में हैं वह स्थान रामतीर्थ अर्थात् रामघाट के नाम से प्रसिद्ध है।

काशीखण्ड अध्याय 84 में अवस्थित देवतीर्थों का वर्णन जब देवाधिदेव महादेव इस प्रकार कहते है– हे वीर! तदनन्तर रामेश्वर के आगे रामतीर्थ है, उसमें केवल स्नान करने ही से विष्णुलोक की प्राप्ति होती है–

ततस्तु रामतीर्थं च वीर रामेश्वरोऽग्रतः।
तत्तीर्थस्नानमात्रेण वैष्णवं लोकमाप्नुयात्॥
पता रामघाट का.ख अध्याय 84 श्लोक 69

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काशी के उक्त बड़े विद्वान पुरुष की रामभक्ति ऐसी है कि इनके आवास एवं विद्यालय निकट अवस्थित रामतीर्थ पर रामेश्वर लिंग विगत चार वर्ष से मिट्टी में दबा है। इन रामभक्त विद्वान् को वह नहीं दिखायी देता है। वैसे उक्त विद्वान् को हम आप गलत नहीं बोल सकते क्योंकि काशी में तमिल समागम दो वर्ष से हुआ है, अर्थात् तमिल लोग दो वर्ष से काशी आए तो यह प्रवासी विद्वान् क्या जाने भगवान रामेश्वर लिंग की महिमा और उस स्थान की महिमा को…
इन्हें तो सरकार से पद प्रतिष्ठा की लालसा ही है मात्र।

काशीवासी काशी के लक्सा क्षेत्र में अवस्थित रामकुण्ड पर चारधाम और द्वादश ज्योतिर्लिंग में रामेश्वर लिंग का दर्शन पूजन सदियों से करते आ रहें है। उस तीर्थ एवं देव स्थान का प्रमाण भी काशीखण्ड के अध्याय 84 के श्लोक सं. 69 से ही‌ दिया जाता है जो वीडियो में आप देख सकते है,विचार करे कैसे एक श्लोक से दो स्थान पर एक ही देवता को बताया जा रहा है??

वास्तव में इस गलत वर्णन से हम सनातनी उस स्थान के अपने मूल देवता के दर्शन पूजन के फल से वंचित होने के साथ ही इस स्थान के मूल देवता को भी भूल रहे हैं। स्मरण रहे भगवान शिव और भगवान राम वही हैं जहाँ सत्य है भुक्ति-मुक्ति प्रदायिनी काशी के विषय में यहाँ तक शास्त्र प्रमाण है कि-

कलिलक्ष्यं शरोधनं शिवो धन्वी पुनातु माम्॥

अर्थात् धर्म ही बाण है,कलियुग’ ही लक्ष्य है,ऐसे विशिष्ट धनुष को धारण करने वाले शिव की त्रिशूल पर स्थित काशी देह-धारियों को तीनों ऋणों से मुक्त करती है।

सनातन धर्मग्रंथों के अनुसार रामेश्वरम् सनातन धर्मियों का एक पवित्र तीर्थ है। यह तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यह तीर्थ सनातनियों के चार धामों में से भी एक है। भगवान राम द्वारा यहां स्थापित रामेश्वर लिंग देश के बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। काशीखंड में वर्णित हैं कि भगवान शिव के काशी आगमन साथ भारत के समस्त तीर्थ धाम एवं बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से रामेश्वर ज्योतिर्लिंग का आगमन सेतुबंधन से काशी में हुआ है।

रामेश्वर महाक्षेत्र (सेतुबन्ध) से जटी देव यहाँ आये हैं। वे एकदन्त गणेश के उत्तरभाग में हैं। उनका पूजन करने से वे सभी कामनाओं को पूर्ण कर देते हैं। अयोध्या सोमेश्वर के समीप वायुकोण में जहाँ रामेश्वर लिङ्ग है और भगवान् सीतापति राम स्वयं यहाँ वास करते हैं —

रामेश्वरान्महाक्षेत्राज्जटीदेवः समागतः।
एकदन्तोत्तरे भागे सोऽर्चितः सर्वकामदः।।
अयोध्या वायुकोणे तु सोमेश्वरसमीपतः।
यत्र रामेश्वरं लिङ्गं वसेत्सीतापतिः स्वयम्।।

काशीखण्ड अध्याय 69 श्लोक 78 के अनुसार भगवान रामेश्वर का स्थान भगवान सोमेश्वर के निकट मानमंदिर दशाश्वमेध पर है #इस बात की पुष्टि ब्रह्मवैवर्त पुराण के काशीरहस्य में भी की गई हैं।

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ISD News Network January 4, 2024
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