विपुल रेगे। फिल्म उद्योग में नए कलाकारों को लेकर फिल्म बनाना बड़ा जोखिम का काम है। इस बार ये जोखिम ज़ोया अख्तर ने उठाया है। ज़ोया का ये जोखिम बॉक्स ऑफिस पर कामयाब नहीं हुआ है। ज़ोया द्वारा निर्देशित ‘आर्चीज’ नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है। देश के जाने-माने फिल्म स्टार्स के बच्चों के लिए ज़ोया ने ‘आर्चीज’ के रुप में लॉन्चपैड तैयार किया था लेकिन इस लॉन्चपैड से ये स्टार किड्स उड़ान नहीं भर सकेंगे। आर्चीज कॉमिक्स पर आधारित ये खिचड़ी अधपकी रह गई है। एक बहुत ही होनहार निर्देशक का अपरिपक़्व प्रयास इस फिल्म को ले डूबा है।
ओटीटी मंच : नेटफ्लिक्स
इस सप्ताह ओटीटी पर दो बड़ी फ़िल्में रिलीज हुई। ‘कड़क सिंह’ और ‘आर्चीज’ से दर्शकों और फिल्म उद्योग को बड़ी अपेक्षाएं थी। हालाँकि दोनों फ़िल्में औसत प्रदर्शन ही कर सकी है। सन 1942 में अमेरिकी संस्कृति को दर्शाती ‘आर्चीज’ कॉमिक्स की शुरुआत हुई थी। अमेरिकी टीनएजर्स समूह ने इस कॉमिक्स को अच्छा-खासा प्रतिसाद दिया था क्योंकि ये कॉमिक्स उनकी ही कहानी कहती थी। ज़ोया अख्तर की ‘आर्चीज’ कॉमिक्स जैसी होते हुए भी नितांत अलग दिखाई देती है।
ज़ोया ने अमेरिकी संस्कृति का भारतीयकरण करने का जो प्रयास किया है, वह बॉक्स ऑफिस पर फेल हो गया। इस देखते हुए समझ नहीं आता कि हम आखिर देख क्या रहे हैं ? सारे पात्र ‘आर्चीज’ के कैरेक्टर्स की याद दिलाते हैं। वे हिंदी में बात करते हैं लेकिन उनका बैकग्राउंड अमेरिका से प्रभावित होकर बना दिया गया है। शहर का नाम भी कॉमिक्स के नाम से उठा लिया गया है। जब आप कॉमिक्स का भारतीयकरण नहीं कर पाए और शहर का नाम तक ‘रिवरडेल’ रख दे तो दर्शक फिल्म से कैसे कनेक्ट होगा ? ज़ोया ने ‘अमेरिकी बर्गर’ तो उठाया लेकिन उसमे चटनी तक देसी नहीं डाली। इसी कारण इस आधी अमेरिकी और आधी भारतीय डिश को दर्शक पचा नहीं सके हैं।
कहानी को सामाजिक मुद्दे से जोड़ने का प्रयास हुआ है। कहानी में दिखाया गया है कि रिवरडेल के ग्रीन पार्क को एक उद्योगपति कब्ज़ा कर वहां होटल बनाना चाहता है लेकिन शहर के जागरुक बच्चे उसके विरुद्ध खड़े हो जाते हैं। किशोरावस्था का प्रेम दिखाने के लिए आपको एक ऐसी कहानी की आवश्यकता नहीं होती, जिसमे समाज को लेकर जागरुकता की बात कही जाए। ज़ोया यहाँ प्रेम तक ही सीमित रहती तो शायद कुछ बात बन सकती थी। फिल्म दर्शक को छू नहीं पाती। इसका कारण फिल्म की कॉस्टिंग में छुपा बैठा है।
ज़ोया ने अपने लॉन्चिग पैड पर तीन स्टार किड्स को लॉंच किया है। शाहरुख़ खान की बेटी सुहाना खान, बोनी कपूर की बेटी ख़ुशी कपूर और अमिताभ बच्चन के नाती अगत्स्य नंदा फिल्म में मुख्य भूमिकाओं में दिखाई दिए हैं। ये तीनों ही बेदम और बेअसर रहे हैं। सुहाना खान का अभिनय तो ट्रेनी स्तर का भी नहीं दिखाई दिया। ख़ुशी कपूर और अगत्स्य नंदा का भी यही हाल है। इन दोनों के चेहरे पर कोई इमोशन मुश्किल से आता है। शाहरुख़, बोनी और अमिताभ के संघर्ष के दिनों में उनके पास कोई ऑप्शन नहीं था। उन्हें तो हर हाल में कामयाब होना था या घर लौट जाना था। हालाँकि इनकी संतानों के साथ ऐसी कोई परेशानी नहीं है।
अमिताभ जैसे कलाकार अभावों में निखरे थे और उनके नाती के पास तो ‘अभाव’ जैसी मूल्यवान भावना भी नहीं है। स्टार किड्स की इस फिल्म में एक चिंगारी तो दिखाई दी है। ये चिंगारी है वेदांग रैना। वेदांग फिल्म में मुख्य भूमिका में नहीं थे लेकिन उनका अभिनय अन्य स्टार किड्स से बहुत बेहतर है। यदि उन्हें अवसर दिया गया, तो वे भविष्य के स्टार बन सकते हैं। फिल्म की आलोचना हो रही है। स्टार किड्स के नॉन एक्टिंग परफॉर्मेंस पर लोग ज़ोया अख्तर को ट्रोल कर रहे हैं।
ज़ोया ने इस पर कहा कि ये फिल्म उन्होंने अपनी जेब के पैसे से बनाई है तो किसी को क्यों तकलीफ हो रही है। बात सही है, तकलीफ किसी को नहीं होना चाहिए। इन्हीं पैसों में यदि ज़ोया स्टार किड्स के बजाय इंडस्ट्री में संघर्ष कर रहे प्रतिभाशाली कलाकारों के साथ बनाती तो परिणाम अच्छा भी आ सकता था और उनके लॉन्चपैड पर लॉन्च होकर कुछ युवा कलाकारों का भला हो जाता। हालाँकि ज़ोया का ये लॉन्चिंग पैड केवल और केवल स्टार किड्स या बड़े कलाकारों के लिए होता है। ‘आर्चीज’ ऐसे अभिभावकों का ईमानदार प्रयास है, जो ऐसा सोचते हैं कि उनके जैसी प्रतिभा उनके बच्चों में भी है। सो उन्होंने चालीस करोड़ इसी विश्वास पर फूंक डाले हैं।