
तुलसीदास की आलोचना होती है तो संत कबीर का क्यों नहीं ??
श्री शारदा सर्वज्ञ पीठम नारी भारतीय सभ्यता की आधार स्तम्भ हैं। और भारतवर्ष में प्राचीन काल से नारियों की पूजा और प्रतिष्ठा की जाती है। लेकिन जिसकी पूजा और प्रतिष्ठा होती है उसकी कुछ मर्यादा भी होती है। उन्हीं मर्यादाओं को लेकर के गोस्वामी तुलसीदास संत कबीर जैसे लोगों ने अनेक रचनाएं की हैं। लेकिन केवल तुलसीदास की आलोचना की जाती है। क्योंकि उनके लिखे हुए ग्रंथ हिंदुओं की पूजा पद्धति में शामिल है। और संत कबीर की कभी भी आलोचना नहीं की जाती है।
क्योंकि कबीर सेक्यूलर थे ना इसलिए सब जायज है।
गाली तो ये केवल तुलसी को ही देंगे।
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कबीर की नारी
‘नारी की झांई पड़त,
अंधा होत भुजंग ।
कबिरा तिन की कौन गति,
जो नित नारी को संग’।।
(नारी की छाया पड़ते ही सांप तक अंधा हो जाता है,तो जो हमेशा नारी के साथ रहता है उसकी कितनी दुर्गति होगी )
‘कबीर नारी की प्रीति से,
केटे गये गरंत।
केते और जाहिंगे,
नरक हसंत हसंत।।
(नारी से प्रेम के कारण कितने लोग बरबाद होकर नरकगामी हो गए हैं और जाने कितने हंसते हंसते जायेंगे।)
‘कबीर मन मिरतक भया,
इंद्री अपने हाथ।
तो भी कबहु ना किजिये,
कनक कामिनि साथ।।
(तो भी आप धन और नारी की चाहत न करें।)
‘कलि मंह कनक कामिनि,
ये दौ बार फांद।
इनते जो ना बंधा बहि,
तिनका हूं मैं बंद।।
(कलियुग में जो धन और स्त्री ये दोनों माया मोह के बड़े फंदे हैं।)
‘कामिनि काली नागिनि,
तीनो लोक मंझार।
हरि सनेही उबरै,
विषयी खाये झार।।
(स्त्री काली नागिन है जो लोगों को खोज-खोज कर काटती है।)
‘कामिनि सुन्दर सर्पिनी,
जो छेरै तिहि खाये।
जो हरि चरनन राखिया,
तिनके निकट ना जाये।।
(नारी एक सुन्दर सर्पिणी है। उसे जो छेड़ता है उसे वह खा जाती है।)
नारी कहुँ की नाहरी,
नख सिख से येह खाये।
जाल बुरा तो उबरै,
भाग बुरा बहि जाये।।
(इन्हें नारी कहा जाय या शेरनी। यह सिर से पूंछ तक खा जाती है।)
छोटी मोटी कामिनि,
सब ही बिष की बेल।
बैरी मारे दाव से,
येह मारै हंसि खेल।।
(स्त्री छोटी हो या बड़ी सभी जहर की लताएं है।
जो मार देती है।)
नागिन के तो दोये फन,
नारी के फन बीस।
जाका डसा ना फिर जीये,
मरि है बिसबा बीस।।
(नारी बीस फन वाली नागिन है।)
फिर भी प्रगतिशील, वामपंथी और स्त्रीचिन्तक लेखक कबीरदास के मुरीद हैं। श्री शारदा सर्वज्ञ पीठम
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