विपुल रेगे। अमेरिका में अगले वर्ष होने जा रहे चुनाव में भारतीय मूल के विवेक रामास्वामी 2024 के आम चुनाव में रिपब्लिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की दौड़ में हैं। विवेक ने एक इंटरव्यू में बताया है कि सनातन धर्म में प्रगाढ़ आस्था ही उन्हें राष्ट्रपति चुनाव के कैम्पेन तक लेकर आई है। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की तरह ही विवेक के बयान भारत में पसंद किये जा रहे हैं। ऋषि अपने भारतीय संबंधों पर गर्व करते हैं। इसी तरह अमेरिका के विवेक ईसाई और हिन्दू धर्म में समानताओं की बात करते दिखाई देते हैं। गौर करने वाली बात है कि विवेक का सनातन पश्चिम में ‘वैचारिक क्रांति’ को जन्म दे सकता है।
अमेरिका की धरती पर एक भारतीय का सनातनी मूल्यों का प्रचार करना शुभ लक्षण है। रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार विवेक रामास्वामी का ‘सनातन’ इंग्लैंड के हिन्दू प्रधानमंत्री के सनातन से कुछ भिन्न है और अमेरिकी समाज में हलचल पैदा कर सकता है। ऋषि सुनक से विपरीत विवेक रामास्वामी का हिंदुत्व विचारोत्तेजक है और पश्चिमी समाज में एक वैचारिक क्रान्ति को जन्म दे सकता है। अमेरिका के राष्ट्रपति पद के चुनाव में रिपब्लिकन उम्मीदवार बनने के दावेदार विवेक रामास्वामी ने कहा कि उनका हिंदू धर्म उन्हें स्वतंत्रता देता है और यही उन्हें राष्ट्रपति अभियान के लिए प्रेरित करता है।
उन्होंने कहा ‘हिंदू धर्म ने मुझे नैतिक दायित्वों को समझने की स्वतंत्रता प्रदान की।’ द डेली सिग्नल प्लेटफॉर्म द्वारा आयोजित ‘द फैमिली लीडर’ फोरम में बोलते हुए विवेक ने हिन्दू और ईसाई धर्म की मूल शिक्षाओं की समानताओं के बारे में बताया। यदि हिंदुत्व की शिक्षाओं को लेकर विवेक जैसे लोग पहल करें तो ये राजनीतिक मंच बहुत सहायक हो सकते हैं। विडंबना है कि हमारे अपने देश में सनातन की शिक्षाओं को लेकर युवा वर्ग में कोई रुझान दिखाई नहीं देता। भारत के विचार पटल पर हम जो हिंदुत्व का शोर देखते हैं, वह भी सनातन की असली शिक्षाओं से बहुत दूर होता है।
यदि विवेक रामास्वामी अपने राजनीतिक अभियान में सनातन मूल्यों का प्रचार विदेशी राजनीतिक मंच पर करते हैं तो ये भारत के लिए भी सकारात्मक हो सकता है। सनातन को लेकर दिया गया विवेक का ये वक्तव्य हिंदुत्व के दर्शन को लेकर पश्चिमी समाज में नई बहस को जन्म दे सकता है। विवेक कहते हैं ‘मैं बहुत ही पारंपरिक परिवार में पैदा हुआ और बड़ा हुआ हूं। मेरे माता-पिता ने मुझे सिखाया है कि परिवार ही हमारी नींव है। माता-पिता का सम्मान करना चाहिए, शादी एक पवित्र रिश्ता है, शादी से पहले संयम रखना जरूरी है। हमारे यहां तलाक की कोई परंपरा नहीं है क्योंकि पुरुष और महिला ईश्वर के समक्ष शादी करते हैं। यह जन्मों का रिश्ता होता है। पति-पत्नी ईश्वर के सामने अपने परिवार की खुशहाली की शपथ लेते हैं।’
विवेक बुद्धिमतापूर्ण ऐसी बातें कहते हैं, जो अमेरिकी समाज के मन को छूती है। हालाँकि तलाक की समस्या हमारे देश में भी बढ़ती जा रही है लेकिन अब भी वह दूसरे देशों के मुकाबले कम है। क्या पता आगे भारत भी तलाक में दूसरे देशों से होड़ करने लग जाए। कूटनीति में चतुर विवेक ये भी जोड़ते हैं कि ‘क्या मैं ऐसा राष्ट्रपति बन सकता हूँ जो पूरे देश में ईसाई धर्म का प्रचार कर सके? मैं नहीं कर सकता, मुझे नहीं लगता कि हमें एक अमेरिकी राष्ट्रपति से ऐसा करवाना चाहिए, लेकिन क्या मैं उन साझा मूल्यों के लिए खड़ा रहूंगा? क्या मैं उन्हें उन उदाहरणों में बढ़ावा दूंगा जो हम अगली पीढ़ियों के लिए स्थापित करेंगे? आप बिल्कुल सही हैं, मैं करूँगा, क्योंकि यह मेरा कर्तव्य है।’ विवेक स्पष्ट कर देते हैं कि वे राष्ट्रपति बनते हैं तो ‘किसी धर्म का प्रचार नहीं करेंगे।’ लेकिन वे ये सुनिश्चित करते हैं कि हिन्दू और ईसाई धर्म में जो साझा शिक्षाएं हैं, उन्हें समाज को बेहतर बनाने के लिए स्थापित करेंगे।
धर्म की शिक्षाओं से आज भी राजतन्त्र चलाया जा सकता है, ये उसका अनुपम उदाहरण है। सवाल ये है कि अमेरिका के एक हिन्दू राजनीतिज्ञ ने ऐसा करने का निर्णय लिया है लेकिन भारत के शासक आज तक ऐसा क्यों नहीं कर सके ? विश्वास, परिवार, कड़ी मेहनत, देशभक्ति और विश्वास हमारे समाज में सनातनी विचारधारा से ही आए हैं। सनातन की शिक्षाएं समाज में छाए अंधकार को दूर कर सकती है। ये असाध्य कार्य हज़ारों वर्ष पूर्व आदि शंकराचार्य ने कर दिखाया था।
विवेक रामास्वामी भारतीय मूल के रिपब्लिकन पार्टी के अमेरिकी नेता हैं और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपने प्रत्याशी पद की दावेदारी कर रहे हैं। 38 वर्षीय रामास्वामी का जन्म ओहिया में हुआ था। उनके माता-पिता भारत से अमेरिका गए थे। उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से जीव विज्ञान की डिग्री हासिल की और फिर येल लॉ स्कूल की पढ़ाई पूरी की।