श्रीराम, श्रीकृष्ण, पांडव, भगवान शिव- किसी से पारिवारिक प्रेम और समर्पण नहीं सीखा हिंदुओं ने! हिंदुओं ने सीखा गांधी-नेहरू से, जिनका खुद का परिवार विखंडित था, जिस कारण उन्होंने देश को भी विखंडन के ओर ढकेल दिया।
धर्म शास्त्र कहते हैं, जो तुम्हारे पास है, वही तुम दूसरों को दे सकते हो! अरे जो अपने परिवार का नहीं हुआ, वो समाज और राष्ट्र का होगा? कितनी बार धोखा खाकर सीखोगे हिंदुओं?
वेद कहते हैं, परिवार प्रथम और छोटी इकाई है। परिवार से ही समाज और समाज से राष्ट्र बनता है। कुल-कुटुंब और परिवार के बिना राष्ट्र का निर्माण हो ही नहीं सकता! वेद काल से हमारे एक भी बड़े राजा बिना परिवार के नहीं हुए। क्यों? कभी इस पर सोचा है?
वेद को न मानने वाले को ही विधर्मी और नास्तिक कहा गया। आज अधिकांश हिंदू अपना धर्म छोड़कर व्यक्तिवादी नास्तिकता व विधर्म की राह पर चल रहा है! धर्म का ज्ञान नहीं होने के कारण, अधर्म को ही धर्म मान बैठा है!
राम-लक्ष्मण, कृष्ण-बलराम के भ्रातृत्व प्रेम व आदर्श परिवार की व्यवस्था को भूलने वाले हिंदू समाज के पास आज कहने को अपना एक देश भी नहीं है, तो इसी कारण कि वह धर्म को नहीं गांधी-नेहरू के समय से ही व्यक्ति को धारण कर भेड़ की भांति केवल अनुचर बनकर चल रहा है!