क्रिसमस बीत गया है, और जैसा उम्मीद थी कि इस दिन भी किसी भी प्रगतिशील माने जाने वाले लोगों के मुख से यह नहीं निकला कि समय आ गया है जब चर्च क्रिसमस बाद में मनाए, पहले अपने पादरियों से पीड़ित ननों को इन्साफ दिलाए। क्योंकि चर्च एक संस्था के रूप में अब तक फादर Franco Mullakkal एवं अन्य बलात्कार के दोषी (जी, आरोपी नहीं) पादरियों के साथ खड़ा हुआ है।
अभी हाल ही में चर्च द्वारा जो नए वर्ष का कैलेण्डर जारी किया गया था, उसमे भी फादर फ्रैंको मुलक्कल की तस्वीर थी, जिसे क्रोधित लोगों ने जला दिया। पर केरल को पूजने वाले लोग न जाने वहां तक देख क्यों नहीं पाते?
क्या जो नन पीड़ित हो रही हैं, क्या जिन बच्चियों के साथ बलात्कार हो रहे हैं, उनके साथ भी खड़ा हम होना नहीं चाहते? क्या हम यह भी नहीं कह सकते कि हम उनकी पीड़ा के साथ है? भारत देश में सबसे प्रगतिशील राज्य का दर्जा पाए हुए केरल में चर्च द्वारा अपनी ही ननों पर किए जा रहे अत्याचारों की कहानी आपको दहला कर रख देगी।
सिस्टर लूसी को Franciscan Clarist Congregation (FCC) द्वारा केवल इसलिए बाहर निकाल दिया गया था क्योंकि उन्होंने जालंधर के बलात्कार आरोपी फ्रैंको मुल्लाक्क्ल के खिलाफ पीड़ित के पक्ष में खड़े होने का साहस किया था। उन्होंने साफ़ कहा कि उन्हें केवल और केवल इसी लिए निकाला जा रहा है क्योंकि उन्होंनें सच का साथ दिया।
केरल में ननों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार पर Amen: The Autobiography of a Nun भी सिस्टर Sister Jesme द्वारा लिखी जा चुकी है। जिसमें उन्होंने परत दर परत वहां पर लड़कियों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार पर प्रश्न उठाए थे।
इसी के साथ हाल ही में माने पिछले ही साल बलात्कार के एक आरोपी फादर रोबिन वदक्कुमचेरी, जिस पर एक नहीं बल्कि कई बलात्कार के आरोप थे और एक सत्रह साल की अपनी स्टूडेंट के साथ बलात्कार के अपराध पर बीस साल की सजा काट रहा है,
उसने न्यायालय में यह प्रस्तुत किया कि उसे अपनी गलती का अहसास है और वह अब उस बच्ची से विवाह करना चाहता है। मजे की बात यह है कि उसने जिस लड़की का बलात्कार किया था,
उसके बच्चा होने पर उस बच्ची के पिता ने अपराध को स्वीकार किया। परन्तु पुलिस की पूछताछ में टूट गया और रोबिन का नाम लिया। रोबिन के विषय में लूसी लिखती हैं कि रोबिन के अवैध सम्बन्ध कई ननों के साथ है।
लूसी यह भी लिखती हैं कि कई बार सीनियर नन भी अपनी यौन इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए अपने से छोटे पुरुषों के साथ सम्बन्ध बनाती हैं। वह कहती हैं कि उन्होंने ऐसी कई घटनाएं देखी हैं और उन्होंने केवल जीरे के समान ही लिखा है।
12 अगस्त 2020 को एक खबर थी, जिसमें पॉप फ्रांसिस ने इस रिपोर्ट की पुष्टि की थी कि एक अफ्रीकी Diocesan Priest ने 30 ननों को गर्भवती किया था। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि हालांकि चर्च में ननों के साथ होने वाले शारीरिक शोषण की घटनाओं में वृद्धि हुई है, और 23 देशों में यौन शोषण की घटनाएं हुई थीं। फिर भी वैटिकन का कहना है कि यद्यपि वह इन रिपोर्ट्स को स्वीकार करते हैं, पर वह एक ख़ास ही क्षेत्र में स्थित है।
महिलाओं के साथ चर्च में होने वाले दुर्व्यवहार के विषय में सबसे पहली रिपोर्ट एक आयरिश नन Maura O’Donohue ने 1994 में प्रस्तुत की थी। जिसे बाद में पिछले दिनों वेटिकन द्वारा स्वीकार किया गया। उनकी रिपोर्ट में 20 से ज्यादा देश शामिल थे।
उन्होंने ही इस 30 नन वाली घटना के बारे में सबसे पहले बताया था। सस्बे ज्यादा दुःख की बात यह है कि न ही स्थानीय चर्च इस विषय में ननों के साथ आते हैं और न ही उन्हें वैटिकन से कोई समर्थन मिलता है।
apnnews।com के एक लेख के अनुसार वैटिकन के एक अधिकारी ने यह कहा कि यह स्थानीय चर्चों की जिम्मेदारी है कि वह उन पादरियों को दण्डित करें, जो ननों के साथ यह दुर्व्यवहार करते हैं।
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पादरियों द्वारा ननों का यौन शोषण कोई नई बात नहीं है । Maura O’Donohue ने लिखा कि अफ्रीका में एचआईवी एड्स से बचने के लिए पादरी ननों को ही यौन साथी बनाते हैं, क्योंकि वह सुरक्षित हैं। और ननों के एक बार नहीं बल्कि कई बार गर्भपात होते हैं।
यह रिपोर्ट यह बताने के लिए पर्याप्त है कि कैसे इनकी नाक के नीचे मामले होते चले जाते हैं, यह लोग इतने बेशर्म हैं कि हमेशा ही दोषी पादरियों के पक्ष में खड़े होते हैं, क्योंकि वैटिकन के ही अधिकारी का यह कहना है कि यह साबित करना बहुत कठिन होता है, कि मांग स्त्री की तरफ से नहीं हुई है। अधिकतर सम्बन्ध आम सहमति से ही बने होते हैं।
क्रिसमस आया है, और पूरी दुनिया इस जश्न में मस्त है, पर इन बेगुनाहों के आंसू कौन देखेगा? कौन है जो इन के दर्द को साझा करेगा? कौन है जो यह कहेगा कि नहीं जब तक एक भी नन की आँख में आंसू है तब तक क्रिसमस नहीं मनाया जाएगा?
जब तक एक भी नन चर्च नामक संस्था से पीड़ित है तब तक कोई भी चर्च में नहें जाएगा? जब तक ननों को चर्चों से इंसाफ नहीं मिलता तब तक चर्चों पर इस रोशनी का कोई मतलब नहीं?
अफ़सोस, हमारा लेखक और पत्रकार और सेक्युलर समाज क्रिसमस की शुभकामनाएँ देने में सबसे आगे रहता है और दर्द उठाने में सबसे पीछे! काश उनकी तरफ से यह आवाज़ आती, जब तक स्त्रियों पर होने वाले चर्च के अत्याचार नहीं रुकेंगे हम क्रिसमस नहीं मनाएँगे!