मेरे देश की सरकार ने पिछले छह साल में बड़े-बड़े मोर्चो पर विजय प्राप्त कर दिखाया है कि वह कितने मजबूत इरादों वाली सरकार है। केंद्र सरकार न नागरिकता कानून पर झुकी थी और न अब किसान आंदोलन में उसका झुकने का कोई इरादा दिखाई दे रहा है। ऐसी सशक्त सरकार बॉलीवुड के समक्ष इतनी विवश है कि एक विवादित फिल्म में भारतीय वायु सेना की सम्मानजनक वर्दी का अपमान होता देख भी वह कुछ नहीं कर पा रही है।
विवशता ऐसी कि केंद्र सरकार का कोई मंत्री बॉलीवुड के विरुद्ध बोलने में डरने लगा है। अनिल कपूर और अनुराग कश्यप की फिल्म ‘एके वर्सेज एके’ 24 दिसंबर को प्रदर्शित होने जा रही है। नेटफ्लिक्स ने स्पष्ट कर दिया है कि फिल्म किसी तरीके से वायुसेना का अपमान नहीं करती। नेटफ्लिक्स ने दृश्य हटाने या फिल्म की रिलीज रोकने को लेकर कोई बयान नहीं दिया है।
अनिल कपूर की माफ़ी के बाद मीडिया ने भी समझ लिया कि मामला ख़त्म हो गया क्योंकि सरकार की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। सूचना व प्रसारण मंत्रालय की बेशर्मी देख हम जैसों को शर्म आने लगी है।
यदि ये विभाग इतना खोखला है कि सेना का अपमान करने वाली फिल्म पर कार्रवाई तक करने में सक्षम नहीं है तो माननीय राष्ट्रपति द्वारा दिया गया नया कानून तो वापस ले लिया जाना चाहिए। क्या माननीय प्रधानमंत्री तक इन विवादों की आंच नहीं पहुँच रही है। सरकार और जनता के बीच कुछ मुद्दों को लेकर बहुत दूरी बन गई है।
ऐसा ही एक मुद्दा बॉलीवुड है। जनता इस विषय पर जो कह रही है, वह प्रधानमंत्री तक पहुँच ही नहीं पा रहा है। जनता कहना चाहती है कि बॉलीवुड के प्रति अंधा उदारीकरण उसके बीच सरकार की छवि खराब कर रहा है। अनिल कपूर की इस फिल्म पर जनता प्रतिबंध चाहती है।
सरकार के पास तो अब शक्तियां है कि नेट्फ़्लिक्स की इस फिल्म पर प्रतिबंध लगाकर स्पष्ट सन्देश दे कि सेना की छवि के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हालांकि निःशक्त मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के होते ये संभव नहीं लगता। मंत्री महोदय तीन दिन से किसान आंदोलन पर हर घंटे में एक ट्वीट करते हैं लेकिन अनिल कपूर विवाद पर कुछ कहने या लिखने के लिए उनके पास समय नहीं होता।
सूचना व प्रसारण मंत्रालय की निष्क्रियता भविष्य में सरकार की अपार लोकप्रियता पर लगा एक काला कलंक बनकर रह जाने वाली है। आज लोग पूछ रहे हैं कि मंत्रालय ने ओटीटी पर निगरानी रखने के लिए जो समिति बनाई थी, उसका क्या हुआ। कहाँ है वह समिति जो अनिल कपूर की इस फिल्म के प्रोमो की निगरानी नहीं कर पाती।
इस सारे हंगामे के बाद भी फिल्म नियत तिथि को प्रदर्शित की जा रही है। ‘पद्मावत’ स्वयं को बार-बार दोहरा रही है। पद्मावत बनाने वालों को मालूम है कि इस सरकार में वह शक्ति ही नहीं है, जो बॉलीवुड को धर्म विरुद्ध/देशविरुद्ध फ़िल्में बनाने से रोक सके।
ये हमारा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जो हम देखना नहीं चाहते, वह हम पर थोपा जा रहा है। थोपा इसलिए जा रहा है कि बॉलीवुड की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में न आ जाए। हालांकि सरकार को ये चिंता नहीं है कि इस मामले में एक नागरिक के मूलभूत अधिकार क्या होने चाहिए।
बहुत चिंता की बात है