वोट के लिए कांग्रेस कितना नीचे गिर सकती है इसका साक्षात उदाहरण है शहरी नक्सलियों के पक्ष में उतरकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अनर्गल आरोप लगाना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने के आरोप में पांच शहरी नक्सलियों की गिरफ्तारी का कांग्रेस विरोध कर रही है। सोनिया गांधी नियंत्रित वाली डॉ. मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने साल 2013 में इन्हीं शहरी नक्सलियों को गुरिल्ला आर्मी से ज्यादा खतरनाक बताया था।
मालूम हो कि सीपीआई (माओवादी) का सशस्त्र बल है पिपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी। यूपीए-2 सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनाम दायर कर शहरी नक्सलियों गुरिल्ला आर्मी से ज्यादा खतरनाक बताया था। इतना ही नहीं साल 2013 के नवंबर में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने शहर केंद्रित कुछ शिक्षाविदों तथा एक्टिविस्टों के बारे में बताया था कि ये लोग मानवाधिकार की आड़ में ऐसे संगठनों का संचालन कर रहे हैं जिनका जुड़ाव माओवादियों के साथ है। लेकिन आज उसी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी शहरी नक्सलियों के साथ खड़े हैं। खड़े ही नहीं है बल्कि गिरफ्तार शहरी नक्सलियों के लिए मोदी सरकार पर हमला भी कर रहे हैं।
मुख्य बिंदु
* सोनिया गांधी नियंत्रित मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने शहरी नक्सलियों के खिलाफ दिया था हलफनामा
* सीपीआई (माओवादी) का सशस्त्र बल पिपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी 6 हजार लोगों की ले चुकी है जान
डॉ.मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने जिस गुरिल्ला आर्मी से भी शहरी नक्सलियों को खतरनाक बताया था, थोड़ी उसकी करतूत भी जान लीजिए। सीपीआई (माओवादी) के सशस्त्र बल गुरिल्ला आर्मी साल 2001 से लेकर अब तक करीब छह हजार आम नागरिकों की हत्या कर चुकी है। सिर्फ आम नागरिकों की ही नहीं बल्कि दो हजार से भी ज्यादा सुरक्षाकर्मियों को भी मौत का घाट उतार चुकी है। इसके साथ ही साढ़े तीन हजार से अधिक पुलिस तथा केंद्रीय अर्धसैनिक बलों से हथियार लूटने जैसी वारदातों को अंजाम दे चुकी है। यूपीए सरकार ने इतनी खतरनाक गुरिल्ला आर्मी से भी शहरी नक्सलियों को ज्यादा खतरनाक कहा था। तभी तो तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के नेतृत्व वाले गृह मंत्रालय ने कहा था कि अगर गुरिल्ला आर्मी के साथ इन शहरी नक्सलियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई नहीं की गई तो लोगों में सरकार की गलत छवि जाएगी। गृह मंत्रालय ने कहा था कि शहरी नक्सल समर्थकों का अफवाह नेटवर्क काफी प्रभावशाही है। इसी वजह से ये लोग दिन ब दिन ज्यादा प्रभावशाली तरीके से देश की स्थापित कार्यकारी तथा जांच एजेंसियों के अलावा सरकार के खिलाफ प्रोपगेंडा फैलाने में सफल हो रहे हैं। अगर तत्काल इनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई तो नकारात्मक प्रचार को और बल मिलेगा।
2013 में सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में डॉ मनमोहन सिंह की सरकार ने ‘किशोर समरीत बनाम भारत सरकार एवं अन्य’ के मामले में विस्तार से बताया था। सरकार ने बताया था कि किस प्रकार मानवाधिकार की आड़ में काम कर रहे शहरी शिक्षाविदों तथा एक्टिविस्टों का जुड़ाव नक्सलियों से है? सरकार ने कहा था कि समाज में मानवीय कार्यों के नाम पर अलग पहचान बनाकर ये लोग नक्सलियों की मदद करते हैं। लेकिन आज कांग्रेस और राहुल गांधी अपनी ही पूर्व सरकार के हलफनामे को धता बताने पर तुले हैं। मोदी के विरोध में कांग्रेस इतनी अंधी हो गई है कि उसे अपनी सरकार का लिया गया फैसला दिखाई नहीं देता है। जिस शहरी नक्सलियों को यूपीए सरकार ने समाज के लिए खतरा बताया था उसी को कांग्रेस समाज सुधारक साबित करने पर तुली हुई है।
URL: Urban Naxals more dangerous than the guerrilla army upa said before
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