हरम! हमारे सामने जैसे ही हरम का नाम आता है, उसे लेकर पश्चिमी इतिहासकारों में हमेशा से ही एक आकर्षण रहा है। यह आकर्षण इतना ज्यादा है कि इसी बात पर मुगल सुल्तानों को श्रेष्ठ घोषित किया जाता था कि उसके हरम में कितनी औरतें होती थीं। जितनी ज्यादा औरतें हरम में, उतना ही उनकी नजर में सुल्तान महान! तभी शिवाजी कभी भी अंग्रेज इतिहासकारों के लिए एक विद्रोही से ज्यादा नहीं हुए और शाहजहाँ, औरंगजेब सब महान होते रहे। हरम ने अंग्रेजी कलाकारों को अपनी तरफ खींचा है और उन्होंने भारत से लेकर तुर्की तक के हरम की तस्वीरें, उपन्यास और कहानियाँ रच डाले हैं।
खिलजी वंश के गयासुद्दीन खिलजी (शासन काल (1439-1509 ई.)) ने अपने बड़े हरम को रखने के लिए एक जहाज महल बनाया था। तो वहीं अलाउद्दीन खिलजी (1266-1316 ई.) के लौंडा इश्क के बारे में सभी जानते ही हैं। मार्को पोलो ने अपनी चीन यात्रा के दौरान कुबलाई खान (known as the Emperor Shizu of Yuan – reigning from 1260 to 1294), जो कि एक मंगोल था, उसकी अय्याशियोंके बारे में विस्तार से लिखा है। मगर उसकी यह अय्याशियाँ महान खान की उपलब्धियां थीं। उसकी चार कानूनी बीवियां थीं और सात हजार के लगभग रखैलें! और वह हर दो साल में कुछ रखैलों को हटा देता था और एक गहन सिलेक्शन प्रक्रिया के बाद नई रखैलों को अपने हरम में लाता था। मार्को पोलो ने विस्तार से लिखा है कि कैसे लड़कियों के अंग अंग का मुआयना किया जाता था और कितनी बार किया जाता था।
जहाँगीर के हरम में छह हज़ार औरतों के साथ साथ कहा जाता है कि आदमी भी इंतजार में रहा करते थे। मगर क्या आपको पता है कि सबसे ज्यादा औरतों वाला और इतिहास का सबसे बड़ा हरम और सबसे विकसित हरम कौन सा था? आखिर वह हरम कौन सा था जिसमें घोड़े तो महंगे खरीदे जाते थे, मगर लड़कियों की कीमत उनसे भी कम होती थी।
वह हरम था ओटोमन साम्राज्य का सेराग्लियो हरम! उस हरम में हज़ारों औरतें बिना बाहर की दुनिया देखे बिना मर जाती थीं। इतनी सारी औरतें थीं कि शायद उनके जीवन के दिन कम हो जाते होंगे, पर औरतें नहीं!
सुल्तान महमूद द्वितीय (30th Sultan of the Ottoman Empire (1808 -1839)), जिसे दुनिया “विजेता” कहती है उसे नगर बसाने का शौक था। ऐसे ही उसने बसा दिया, यह उसकी ही औरतों का शहर! अलेव लैटर क्रौतिएर (Alev Lytle Croutier) अपनी पुस्तक Harem-Behind the veil में इसके बारे में और विस्तार से बताते हैं। गुलामों की बात लिखते हुए वह लिखते हैं
“गुलामों के बाज़ार से बहुत सुन्दर लड़कियों को बादशाह के दरबार के लिए खरीदा जाता था, जिन्हें अक्सर अपने सुल्तान को तोहफा देने के लिए उसके ही सेनापति या विदेशी मेहमान खरीदते थे। और हर साल कुर्बान बैरम के मौके पर सुलतान की वालिदा ही एक गुलाम औरत अपने बेटे को खरीदकर देती थी।
यह सभी लडकियां गैर मुस्लिम होती थीं, और कम उम्र की! काकेकश (Caucasus) क्षेत्र की गोरी, और सुन्दर लडकियों की गुलामों की मंडी में बहुत मांग रहती थी। उन्हें या तो उठाकर ले आया जाता था या फिर गरीब मातापिता के द्वारा बेच दिया जाता था।” आगे वह लिखते हैं-
“Circassian girl, about eight years old; Abyssinian virgin, about ten; five-year-old Circassian virgin; Circassian woman, fifteen or sixteen years old; about twelve-year-old Georgian maiden; medium-tall Negro slave; seventeen-year-old Negro slave। Costs about 1000–2000 kurush
उन्होंने गुलाम लड़कियों की कीमत बताई है कि यह लडकियां गुलामों की मंडी से 1000-2000 कुरुष में आ जाती थीं, जबकि एक घोड़े की कीमत 5000 कुरुष के करीब हुआ करती थी।
इसी पुस्तक में लूसी डफ़ के हवाले से लिखा है कि सेरासियन और जॉर्जियाई परिवार अपने बच्चों को इस मंडी में खुद ही बेचने आते थे जबकि अश्वेत गुलाम अपनी आज़ादी के लिए लड़ते थे।”
इतिहास चाहे भारत का हो या तुर्की का, एक बात तो कॉमन है कि अंग्रेजों ने भी अय्याशियों के इतिहास की बढ़चढ़ कर तारीफ़ की है, फिर वह अय्याशियाँ किसी भी मुस्लिम की हों! वह अंग्रेजी इतिहासकारों की नजर में महान रहे हैं! फिर चाहे हिन्दू लड़कियों को खरीदने वाले हिंदुस्तान के मुगल हों या फिर ओटोमन के मुग़ल, जो घोड़ों से भी सस्ती लड़कियों की कीमत रखते थे।
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अदभुत जानकारी पूर्ण लेख।