सुप्रीम कोर्ट ने देश के प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रचने वाले अर्बन-नक्सलियों को सलाखों के पीछे भेजे जाने का रास्ता साफ कर दिया है। तीन जजों की बेंच में से मुख्य न्याधीश जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खनवेलकर ने अपने आदेश में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दखल नहीं देगा पुलिस चाहे तो उन्हें गिरफ्तार कर सकती है। अभियुक्त निचली अदालत की शरण ले सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पांचो अर्बन-नक्सलियों को इतनी राहत दी है कि वे चार हफ्ते तक हाउस अरेस्ट रहेंगे। इसी दौरान उन्हें निचली अदालत की शरण लेने का अधिकार होगा। सुप्रीम अदालत में पुणे पुलिस ने अभियुक्तों के खिलाफ जितने गंभीर आरोप पेश किए उनसे शहरी नक्सलियों को निचली अदालत से राहत मिलने की संभावना नहीं दिखती।
सुप्रीम अदालत के फैसले में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का फैसला अभियुक्तों के लिए राहत देने वाला था। लेकिन संविधानिक व्यवस्था के मुताबिक सुप्रीम अदालत के फैसले में बहुमत के जजों के फैसले के ही मायने होते हैं। वही नजीर बनता है। लेकिन सोचिए यदि जो फैसला अल्पमत के जज का था वही फैसला बहुमत में होता तो क्या होता? हर बुरहानबानी नक्सली सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हवाले से खुद को क्रांतिकारी साबित कर सकता था क्योकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सिर्फ संबंधित मामले में लागू नहीं होता वह नजीर बनता है। सुप्रीम अदालत ने अर्बन-नक्सलियों की गिरफ्तारी का रास्ता साफ कर समाज के सामने उस मानसिकता के खिलाफ बड़ी लकीर खींच दी है जो देश को विघटन की तरफ ले जाने की राह तैयार करते हैं।
पुणे पुलिस ने 30 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने के आरोप में पांच अर्बन-नक्सलियों को अपनी हिरासत में लिया था। इन सभी पर भीमा-कोरेगांव हिंसा से जुड़े होने का आरोप लगा है। इनकी गिरफ्तारी को लेकर पूरे देश में वामपंथी गैंग ने विरोध करना शुरू कर दिया। दिलचस्प यह है गिरफ्तारी को लेकर बढ़ते विवाद के बाद ये मामला उसी दिन सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। प्रशांत भूषण समेत अन्य वकील मानो पहले से अपनी फाइल लेकर तैयार थे। उसी दिन सुप्रीम कोर्ट पूरे मामले की सुनवाई को तैयार हो गया। सुप्रीम कोर्ट की सामान्य सुनवाई शाम चार बजे तक खत्म हो जाती है। लेकिन देर शाम सुप्रीम कोर्ट की बैंच बैठी और अर्बन-नक्सलियों के मामले पर लंबी जिरह आधी रात तक हुई।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में गिरफ्तार किए गये पांचों अर्बन नक्सलियों को हाउस अरेस्ट करने के आदेश दिए। अपने आदेश के बाद उस वक्त सुप्रीम कोर्ट में अर्बन नक्सलियों की गिरप्तारी को लेकर पुणे पुलिस की नियत पर गंभीर सवाल उठाए। पुणे पुलिस ने अदालत को भरोसा दिलाया था कि अभियुक्तों के खिलाफ उनके पास पर्याप्त सबूत हैं लेकिन उस समय अदालत ने पुणे पुलिस की दलीलों को मानने से इंकार कर दिया। फिर लंबी बहस के दौरान पुणे पुलिस ने सभी पांचो अभियुक्त रांची से फादर स्टेन स्वामी, हैदराबाद से वामपंथी विचारक और कवि वरवरा राव, फरीदाबाद से सुधा भारद्धाज और दिल्ली से गौतम नवलखा के खिलाफ गंभीर सबूत पेश किए। पूणे पुलिस के सबूतों और साक्ष्यों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट की बहुमत की बैंच ने अभियुक्तों की गिरफ्तारी पर से रोक हटा दी। लेकिन उसी बैंच के जस्टिस चंद्रचूड़ अपने पहले के रुख पर कायम रहते हुए पुलिस की नियत पर सवाल उठाते नजर आए।
इस मामले में जस्टिस चंद्रचूड़ की टिप्पणी बैंच से अलग थी। उन्होने सवाल उठाया कि पुणे पुलिस ने मीडिया के सामने सबूत क्यों रखा? उनके मुताबिक पुलिस जानबूझकर आम आदमी की सोच बदलने के लिए कर रही है। जिस सुप्रीम कोर्ट के जजों ने परम्परा से हट कर अपने आपसी विवाद को मीडिया के सामने रखने का इतिहास रचा उस सुप्रीम अदालत की यह टिप्पणी कई सवाल खड़े करती है। पुलिस अमूमन किसी भी बड़ी गिरफ्तारी के बाद प्रेस से बात करती है। दिलचस्प देखिए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में अल्पमत के जज के फैसले के मायने नही होते लेकिन मीडिया के एक वर्ग ने उसी को मानो सुप्रीम अदालत का निर्णय साबित कर दिया।
भीमा कोरेगांव में नक्सलियों से संबंध के आरोप में गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा इस मामले में अदालत कोई दखल नहीं देगा। तीन जजों की बेंच से दो जजों मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खनवेलकर ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दखल नहीं देगा पुलिस चाहे तो उन्हें गिरफ्तार कर सकती है। अभियुक्त निचली अदालत की शरण ले सकते हैं। बहुमत के इस फैसले में कहा गया कि मामले कि SIT से जांच की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक पुलिस ने विरोध का स्वर दबाने के लिए उन्हें गिरफ्तार नहीं किया और उनकी गिरफ्तारी किसी भी तरह से गलत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का यही फैसला अब नजीर की तरह होगा! जब मामला निचली अदालत में जाएगा तो सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के मायने होंगे क्योंकि सुप्रीम अदालत ने ये फैसला पुणे पुलिस के साक्ष्यों और सबूतों के आधार पर दिया है।
उधर इसी मामले में जस्टिस चंद्रचूड़ ने अल्पमत के अपने फैसले में इस गिरफ्तारी को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए महाराष्ट्र पुलिस की आलोचना की है और इसे मीडिया ट्रायल करार दिया है। चंद्रचूड़ ने SIT जांच की जरूरत बताई है। उन्होंने सब वही बातें कहीं है जो याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है। लेकिन चूंकि फैसला अल्पमत का है इसलिए जस्टिस चंद्रचूड़ के फैसले का कोई असर नहीं होगा। बावजूद इसके चर्चा में जस्टिस चंद्रचूड़ की टिप्पणी है।
इससे पहले भी मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा था कि अगर किसी प्रभावित क्षेत्र में लोगों का हाल जानने भेजा जाता है तो इसका मतलब ये नहीं है कि वो प्रतिबंधित संगठन के सदस्य हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि हमें सरकार का विरोध, तोड़फोड़ व गड़बड़ी फैलाने वालों के बीच के अंतर को साफ़ तौर पर समझना होगा। साफ है कि शुरुआत से ही जस्टिस चंद्रचूड़ अपने मत पर कायम थे।
इस मामले में सरकार की ओर से पेश रिपोर्ट में यूनिवर्सिटीज और सामाजिक संस्थाओं के नाम शामिल हैं। महाराष्ट्र सरकार की ओर से ASG तुषार मेहता ने कहा था कि सभी आरोपियों के खिलाफ मामले में पुख्ता सबूत हैं। FIR में छह लोगों के नाम हैं लेकिन किसी की भी तुरंत गिरफ्तारी नहीं की गई थी, शुरूआती जांच में सबूत सामने आने पर छह जून को एक गिरफ़्तारी हुई जिसे कोर्ट में पेश कर के रिमांड पर लेकर पूछताछ की गई। कोर्ट से सर्च वांरट लिया गया था। जांच की निगरानी डीसीपी व सीनियर अधिकारी ने की थी।
जब्त किए गए कंप्यूटर लैपटाप व पेनड्राइव को फॉरेंसिक जांच के लिए लैब भेजा गया। पूरी सर्च की वीडियोग्राफ़ी करवाई गई। आरोपी सीपीआई माओवादी संगठन से जुड़े है और ये प्रतिबंधित संगठन है। तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा था कि दस्तावेजों में हमे रोना विल्सन की तस्वीर मिली । उसमें रोना के साथ दिख रहा शख्स छत्तीसगढ़ में 40 लाख और महाराष्ट्र में 50 लाख के इनाम वाला आरोपी है। मेहता ने कहा था कि कोर्ट आरोपियों की दलील सुनकर अपना विचार न बनाए। सरकार की भी पूरी बात सुननी चाहिए।
पुलिस के पास इतने पुख्ता सबूत यदि किसी सामान्य आरोपी के खिलाफ होता तो वो कब का सलाखों के पीछे होता। लेकिन वकीलों की लॉबी में अर्बन-नक्सलियों की पैठ का ही मसला था कि रातों-रात मामला सुप्रीम कोर्ट को सुनना पड़ा।
URL: Justice Mishra uprooted urban Naxal mentality in Supreme Court before flourishing
Keywords: urban naxal case, supreme court on urban naxals, bhima koregaon violence, bhima koregaon case, cji dipak misra, शहरी नक्सल, शहरी नक्सलियों पर सर्वोच्च न्यायालय, भीम कोरेगांव हिंसा, भीम कोरेगांव, सीजेआई दीपक मिश्रा