ध्यान का यदि आप लगातार अभ्यास करते हैं तो आपकी अनेक इंद्रियां सजग और काफी संवेदनशील हो जाती हैं। जैसे मेरी घ्राण शक्ति बेहद संवेदनशील हो चुकी है, और इसके कारण मुझे काफी परेशानियां भी झेलनी पड़ती है।
अब कल मकबरों के बारे में जो लिखा उसमें कुछ लोगों को आपत्ति हो गयी। सच कह रहा हूं ताजमहल, हुमायूं का मकबरा, लोदी गार्डेन, सफदरजंग का मकबरा आदि में मुझे मुर्दों की गंध साफ-साफ महसूस होती है।
पशु-पक्षियों की घ्राण शक्ति इनसान से कहीं अधिक मजबूत होती है। इसलिए मांस भक्षण करने वाले चील, कौए, गिद्ध, कुत्ते आदि आपको इन मकबरों के पास बड़ी मात्रा में मिल जाते हैं।
हुमायूं का मकबरा जाइए, उसके आसपास के पेड़ों पर बड़ी संख्या में चील-गिद्ध बैठे मिल जाते हैं। इतनी बड़ी संख्या में और किसी मकबरे पर यह नहीं मिलते, क्यों? क्योंकि सबसे अधिक मुगलों की लाश उसी मकबरे में दफन है। दारा शिकोह सहित करीब 150 मुगल वारिसों की लाश वहां दफन है।
हां, एक बात और। काम के वशीभूत एकांत की तलाश करते लड़के-लड़कियां, और यहां तक कि कम उम्र लड़कों या कार्यालय सहकर्मी के साथ शादीशुदा महिलाएं भी इन कब्रगाहों पर अश्लील हरकतें करते मिल जाती हैं! सिकंदर लोदी के मकबरा पर मैंने कल काम चेष्टा करते एक जोड़े को पाया। इन कब्रगाहों पर इनकी कामुक हरकतें को देख लें, वह पैशाचिक ही है! और शायद इसीलिए एक मकबरे (ताजमहल) का काम केंद्र ( प्रेम सिर्फ कहने के लिए) के रूप में मार्केटिंग की गयी है, ताकि सनातन की परिवार नामक संस्था प्रेम की जगह काम केंद्रित हो जाए! जिससे उसे ढाहना आसान हो, और आज वही हो रहा है!
याद रखिए मुर्दे के टीले पर काम तो संभव है, प्रेम कभी नहीं!दिल्ली में तलाक दर तेजी से बढ़ रही है। यहां रिश्तों की बुनियाद ही काम और कुसंस्कार पर टिका है! शादीशुदा युगलों के जीवन से प्रेम विलुप्त हो रहा है, और रिश्ते मकबरा बनते जा रहे हैं!
ऐसे जगहों पर जाते ही मुझे मुर्दे की गंध आने लगती है। यही नहीं, मेरे अंदर की ऊर्जा कम होने लगती है। जबकि आप मंदिर जाइए, आपकी ऊर्जा बढ़ जाती है। मैं मकबरों से आने के बाद नहाता हूं, तब जाकर अपनी ऊर्जा को रिकवर कर पाता हूं। आप सोचिए, सनातन श्मशान से आकर स्नान करने को अनिवार्य क्यों कहता है?
मैं आपको सनातन के सूक्ष्म तल को समझाने की कोशिश कर रहा हूं, ताकि आपके जीवन में मांदिर की सुगंध हो, कब्रिस्तान की गंध नहीं! मेरा और कोई लक्ष्य नहीं है। धन्यवाद!
आपसे कहीं अधिक समझदार गिद्ध और चील हैं!
यह मेरा लगातार का एक्सपीरियंस है। यह दिल्ली का लोदी गार्डन है, जहां लोदी वंश के बादशाहों की कब्रगाह है। तस्वीर में देखिए कितने गिद्ध यहां मंडरा रहे हैं। यही हाल हुमायूं का मकबरा से लेकर ताजमहल तक है।
लाश से आत्मा जब निकल जाती है तो उसकी सड़ांध सदियों, सदियों तक मौजूद रहती है, जो पूरे वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा फैलाती रहती है। कई सदी गुजरने के बाद भी इन मकबरों के ऊपर मंडराते गिद्ध इसके सबूत हैं।
सनातन धारा ने इसीलिए शव-दाह के विचार को आगे बढ़ाया, और यही कारण है कि भारत भूमि सकारात्मक आध्यात्मिक ऊर्जा से सदा ओत-प्रोत रही।
जो सनातनी कब्र, मजार को पूजने जाते हैं, जरा रुक कर सोचें! एक गिद्ध जिस नकारात्मक ऊर्जा का एहसास कर लेता है, आप नहीं कर पाते, यह आपकी जड़ता और मूढ़ता की गवाही है।
आप सेक्यूलर नहीं, मंगते भिखारी हैं जो अपना पद, पैसा, प्रतिष्ठा हासिल करने या उसे बनाए रखने आदि के लिए लाशों के आगे अंधे बनकर माथा रगड़ रहे हैं! आपसे कहीं अधिक समझदार गिद्ध और चील हैं!