एक बार फिर मैं मानव कल्याण में कोरोना से लड़ने में, प्लाज़्मा थिरैपी, वैक्सीन तथा इन्यूनिटी के रोल को समझाने का प्रयास करूँगा।
प्लाज़्मा थिरैपी 130 वर्ष पूर्व की खोज है। यह खोज किसी भी मानव बीमारी में अभी तक कारगर सिद्ध नहीं हुई। सरल शब्दों में कहें तो इस थिरैपी में उधार की इम्यूनिटी मिलती है जिसका असर लिमिटेड समय तक ही होता है। सभी जानते हैं कि उधार में ली हुई वस्तु से तत्कालिक काम तो बन सकता है परन्तु परमानेन्ट काम के लिये आपकी अपनी ही इम्यूनिटी काम आती है। भूखे को खाना खिलाने से अच्छा है कि उसे रोटी कमाना सिखा दें।
प्लाज़्मा थिरैपी में पूर्व में कोरोना से स्वस्थ हुये व्यक्ति के प्लाज़्मा को खून से निकाल कर कोरोना संक्रमित व्यक्ति को दिया जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि कोरोना से स्वस्थ व्यक्ति के खून में कोरोना से लड़ने वाली एन्टीबॉडी स्वस्थ होने के कुछ समय बाद भी मौजूद रहती है। इस प्रक्रिया में दूसरे की इम्यूनिटी द्वारा बनाई हुई एन्टीबॉडी आपके शरीर में मौजूद वाइरस को परास्त तो कर सकती है पर आपकी इम्यूनिटी को उपयुक्त एन्टीबॉडी बनाने का ज्ञान नहीं दे सकती। किंग्स कॉलेज लंदन की रिसर्च टीम के अनुसार कोरोना की एन्टीबॉडीज बहुत कम समय के लिये एक्टिव रहती है जिसका तात्पर्य यह भी है कि जो प्लाज़्मा आपको दिया जा रहा है उसमें असरकारक एन्टीबॉडी मौजूद है या नहीं, इसमें अभी भी संशय है। अत: यदि आपको दिये जाने वाले प्लाज़्मा में उपयुक्त एन्टीबॉडी मौजूद हैं तो आपको तात्कालिक लाभ मिल सकता है और आप कोरोना संक्रमण से बचने में सफल हो सकते हैं लेकिन यदि आपको आगे भी करोना से सुरक्षित बने रहना है तो आपको अपनी इम्यूनिटी को निरंतर स्ट्रॉंग बनाये रखना होगा।
वैक्सीन, इम्यूनिटी को एडवांस में आने वाली समस्या की सूचना देता है, जिससे मुसीबत आने पर इम्यूनिटी अविलंब एक्शन ले सके। वैक्सीन के ज़रिये जिस विषाणु से सुरक्षा प्रदान करवानी होती है, उसी विषाणु को कम मात्रा में कंट्रोल्ड तरीक़े से शरीर में प्रविष्ट किया जाता है। विषाणु के अंदर प्रवेश करते ही इम्यूनिटी एक्शन में आ जाती है और उपयुक्त एन्टीबॉडी बनाकर अंदर आये हुये विषाणु को समाप्त कर देती है। इस प्रक्रिया से इम्यूनिटी को उस विषाणु से लड़ने के लिये उपयुक्त एन्टीबॉडी का ज्ञान हो जाता है और जब भी अटैक होता है तो इम्यूनिटी एन्टीबॉडी बनाकर विषाणु को परास्त कर आपको सुरक्षा प्रदान करती है। ध्यान रहे कि उपयुक्त एवं पर्याप्त एन्टीबॉडी बनाने के लिये भी आपकी इम्यूनिटी का स्ट्रॉन्ग होना ज़रूरी है।
अब प्रश्न यह है कि कोरोना वाइरस एक वाइरस नहीं है बल्कि इसका पूरा परिवार है और भारत में अभी तक सात तरह के कोरोना वाइरस मिले हैं। इसका तात्पर्य यह है कि यदि किसी भी व्यक्ति को कोरोना से पूरी तरह सुरक्षित होना है तो क्या उसे सात अलग-अलग वैक्सीन लगाने होंगे ? क्या भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में यह संभव है? फ़िलहाल अभी एक भी वैक्सीन नहीं बन पाई और किसी भी वैक्सीन के कॉमर्शियल प्रोडक्शन में कम से कम दो साल का समय लगता है। अत: वैक्सीन कब, कहाँ और कितने लोगों को सुरक्षा प्रदान करेगी आप स्वयं अंदाज़ा लगा सकते हैं। आपको कोरोना वैक्सीन की वास्तविकता को समझ कर अपने जीवन को कोरोना से सुरक्षित करने का इंतज़ाम स्वयं करना होगा।
‘किंग्स कॉलेज’ लंदन की रिसर्च टीम ने यह भी बताया है कि कुछ लोगों में कोरोना इन्फेक्शन के बाद बहुत जल्दी ही एन्टीबॉडीज समाप्त हो जाते हैं। क्या इसका तात्पर्य यह भी हो सकता है कि कोरोना से सुरक्षा के लिये एक वैक्सीन से काम ना चले और लोगों को समय-समय पर बूस्टर डोज़ लेने पडे़ ? अत: वैक्सीन की सार्थकता को लेकर कई सवाल खड़े होते हैं।
वैक्सीन को लेकर एक और बात का स्पष्ट होना ज़रूरी है कि वैक्सीन सिर्फ़ उन्हीं लोगों को सुरक्षा प्रदान कर सकती है जो कोरोना संक्रमित नहीं हैं। जो लोग पूर्व में कोरोना संक्रमित हो चुके हैं या फ़िलहाल कोरोना के संक्रमण से ग्रसित हैं उनके लिये वैक्सीन का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
उपरोक्त बातों से एक ही बात सामने आती है कि जब तक कोरोना का कोई ठोस उपाय नहीं निकलता इम्यूनिटी स्ट्रॉंग रखना ही पड़ेगा।
कमान्डर नरेश कुमार मिश्रा
फाउन्डर ज़ायरोपैथी
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