स्वामी सूर्यदेव जी। हमारे यहां वैदिक वांग्मय में किसी भी मंत्र का तीन तरह से अर्थ लिया जाता है. आधिदैविक-आधिभौतिक-आध्यात्मिक ऋषि मानते हैं कि जो भी ब्रह्मांड में है वह इस पिंड यानी हमारे शरीर में है यह शरीर ब्रह्मांड का ब्लूप्रिंट है जिसने इसे डिकोड कर लिया समझो अनंत आकाशगंगाओं से भरे उस विस्तार को भी जान लिया.
यही एक कारण रहा है कि वटवृक्ष के नीचे आंख बंद किए बैठे हजारों लाखों ऋषियों ने अपने शरीर के अंदर झांककर बाहर ब्रह्मांड के रहस्यों को ग्रंथो में खोल दिया है छान्दोग्य उपनिषद में एक जगह वर्णन है कि वह जो आदित्य है वह ऐसा है जैसे मधुमक्खी का छत्ता किरणें उसकी मधुमक्खियां हैं यह बिल्कुल सुवर्णमय है
ॐ असौ वा आदित्यो देवमधु l तस्य द्योरेव तिरशचिनव शोअन्तरिक्षमपूपो मरीचय: पुत्रा: छान्दोग्य-३-१,
आज कबाड़ में यह अखबार मिला इसमें अमेरिकन लिखते हैं कि जमीन से सूर्य का अध्ध्यन करने की मानव क्षमता की यह सबसे ऊंची छलांग है…सच कह रहे हैं इसमें कोई संदेह नहीं. लेकिन मुझे दूसरा पक्ष भी साफ दिखाई दे रहा है…खोज तो वे कर रहे हैं इसमें कोई संदेह नहीं है,, लेकिन उनके पास हमारे वेद-शास्त्र-ब्राह्मण ग्रंथ- दर्शन -उपनिषद हैं.
और उन्हें इस बात पर पूरा भरोसा है कि इनमें जो लिखा है वह 100% नहीं बल्कि हजार परसेंट सत्य है, इसलिए वे जो भी पढ़ते हैं ठीक उसी दिशा में खोज करते हैं और सफल होते हैं बल्कि मुझे तो यह भी लगता है कि हो सकता है खोज करते ही न हों…बस उपनिषद में पढ़ा और अखबार में अपने नाम से निकलवा दिया कि आदित्य मधुमक्खी के छत्ते की तरह है
उनको पता है कि जांच कोई करेगा नहीं और कल को कोई वैज्ञानिक जांच करे भी तो ऋषियों ने जो लिखा है बिल्कुल वही मिलेगा….क्योंकि भारतीय ज्ञान विज्ञान पर विश्व के ज्यादातर देशों और प्रबुद्ध लोगों को भरोसा है,,सिर्फ खुद भारतीयों को छोड़कर,हम तब मानते हैं जब वे हमें बताते हैं,,नीचे चित्र दे रहा हूँ पढ़ लें,,
और अगर कोई सक्षम हो, विज्ञान को समझता हो तो इस विषय की तरफ ध्यान दे…उनकी फाल्स थ्योरी न पढ़ें बल्कि पुरुषार्थ करके अपने पूर्वजों के ज्ञान से नए कीर्तिमान गढ़े