सादा जीवन, उच्च विचार, अच्छे जीवन का आधार ;
भोग विलास के जितने साधन, उनसे रहो सदा होशियार ।
भौतिकवादी हमें बनाता, परम लक्ष्य से ये भटकाता ;
आवागमन नहीं कटता है , मानव मोक्ष कभी न पाता ।
दुख दारिद्र् यही देता है, मन की शांति नहीं पाता है ;
रोता रोता जग में आया, रोता हुआ चला जाता है ।
जीवन, धन के लिए खपाता , पाप का बोझा खूब बढ़ाता ;
सब कुछ यहीं धरा रह जाता, साथ नहीं कुछ भी है जाता ।
मर कर भी वो चैन न पाता, हर क्षण नर्क को भोगा करता ;
अगला जीवन जो भी पाता, बोई फसल काटता रहता ।
पाप कीफसल जो उसने बोई, कई कई जीवन काटा करता ;
कुत्ता,बिल्ली,सुअर भी बनता, अपने पाप वो काटा करता।
ऐसे ही वे नेता अफसर, जो करते हैं भ्रष्टाचार ;
महामूर्ख ये सब के सब हैं , देश का करते बंटाधार ।
इन्हें देखकर ये लगता है , मर कर भी सब साथ जायेगा ;
चाहे जितनी करो कमाई , पर कुछ साथ नहीं जायेगा ।
मानव जीवन व्यर्थ गंवाया , सुअर की तरह है जीवन जीया ;
रिश्वत रूपी मैला खाया , जोंक की तरह खून है पीया ।
बदकिस्मत हैं ये सब सारे , सारा जीवन व्यर्थ गंवाया ;
सदा किया घाटे का सौदा , अनमोल रतन कौड़ी में गंवाया।
बड़ा ही दुर्लभ मानव जीवन ,यहीं मुक्ति का मार्ग है मिलता;
अनमोलरतन है चरित्रतुम्हारा इसीसेतुमको सब कुछ मिलता
चरित्रवान की बुद्धि शुद्ध है , चिन्मय बुद्धि यही बनती है ;
ईश कृपा होती है उस पर , सही राह उसको मिलती है।
सच्चा गुरु वही पाता है , सही राह पर जो ले जाता ;
आत्म कृपा होती है उस पर , जीवन का उद्देश्य है पाता।
परमानंद में रमण है करता , दुख दारिद्र कभी न होता ;
आवागमन नष्ट हो जाता , परम लक्ष्य,जो मोक्ष है, पाता ।
“वंदे मातरम -जय हिंद”
रचनाकार :ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”