हंसो, जी भर कर हंसो। मेरा आश्रम हंसता हुआ होना चाहिए। हंसी यहां धर्म है। यह आनंद-उत्सव है। यहां उदास होकर नहीं बैठना है। यह कोई उदासीन साधुओं की जमात नहीं। उदासीनता को मैं रोग मानता हूं, साधुता नहीं–रुग्णता! जो उदासीन हैं, उनकी मानसिक चिकित्सा की जरूरत है। प्रफुल्लता स्वास्थ्य का लक्षण है! प्रफुल्लित होओ और धीरे-धीरे जैसे-जैसे तुम्हारे जीवन में हंसी की किरणें फैलेंगी, चकित होओगे कि कितना हंसने को है! खुद के जीवन में हंसने को है, औरों के जीवन में हंसने को है! चारों तरफ हंसने ही हंसने की घटनाएं हैं। वह तो हम देखते नहीं, कंजूस हैं, कि कहीं हंसना न पड़े। तो हमने देखना ही बंद कर दिया है। नहीं तो चारों तरफ प्रतिपल क्या-क्या नहीं घट रहा है! हर चीज हंसने की है।”
ओशो।
ओशो जन्मोत्सव पर विशेष…हंसो, जी भरकर हंसो। Osho
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