विपुल रेगे। प्रभास और पूजा हेगड़े की राधे-श्याम को पहले दिन मिश्रित प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ रहा है। प्रभास के कई प्रशंसकों ने इस प्रेम कहानी में थ्रिल खोजने का प्रयास किया है और कुछ दर्शकों को इसमें रोमांच नहीं मिला। प्रभास की पिछली फिल्म साहो को भी ऐसी मिश्रित प्रतिक्रियाएं मिली थी लेकिन फिल्म बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाने वाली सिद्ध हुई। राधे-श्याम एक विशुद्ध प्रेम कथा है। पहली दृष्टि में देखा जाए तो ये बॉक्स ऑफिस पर सुरक्षित प्रतीत होती है। प्रभास के करोड़ों प्रशंसकों के विश्वास पर इसकी बड़ी सफलता निर्भर होगी।
निर्देशक राधा कृष्ण कुमार की राधे-श्याम सत्तर के कालखंड में स्थापित की गई एक प्रेम कथा है। इसका नायक विक्रमादित्य एक ख्यात ज्योतिषी है। वह हाथ की रेखाएं पढ़कर सटीक ढंग से व्यक्ति का भविष्य बता देता है। वह विवाह नहीं करता क्योंकि उसका मानना है कि उसके हाथ में प्रेम की रेखा ही नहीं है। एक दिन रेल यात्रा में उसकी मुलाक़ात प्रेरणा से होती है।
प्रेरणा एक डॉक्टर है। दोनों के मन में प्रेम के बीज पड़ जाते हैं। लोगों का सटीक भविष्य बताने वाला विक्रमादित्य इस प्रेम को लेकर दुविधा में है। वह अपने गुरुजी से इस बारे में बात करता है। उसके गुरु उसे बताते हैं कि हस्तरेखा विज्ञान 99 प्रतिशत ही सटीक है और उसमे भी गलती की संभावना है। एक दिन उसे पता चलता है कि प्रेरणा को एक खतरनाक किस्म का ब्रेन ट्यूमर है।
डॉक्टर कहते हैं कि वह जल्दी ही मर जाएगी लेकिन विक्रमादित्य के अनुसार उसका बहुत सा जीवन बाकी है। एक समय ऐसा आता है जब विक्रमादित्य को अपने गुरु की इस बात पर विश्वास करना पड़ता है कि दुनिया में ऐसे कुछ लोग होते हैं जो अपना भाग्य अपने हाथों से लिखते हैं। इस फिल्म की सबसे बड़ी ताकत इसका प्रस्तुतिकरण है।
कैमरा संचालन, वीएफएक्स का बुद्धिमानी से प्रयोग, इटली की नयाभिराम लोकेशंस, फिल्टर्स का सुंदर प्रयोग, कलाकारों का सहज अभिनय राधे-श्याम की बॉक्स ऑफिस क्षमता है। ऊपर से प्रभास के नाम का वजन भी बहुत है। इस समय प्रभास का समय ऐसा चल रहा है कि उनकी एक अदा पर लोग फिल्मों के टिकट लुटा देते हैं। फिल्म के चलने न चलने का सबसे बड़ा आधार प्रभास और पूजा हेगड़े की लव केमेस्ट्री है।
वह परदे पर कितनी उभर कर आई है, फिल्म की सफलता उस टिकी हुई है। निश्चित रुप से उनके प्रेम प्रसंग परदे पर बड़े सुखद लगते हैं। वैसे तो ट्रेन में पहली मुलाक़ात का दृश्य ही पैसा वसूल कर देता है। दृश्य विशेष प्रभाव के साथ फिल्माया गया है और मन को छू लेता है। इसमें कोई एक्शन नहीं है, कोई थ्रिल नहीं है। ये एक प्रेम कथा है। निर्देशक राधा कृष्ण कुमार ने वर्षों पुराने ट्रेंड को बदलने का प्रयास किया है।
बहुत समय से बड़े परदे पर विशुद्ध प्रेम कथा देखने को नहीं मिल रही थी। एक लंबे अरसे बाद ऐसी फिल्म आई है, जिसका विषय ही प्रेम है। हिन्दी पट्टी को गंभीरता से लेने का प्रयास इस फिल्म में भी दिखाई दिया है। निर्देशक ने कलाकारों से तेलुगु के साथ हिन्दी में भी संवाद बुलवाए हैं। निश्चय ही इस प्रक्रिया में निर्देशक और कलाकारों को दोहरा परिश्रम करना पड़ा होगा।
प्रतिक्रियाओं की बात की जाए तो तेलुगु बेल्ट में भी दर्शक इसे एवरेज बता रहे हैं। अपितु महिला दर्शकों को फिल्म अधिक पसंद आई है। ये एक साफ-सुथरी प्रेम कहानी है। वयस्क दृश्यों के नाम पर एक दो चुंबन दृश्य हैं। इसमें कोई आइटम गीत नहीं है। मेरा विचार है कि राधे-श्याम का खुमार दर्शकों पर धीरे-धीरे चढ़ेगा। ये भले ही थ्रिल न देती हो किन्तु आँखों को सुकून देती है। ये प्रेम कथा एक विजुअल ट्रीट है। आप थियेटर से बाहर आते हैं तो मन बोझिल नहीं रहता। निर्मल मनोरंजन की भी कोई क़ीमत होनी चाहिए या नहीं।