डॉ रजनी रमण झा । नासदीय सूक्त (ऋग्वेद, मण्डल १०, सूक्त -१२९)
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को अद्धा वेद क इह प्र वोचत् कुत आजाता कुत इयं विसृष्टि: ।
अर्वाग्देवा अस्य विसर्जनेनाथा को वेद यत आबभूव ।।
अर्थ – कौन याथातथ्य यानी वास्तविक रुप में जानता है ? कौन यहां कह सकता है कि यह विविध प्रकार की सृष्टि कहां से और किससे उत्पन्न हुई ? देवगण भी इस भौतिक सृष्टि के बाद के हैं। अतः कौन जानता है उसको जहां से यह सम्पूर्ण जगत् उत्पन्न हुआ ।